Opinion – आप से हमने अधिक उम्मीद कर ली हो, तो ठाकुर मनीष सिसोदिया के बचाव दल स्पष्ट करे

कुछ लोग कह रहे हैं कि ये हम जैसों की ऐसी उम्मीदें थीं जो खुद कभी आम आदमी पार्टी ने नहीं बढ़ाई लेकिन हमने लगा ली।

New Delhi, Apr 28 : किसी ने कहा कि आतिशी यहूदी है, किसी ने कहा मुसलमान और किसी ने कहा ईसाई.. तो ठाकुर मनीष सिसौदिया जी मैदान में उतरे और आतिशी का धर्म ही नहीं जाति भी बता दी. ये वैसा ही है जैसा केजरीवाल ने चुनाव में अपनी जाति पहली बार बताई थी और माननीय आशुतोष जी ने भी. अब ये वही लोग बताएं कि उनके बारे में भी अफवाह फैली थी तब उन्होंने जाति का खुलासा किया था या फिर ऐसा स्वत: प्रेरणा के चलते हुआ था.
दरअसल ये जाति का वही खेल है जिसके खिलाफ कभी आम आदमी पार्टी थी या फिर कभी थी ही नहीं.

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कुछ लोग कह रहे हैं कि ये हम जैसों की ऐसी उम्मीदें थीं जो खुद कभी आम आदमी पार्टी ने नहीं बढ़ाई लेकिन हमने लगा ली. सही बात है. आम आदमी पार्टी ने अगर कभी जातिविहीन समाज की बात की नहीं तो कोई उनसे ये उम्मीद क्यों लगाए? हो सकता है AAP नेताओं की बातों से किसी ने ऐसा अंदाज़ा लगाया हो, आइंदा नहीं लगाना चाहिए. केजरीवाल या मनीष जी को ही बता देना चाहिए. इसके अलावा हाथ लगे आम आदमी पार्टी के डेढ़ नेतृत्व को ये भी साफ कर ही देना चाहिए कि किस-किस मामले में उनसे अधिक उम्मीदें लगा ली गई हैं और वो ‘व्यवहारिक’ तौर पर गलत हैं सो आनेवाले दिनों में टूटेंगी.

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अंत में इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते कुछ तथ्यों पर ध्यान दिला दूं. कोई मनीष जी से परिचित हो तो इसे उनकी जानकारी में जोड़ दे. मैं नहीं चाहता कि देश के प्रधानमंत्री की तरह वो इतिहास के मामले में लोगों को भ्रमित करें. ऊपर से सुना है कि वो अच्छा काम कर रहे हैं, तो फिर इतिहास ही गलत क्यों बांचें. पहली बात है कि झांसी का युद्ध लक्ष्मीबाई ने जीता नहीं था, हारा था. हां ये सच है कि बहादुरी से लड़ते हुए वो वीरगति को प्राप्त हुई थीं (आतिशी चाहें तो हार कर वो स्वयं भी इस गति को प्राप्त कर सकती हैं.. चूंकि मनीष जी उनकी तुलना रानी झांसी से कर रहे हैं) और दूसरी बात ये कि लक्ष्मीबाई राजपूत नहीं थीं बल्कि जन्मना ब्राह्मण थीं. अब हो सकता है कि मनीष जी के समर्थक कह डालें कि उनके नेता लक्ष्मीबाई को राजपूत इसलिए कह रहे थे क्योंकि उनके पति मराठा थे या फिर कह सकते हैं कि ये तुलना महिला होने के नाते की गई तब ठीक है..लेकिन उसके बाद नेताजी ये भी ज़रूर बताएं कि क्या खुद आतिशी अपनी इस जातिगत पहचान को लेकर सहज हैं या फिर ये महज़ चुनावी मौसम में ओढ़ी जानेवाली पहचान है, जैसे मोदी जी चुनाव आते ही पिछड़े हो जाते हैं?

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हमने तो यही सुना था कि आतिशी के माता-पिता जो लेफ्टिस्ट थे उन्होंने मार्क्स और लेनिन के नाम को जोड़कर अपनी बच्ची को ‘मर्लेना’ उपनाम दिया था और शायद वामपंथ धर्महीन -जातिहीन समाज को आदर्श मानता है. अब इसमें भी हमने उम्मीद अधिक कर ली हो तो सिसौदिया जी का बचाव दल स्पष्ट कर दे. धन्यवाद.

(टीवी पत्रकार नितिन ठाकुर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)