Opinion- राहुल की “ना” में “हाँ” ही थी

राहुल की भाग्यदशा ही खोटी थी| वे प्रधान मंत्री न सही, इस बार कम से कम काबीना मंत्री का दर्जा तो पा सकते थे|

New Delhi, May 28 : आखिर राहुल गांधी राजी हो गये ! पार्टी मुखिया बने रहेंगे| राजीनामा वापस ले लिया| मा-बहन ने मिन्नतें की| सरदार मनमोहन सिंह ने चिरौरी की| पार्टी के बड़े लोग गिड़गिड़ाये कि मझधार में छोड़कर मांझी को नहीं जाना चाहिए| हालांकि कांग्रेस के कई प्रदेश अद्ध्यक्षों ने चुनाव में शोचनीय शिकस्त के बाद अपना त्यागपत्र राहुल गांधी को भेज दिया था| वे लोग भी राहुल गांधी से राष्ट्रीय अद्ध्यक्ष बने रहने की मार्मिक विनती कर चुके थे| घंटे भर बाद राहुल पसीज गये| और कोई वैकल्पिक नेता है नही| फिर परिवार के अगली पीढ़ी के रेहान वाड्रा अभी उन्नीस वर्ष के ही हैं| कांग्रेस के पास अरबों की चल–अचल संपत्ति है| किसी बाहर वाले को कैसे सौंप दें? पी.वी. नरसिम्हा राव ऐसी आशंका पैदा कर चुके थे| अगले लोकसभायी निर्वाचन तक राहुल पछ्पन वर्ष के हो जायेंगे| तब तक परिपक्वता भी आ जाएगी| शब्द चयन में परिमार्जन और गाम्भीर्य आ जायेगा| किसे चोर कब कहना है, तब तक समझ जायेंगे| इस भाषायी अपसंस्कृति से इस बार कांग्रेस की शेष बची आस भी लुप्त हो गई थी|

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लेकिन मसला है कि पचहत्तर-वर्षीया सोनिया गांधी अगले पाँच साल तक कितनी फुर्तीली रहेंगी? वे तब अस्सी के ऊपर होंगी|
फ़िलहाल राहुल के कई बार दावा करने के बाद भी कि वे प्रधान मंत्री लायक हैं, उनके पार्टीजन अभी पूर्णतया आश्वस्त नहीं थे| जिसने स्कूटर भी नहीं चलाया हो उससे बस कैसे चलवाया जाय?
कुलमिलाकर कांग्रेस वर्किंग कमेटी की आज (25) की बैठक मात्र एक प्रहसन लगी| संसदीय निर्वाचन में पार्टी की दुर्गति पर विशद मंथन होना था| चुनावी सभाओं में सार्वजनिक भाषण से राहुल यही सन्देश दे रहे थे कि मई के आखिरी सप्ताह तक वे अपने बाप, दादी और जवाहरलाल नेहरू के सिंहासन पर विराजने वाले हैं | मगर अब पाँच वर्ष का प्रवास आ पड़ा है| पर राहुल का सियासी स्वांग प्रभावी रहा| केरल के मार्क्सवादी मुख्य मंत्री पिनरायी विजयन ने कह भी दिया कि अमेठी में पराजय निश्चित थी, अतः राहुल भागकर मुस्लिम-बहुल वायनाड से चुनाव लड़े| यहाँ से माकपा सांसद रहा| वह हार गया, क्योंकि चाँद सितारावाले परचम के साथ मुस्लिम लीग ने राहुल का तिरंगा भी लहराया|

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कई जुलूस देखकर अनभिग्य दर्शकों को लगा कि राहुल के कार्यकर्ता कराची से आ गये हैं| नतीजन माकपा उम्मीदवार पीपी सुनील हार गये| इससे बहना प्रियंका वाड्रा के राजनीतिक सपने टूट गये| राहुल ने घोषणा की थी कि वे वायनाड जीतकर अमेठी सीट बहन के नाम कर देंगे| पर स्मृति ईरानी ने खलल डाल दी|
राहुल की भाग्यदशा ही खोटी थी| वे प्रधान मंत्री न सही, इस बार कम से कम काबीना मंत्री का दर्जा तो पा सकते थे| पर उनकी कांग्रेस पार्टी मान्यता हेतु न्यूनतम दस प्रतिशत वाली सदस्य-संख्या भी नहीं जीत पायी| लोकसभा में 55 सदस्य होने पर ही मान्य विपक्ष के नेता बनते हैं| तब काबीना मंत्री का दर्जा भी मिलता है| राहुल-कांग्रेस 52 पर ही थम गई| पिछली लोकसभा में ऐसा ही हुआ था| केवल 44 पर ही टिक गई थी| मल्लिकार्जुन खड्गे भी मात्र दलीय नेता ही बने| नेता विपक्ष नहीं|

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राहुल की त्रासदी उनके संबन्धियों को भी ग्रसती रही| सोनिया गांधी इस बार पड़ोस के रायबरेली से करीब डेढ़ लाख वोटों से जीतीं| पिछले चुनाव में साढ़े तीन लाख की मार्जिन थी| मगर राहुल की ग्रहदशा का असर प्रियंका पर सीधा पड़ा| उसकी सांसदी तो अटक गयी| वह पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी थीं| वहाँ एक भी सीट कांग्रेस नहीं जीती| यही नहीं, जिस-जिस प्रदेश में प्रियंका गईं, वहाँ भी जीतता प्रत्याशी डूब गया| मसलन कानपुर में पूर्व केन्द्रीय राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, कुशीनगर में पूर्व केन्द्रीय मंत्री आर. पी. एन. सिंह और काचार (असम) में युवा कांग्रेसी सुष्मिता| प्रियंका के चरण पड़े और पार्टी का बंटाधार हो गया|
अगला मोदी युग इस नेहरू-वाड्रा परिवार के लिये बड़ा दुखदायी होगा| राबर्ट वाड्रा का कारागार योग प्रबल है| अगस्ता हेलीकॉप्टर और यंगइंडिया गबन के मुकदमों में माता और पुत्र पर काले मेघ दिख रहे हैं| इन सभी में प्रियंका की संलग्नता भी है| इनका पाला पड़ा है नरेन्द्र दामोदरदास मोदी से जो बड़ा निर्मम है| क्षमाशीलता से बिलकुल अनजान है| गंवई लहजे में कहें तो वह मारता है दस, मगर गिनता है एक| भूल गया तो फिर से !

(वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)