नेताओं के कई राज दबाये बैठे हैं प्रशांत किशोर, महत्वकांक्षा की वजह से सियासी करियर पर खतरा

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने जितनी तेजी से सियासत का रास्ता तय किया था, उतनी ही तेजी से अब उनकी सियासी करियर का ग्राफ नीचे भी आ रहा है।

New Delhi, Apr 13 : राजद सुप्रीमो और बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव की किताब में खुलासे के बाद जदयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर सवालों के घेरे में हैं। 2014 में मोदी के लिये चुनावी अभियान संभालने वाले पीके ने 2015 में नीतीश की कमान संभाली थी, हालांकि अब उनका जादू कम होता दिख रहा है, नीतीश की पार्टी में भी एक खेमा लगातार दबी जुबान में उनका विरोध कर रहा है।

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गिर रहा ग्राफ
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने जितनी तेजी से सियासत का रास्ता तय किया था, उतनी ही तेजी से अब उनकी सियासी करियर का ग्राफ नीचे भी आ रहा है, राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक जिस तरह से पीके ने इतने कम समय में बड़ी सफलता हासिल की थी, अब वो विवादों में फंसते दिख रहे हैं, तमाम बड़े नेता अब उनसे दूरी बनाये रखने में ही भलाई समझ रहे हैं, इसकी वजह से पीके का राजनीतिक करियर भी खतरे में पड़ता दिख रहा है।

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मामला विवादित
पीके को लेकर नया विवाज लालू की किताब में सामने आया है, जदयू सुप्रीमो नीतीश के खासमखास कहे जाने वाले पीके को लेकर लालू ने अपनी किताब गोपालगंज टू रायसीना- माई पॉलिटिकल जर्नी में लिखा है, कि नीतीश ने पीके के माध्यम से लालू के पास फिर से महागठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव भेजा था, जिसे उन्होने ठुकरा दिया था, नीतीश ने ये प्रस्ताव एनडीए में दोबारा शामिल होने के 6 महीने के बाद ही भेजा था, हालांकि लालू की बात को पीके के साथ-साथ जदयू ने भी बेबुनियाद बताया है।

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मोदी की जीत की रुपरेखा
आपको बता दें कि प्रशांत किशोर पहली बार 2012 में चर्चा में आये थे, मोदी तीसरी बार गुजरात के सीएम चुने गये थे, मोदी के जीत की रुप रेखा पीके ने ही खींची थी, हालांकि उन्हें असली पहचान 2014 में मिली, तब लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की, अमित शाह के बाद इस चुनाव में जीत का श्रेय प्रशांत किशोर को दिया गया।

जदयू में नहीं बन रही
जदयू सूत्रों का कहना है कि भले नीतीश ने उन्हें पार्टी को भविष्य बताया, पीके पार्टी में एक से ज्यादा विभागों का प्रबंधन चाहते हैं, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह, ललन सिंह, विजेंद्र यादव और आरसीपी सिंह जैसे बड़े नेताओं के साथ उनकी बन नहीं रही है, जिसकी वजह से वो पार्टी में अलग-थलग पड़ गये हैं, हालांकि नीतीश की उन्हें विश्वास हासिल है, लेकिन ज्यादातर नेता नीतीश की कान भरने में लगे हैं, ताकि पीके की छुट्टी किया जा सके।