राष्ट्रवाद किसी भी ‘वाद’ से ज्यादा बड़ा और प्रभावी है, मुस्लिम वोटों के ठेकेदारों के दिन अब शायद लद गये

पार्टी को नेहरू-गांधी परिवार के साये से बाहर आने की जरूरत है। उसे थोप हुआ नहीं बल्कि जनता के बीच से निकल कर आया नेतृत्व चाहिए।

New Delhi, May 26 : चुनाव परिणाम समाज को बांटने,काटने,हिंसा,कटुता और धार्मिक उन्माद फैलाने, झूठा प्रचार करने, राष्ट्रीय सम्मान और हिंदुत्व पर आघात तथा चुनी हुई सरकार को बदनाम करने के खिलाफ जनादेश है। देश की जनता ने जाति और धर्म की दीवार तोड़ कर राष्ट्रीयता पर मुहर लगाई है। सैन्य कार्रवाईयों पर सवाल उठाने वालों और मुसलमानों को अपना बंधुआ मजदूर माननेवाले नेताओं और दलों के मुंह पर देश की जनता ने बडा तमाचा जड़ा है।

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विपक्ष चुनाव में अपने सबसे बड़े दुश्मन नरेंद्र मोदी को हराने के लिए महागठबंधन तो नहीं बना सका उल्टा मोदी महानायक बन कर जरूर उभर आये। ‘चौकीदार चोर है’ के नारे को पूरी तरह खारिज करते हुए वोटरों ने नारा लगवाने वाले का ही बोरिया-बिस्तर समेट दिया। कोई युक्ति काम न आई।
नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने विपक्ष की छोटी-छोटी लकीरों के मुकाबले एक बड़ी और मोटी लकीर खींच दी। विपक्ष चारो खाने चित्त हो गया।

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चुनाव परिणाम ने यह बात फिर से स्थापित कर दी कि राष्ट्रवाद किसी भी ‘वाद’ से ज्यादा बड़ा और प्रभावी है। अनपढ़ जनता को भी यह समझ मे आता है। बिहार में तो एक तरह से 1977 दोहराया गया है। आपातकाल के बाद 77 में हुए चुनाव में बिहार की सभी सीटें जनता पार्टी ने जीत ली थी। कांग्रेस का सफाया हो गया था। उसी चुनाव ने पहली बार लालू प्रसाद को संसद भेजा था। उन्ही लालू प्रसाद की पार्टी का कांग्रेस के कंधे पर सवार होकर दिल्ली जाने का सपना चूर-चूर हो गया। लालू को साजिश करके जेल भेजवाने की थ्योरी को जनता ने अस्वीकार कर दिया। अब लोकसभा में इस पार्टी का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा। लालू पुत्र तेजस्वी को जनता ने पहली ही परीक्षा में फेल कर दिया। आरक्षण और संविधान पर खतरे की उनकी बात पर जनता ने यकीन नही किया। खुद उनके यादव समाज के एक बड़े हिस्से ने पाटलिपुत्र सीट पर उनकी बहन मीसा भारती के खिलाफ वोट कर उन्हें हरवा दिया। लालू के सहारे चुनाव मैदान में उतरे फ़िल्म स्टार शत्रुघ्न सिन्हा और दिग्गज नेता माने जाने वाले शरद यादव भी ढेर हो गए। शत्रुघ्न सिन्हा को उनकी औकात पता चल गई।

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देश भर के प्रगतिशील, सेकुलरिस्ट और वाम ताकतों की उम्मीदों के चिराग कन्हैया कुमार बेगुसराय में 4 लाख से अधिक वोटों से परास्त हुए। यह परिणाम बताता है कि देश को कमजोर करनेवालों को जनता पसंद नहीं करती। अमेठी से कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद के दावेदार राहुल गांधी की हार यह स्पष्ट करती है कि झूठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती।
कांग्रेस की लगातार दूसरी बार हुई पराजय इस बात का सीधा संकेत है कि राहुल गांधी के नेतृत्व पर जनता को कतई भरोसा नहीं है। पार्टी को नेहरू-गांधी परिवार के साये से बाहर आने की जरूरत है। उसे थोप हुआ नहीं बल्कि जनता के बीच से निकल कर आया नेतृत्व चाहिए। तभी पार्टी का काया कल्प हो सकता है, वर्ना मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को पूरा होते देर नहीं लगेगी।

कांग्रेस सबसे पुरानी पार्टी है। अभी भी उसे सम्हाला जा सकता है। उसे मजबूत बनाना राष्ट्रीय जरूरत भी है।
राहुल और तेजस्वी दोनों नेता के तौर पर विफल रहे हैं।राष्ट्रीय जनता दल जितनी जल्दी नया नेता ढूंढ ले उतना बेहतर। अन्यथा पारिवारिक कलह में ही यह पार्टी बर्बाद हो जायेगी। एक समय था जब लालू के नेतृत्व में इस पार्टी ने बिहार में सामंती कुफ्र तोड़ कर गरीब-वंचित और उपेक्षित ,दमित लोगों में आत्मसम्मान जगाया था। वाम दलों के दिन तो अब शायद ही लौटें।
मुस्लिम बहुल क्षेत्र से NDA की जीत यह बताती है कि मुस्लिम नेताओं की तरह मुस्लिम मतदाता मोदी और BJP को अपना दुश्मन नहीं मानते। यह एक शुभ संकेत है। मुस्लिम वोटों के ठेकेदारों के दिन अब शायद लद गये!

 (वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)