मोदी जी परिवार को किस बात की सजा दे रहे हैं, ये कैसी राष्ट्रभक्ति है, प्रधानमंत्री के नाम खुला खत

मान्यवर प्रधानमंत्री जी, आप अक्सर भगवान राम के आदर्शों का उल्लेख करते हैं, उनके प्रति श्रद्धा दिखाते हैं।

New Delhi, May 31 : दरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी,
नमस्कार,
पुनः प्रधानमंत्री बनने के लिए आपको हार्दिक बधाई। आप सफलतम प्रधानमंत्री के रूप में याद किये जायें, यह कामना है। इसमें किंचित भी संदेह नहीं कि आपने मां भारती का गौरव बढ़ाया है। देशवासियों का स्वाभिमान जगाया है।

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लेकिन आपका यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा। अपने शपथ समारोह में देश-दुनिया के लोगों को तो बुलाया लेकिन परिवार को छोड़ दिया। आखिर परिवार को किस बात की सजा दे रहे हैं? यह कैसी देशभक्ति है? क्या आपकी खुशी में परिवार को खुश होने, उसमें शरीक होने का हक नहीं है? बंगाल में मारे गए BJP कार्यकर्ताओं के परिवार और बनारस के महत्वपूर्ण लोगों को सम्मान के साथ बुलाया तो फिर परिवार को छोड़ने का क्या तुक है? हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री आखिर अपने परिवार को किस बात का दंड दे रहे हैं?

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आपने ‘सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास’ का नारा तो दिया, लेकिन खुद अपने परिवार का विश्वास नहीं कर रहे, आखिर क्यों? मैं यह समझने में असमर्थ हूं कि परिवार की उपेक्षा कर आखिर आप कौन सा आदर्श उपस्थित कर रहे हैं? देश की युवा पीढ़ी इससे क्या सीखेगी? आप महानायक बन कर उभरे हैं।आपके हर कार्य और आचरण पर 130 करोड़ देशवासियों की नजर है। जैसे आपका सम्मान है, वैसे आपके भाई-बहनों एवं अन्य परिजनों का भी सम्मान है। उनका ऐसा तिरस्कार मुझे उचित नहीं लगता।

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मान्यवर प्रधानमंत्री जी, आप अक्सर भगवान राम के आदर्शों का उल्लेख करते हैं, उनके प्रति श्रद्धा दिखाते हैं। द्वारिकाधीश के प्रदेश के होने की दुहाई देते हैं। इन दोनों ने कभी अपने भाई-बहनों और परिजनों की उपेक्षा नहीं की थी।फिर आप क्यों कर रहे हैं?
मेरे जैसे असंख्य देशवासी चाहते हैं कि आप बार-बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन परिजनों का ऐसा तिरस्कार न करें। यह अच्छा नहीं लगता।
उम्मीद है कि देश का विश्वास जीतने के बाद आप परिवार का विश्वास भी जीतेंगे, उन्हें सम्मान देंगे ताकि वे भी आप पर गौरव कर सकें।आपकी सफलता का जश्न मना सकें।
अगर कुछ बुरा लगे तो क्षमा चाहता हूं।
धन्यवाद।
आपका
प्रवीण बागी
पटना, बिहार

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार,ये लेखक के निजी विचार हैं)