उपेन्द्र कुशवाहा – कभी कहे जाते थे नीतीश के उत्तराधिकारी, अब खुद की पार्टी बचाने की है चुनौती

करीब तीन दशक से ज्यादा से बिहार की सक्रिय राजनीति में रहने वाले उपेन्द्र कुशवाहा समय-समय पर अपने पॉलिटिकल मूव्स के लिये भी जाने जाते हैं।

New Delhi, May 22 : पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा की पहचान बिहार के उन नेताओं में होती है, जो किसी दौर में नीतीश कुमार के विकल्प के तौर पर देखे जाते थे, हालांकि वक्त का पहिया घूमा कुशवाहा विधायक से सांसद और केन्द्रीय मंत्री बनें, लेकिन अब वो अपनी ही पार्टी बचाने की जुगत में लगे हुए है, इस लोकसभा चुनाव से पहले वो नीतीश के सबसे बड़े राजनैतिक प्रतिद्वंदी के तौर पर देखे जा रहे थे, लेकिन अब अपनी सीट बचाने के लिये लड़ रहे हैं।

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दो सीट से चुनाव
करीब तीन दशक से ज्यादा से बिहार की सक्रिय राजनीति में रहने वाले उपेन्द्र कुशवाहा समय-समय पर अपने पॉलिटिकल मूव्स के लिये भी जाने जाते हैं, करीब 6 महीने पहले वो मोदी सरकार में मंत्री थे, लेकिन फिर पाला बदल महागठबंधन में आ गये, इस बार कुशवाहा उजियारपुर और काराकाट दो सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, और दोनों ही जगह जीत का दावा कर रहे हैं, छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले उपेन्द्र कुशवाहा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, विधायक से केन्द्रीय मंत्री तक का सफर तय किया ।

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पर्सनल लाइफ
59 वर्षीय उपेन्द्र कुशवाहा का जन्म 6 फरवरी 1960 को वैशाली के जावज गांव में हुआ था, उन्होने राजनीति शास्त्र में ग्रेजुएशन किया, छात्र जीवन से ही उन्होने राजनीति की शुरुआत कर दी थी, फिलहाल कुशवाहा अपनी पार्टी बचाने के लिये संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि उनकी पार्टी के 3 में से 2 सांसद और दोनों विधायक उनका साथ छोड़ चुके हैं, वो अपनी पार्टी में अकेले चुनाव जीतने वाले शख्स हैं।

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नीतीश के खासमखास
उपेन्द्र कुशवाहा ने 1988 में युवा जनता दल से सक्रिय राजनीति में एंट्री ली, इसके बाद उन्हें राष्ट्रीय सचिव नियुक्त किया गया, जब समता पार्टी का गठन हुआ, तो कुशवाहा ने उसका दामन थाम लिया, साल 2000 में पहली बार वो विधायक बनें, फिर 2004 में बिहार विधानसभा में विरोधी दल के नेता बने, साल 2010 में चुनाव हारने पर नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। हालांकि बाद में नीतीश से ही मनमुटाव हो गया, जिसके बाद उन्होने जदयू छोड़ अपनी पार्टी बना ली।

2013 में अपनी पार्टी
साल 2013 में कुशवाहा ने अरुण सिंह के साथ जदयू से इस्तीफा दिया और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का गठन किया, 2014 लोकसभा चुनाव में उन्होने बीजेपी से गठबंधन किया और काराकाट सीट से चुनाव लड़े, ना सिर्फ जीत हासिल की, बल्कि मोदी सरकार में राज्य मंत्री भी बनें, बिहार की कुशवाहा बिरादरी में पकड़ रखने वाले उपेन्द्र कुशवाहा ने 2018 में फिर राजनीतिक मूव दिखाया, चुनाव से ठीक 6 महीने पहले उन्होने एनडीए से नाता तोड़ महागठबंधन में आ गया, कहा जाता है कि नीतीश की एनडीए में वापसी से कुशवाहा असहज हो गये थे, इसलिये उन्होने पाला बदल लिया।

टूटने के कगार पर पार्टी
एनडीए से अलग होने से पहले ही कुशवाहा के दोनों सांसद उनके खिलाफ बागी हो गये, तो 2015 विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी से दो विधायक जीते थे, उन दोनों ने भी उनका साथ छोड़ दिया, हालांकि महागठबंधन में कुशवाहा पांच सीटें लेने में सफल रहे, लेकिन अब वो अपनी पार्टी बचाने के लिये जूझ रहे हैं, क्योंकि नीतीश के बारे में कहा जाता है, कि वो अपने दुश्मनों को माफ नहीं बल्कि साफ करते हैं, ऐसे में कुशवाहा के लिये लड़ाई अब वजूद का बन चुका है।