Blog : अगर दुम शेर को हिलाए तो… ।

इस बयान का अर्थ क्या है ? शायद यही कि इस गठबंधन की 50-60 सीटें उप्र में जीतने का जो शुरुआती इरादा था, वह डगमगातासा दिखाई पड़ रहा है।

New Delhi, Apr 29 : समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कांग्रेस के खिलाफ इस चुनाव में पहली बार मुंह खोला है। उनका और राहुल गांधी का व्यक्तिगत समीकरण काफी अच्छा माना जाता है। इसके अलावा शत्रुघ्न सिंहा जबकि पटना से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं, अखिलेश ने उनकी पत्नी को अपनी सपा का लखनऊ से उम्मीदवार बनाया है।

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अब तक मायावती तो कांग्रेस पर कई बार प्रहार कर चुकी हैं लेकिन अखिलेश ने पहली बार कहा है कि कांग्रेस खेल बिगाड़ू है याने सपा और बसपा का गठबंधन नरेंद्र मोदी को 272 सीटें जीतने से रोक सकता है लेकिन उसके साथ असहयोग करके कांग्रेस भाजपा को जिताने पर तुली हुई है। कांग्रेस अहंकारग्रस्त है। वह समाजवादी पार्टी को क्यों नहीं देखती, जिसने गठबंधन की खातिर अपनी कई सीटें छोड़ दीं। इस बयान का अर्थ क्या है ? शायद यही कि इस गठबंधन की 50-60 सीटें उप्र में जीतने का जो शुरुआती इरादा था, वह डगमगातासा दिखाई पड़ रहा है।

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अखिलेश ने मोदी की इस आशंका की भी खिल्ली उड़ाई है कि चुनाव के बाद यह गठबंधन टूट जाएगा। यह गठबंधन लोकसभा चुनाव में यदि आधी सीटें भी नहीं जीत पाएगा, तो भी उप्र के विधानसभा-चुनाव में यह कमाल कर सकता है। इस गठब्ंधन का हो जाना ही शुभ है, भारत की राजनीति के लिए ही नहीं, समाजिक सदभाव के लिए भी। पिछड़े और अनुसूचित यदि कदम से कदम मिलाकर चलें और उनकी क्षमताओं का पूर्ण दोहन हो सके तो भारत को महाशक्ति बनने में देर नहीं लगेगी। वास्तव में कांग्रेस ने लगभग हर प्रदेश में अपने उम्मीदवार खड़े करके बड़ा जुआ खेला है। उसकी बाजी चित भी हो सकती है और पट भी पड़ सकती है।

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उसके बड़े नेता जहरीले तीर छोड़ने में भाजपा के छुटभय्यों को भी मात कर रहे हैं। इस घटिया राजनीतिक माहौल में नरेंद्र मोदी ने कल वाराणसी में अपने विरोधियों का सम्मान करने की जो बात कही है, उसे वे खुद और सभी उम्मीदवार चरितार्थ करें तो भारतीय लोकतंत्र की इज्जत में कुछ न कुछ इजाफा जरुर होगा। यह ठीक है कि अभी तक चुनाव का चित्र स्पष्ट नहीं हुआ है। किसी भी पार्टी को पता नहीं है कि उसका भविष्य क्या होनेवाला है। इसीलिए आज जो सबसे बड़ी पक्ष और विपक्ष की पार्टियां हैं, वे मजबूरन अहंकार की मुद्रा धारण किए हुए हैं। किसे मालूम है कि इन बड़ी पार्टियों को चुनाव-परिणाम आने के बाद छोटी-मोटी पार्टियों के आगे ही दुम हिलानी पड़े, जैसे कर्नाटक में कांग्रेस को करना पड़ रहा है। दूसरे शब्दों में शेर दुम को हिलाए, उसकी बजाय, दुम शेर को हिलाएगी।
( वरिष्‍ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं )