‘सुंदर भविष्य का सपना देख रहे 21 नौजवान जलकर खाक हो गये’

मुंबई का कोई भी मल्टी-प्लेक्स फायर सेफ्टी के नियमों को पूरा नहीं करता। सिर्फ मुंबई नहीं यही कहानी देश के हर शहर की है।

New Delhi, May 25 : सूरत अग्निकांड की तस्वीरें स्तब्ध कर देने वाली हैं। सुंदर भविष्य का सपना देख रहे 21 नौजवान जलकर खाक हो गये। मुझे पिछले साल दिसंबर में मुंबई के कमला मिल कांप्लेक्स के एक रेस्तरां में लगी आग याद आ गई जब क्रिसमस और न्यू ईयर सेलिब्रेट कर रहे ना जाने कितने लोगों को आग ने निगल लिया था। मैं अपने दफ्तर की इमरजेंसी रिस्पांस टीम का हिस्सा हूं, इस नाते में मुझे आपदा प्रबंधन से जुड़े कई वर्कशाप में शामिल होने का मौका मिला है।
विशेषज्ञों से हुई बातचीत के निष्कर्ष इतने डरावने हैं कि यकीन करने का दिल नहीं करता। मुंबई का कोई भी मल्टी-प्लेक्स फायर सेफ्टी के नियमों को पूरा नहीं करता। सिर्फ मुंबई नहीं यही कहानी देश के हर शहर की है।

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हमलोगों को ट्रेंड करने वाले इंडियन नेवी के एक पूर्व कमांडो ने कई बार याद दिलाया कि किसी भी मल्टी-प्लेक्स में जायें तो बैठने से पहले एग्जिट डोर देख लें क्योंकि जब विपदा आती है तो लाइफ में सेकेंड चांस नहीं मिलता।
दुनिया भर के रिसर्च बताते हैं कि भारत दुनिया के उन देशों मे है, जहां इंसानी जान सबसे सस्ती है और संभावित खतरों से निपटने को लेकर ज़रा भी गंभीरता नहीं है। मशहूर उद्योगपति शिशिर बजाज के घर में आज से करीब दो साल पहले आग लगी थी। वे दक्षिण मुंबई की एक मशहूर इमारत के पेंट हाउस में रहते हैं। सबकुछ जलकर खाक हो गया और जना बड़ी मुश्किल से बची। सुरक्षा उपायों के प्रति उदासीनता अमीर तबकों में भी है, जो लोग जान हथेली पर लेकर जी रहे हैं, उनकी बात कौन करे।

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इमरजेंसी रिस्पांस और रेस्क्यू को लेकर मैने अनगिनत चौकाने वाली कहानियां सुनी हैं। सबकुछ यहां लिखना संभव नहीं है। फिर भी एक का जिक्र कर रहा हूं। बहुत साल पहले मुंबई में एक होटल में आग लगी। आग इतनी भीषण थी कि काबू पाने में चार-पांच घंटे लगे।
राहतकर्मी जब आग बुझने के बाद जब अंदर गये तो उन्होने देखा कि कमरों के दरवाजे जलकर कोयला हो चुके हैं। किसी के बचे होने की संभावना पर सोचना भी व्यर्थ था। लेकिन रेस्क्यू टीम अपना काम कर रही थी। हर कमरे में जली हुई लाशें थी।
लेकिन राहतकर्मियों के अजरज का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने एक कमरे का दरवाजा तोड़ा। अंदर दो जापानी युवक थे, जिन्हे एक खरोंच तक नहीं आई थी। रेस्क्यू टीम के लिए यह एक पहेली थी।
पूछने पर दोनों जापानियों ने बताया कि उन्हें बकायदा इस बात की ट्रेनिंग मिली है कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए। जब होटल में चीख-पुकार मची तो तो दोनों ने सबसे पहले कमरे की दीवार को छूकर देखा। दीवार बहुत गर्म थी। दोनो फौरन समझ गये कि आग फैल चुकी है और दरवाजा खोलकर बाहर जाने की कोशिश करना बेकार है। इस तरह जान नहीं बचेगी।

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उन्होंने फटाफाट बेड शीट और कमरे में उपलब्ध बाकी कपड़े इस्तेमाल करके वे सारे छेद (दरवाजे और खिड़की के निचले हिस्से और एयकंडीशनर) बंद कर दिये जहां से धुआं आ सकता था। फिर उन्होने गीले तौलिये से अपने मुंह और नाक ढंके।
एक नौजवान बाथरूम से बाल्टी भर-भरकर लाता रहा और दूसरा लगातार मुस्तैदी से कमरे की दीवारों पर पानी डालता रहा ताकि टेंप्रेचर कंट्रोल में रहे। यह सिलसिला घंटों चला। धुआं और गर्मी ये दो चीज़ें मौत कारण बनती हैं। दोनों युवकों ने सूझबूझ से मौत पर जीत हासिल कर ली।
आजकल महंगे स्कूलों में बच्चों को आपदा प्रबंधन की ट्रेनिंग दी जाती थी। लेकिन सच यह है कि घर से लेकर सड़क तक कुछ भी सुरक्षित नहीं है। हर जगह सुरक्षा नियमों की अनदेखी है। ऐसे में आप केवल प्रार्थना ही कर सकते हैं कि सूरत जैसी घटनाएं ना हों।