अमित शाह के गृह मंत्री बनते ही “सिकलुर गैंग” में हड़कम्प मच गया है

अब अगर अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय सोहराबुद्दीन जैसे कुछ और आतंकवादियों को सेट कर देता है तो इसमें बाकी आम हिंदुस्तानियों को क्या ऐतराज़ हो सकता है…

New Delhi, Jun 01 : अमित शाह के गृह मंत्री बनते ही “सिकलुर गैंग” में हड़कम्प मच गया है… उस सोहराबुद्दीन का गढ़ा मुर्दा उखाड़ा जा रहा है, जिसके एनकाउंटर का आरोप अमित शाह पर लगा कर उन्हें “तड़ीपार” घोषित कर दिया गया था… मैं अमित शाह का समर्थक नहीं हूं, लेकिन बिना सोचे समझे किसी के पीछे पड़ जाना ठीक नहीं है… अब सुनिए हकीकत, उस “देशभक्त” सोहराबुद्दीन की, जिसे कुछ बुद्धिजीवी “मासूम” बताते हैं, तो कुछ सिकलुर धर्म के आधार पर उसे “शहीद” करार देते हैं… कुछ “शांति दूत” तो सोहराबुद्दीन को “मुस्लिम शिकार” तक बता कर इंसाफ मांगते हैं…

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लेकिन हकीकत में सोहराबुद्दीन एक खूंखार अपराधी, दाऊद का गुर्गा, देशद्रोही और ISI के इशारे पर काम करने वाला आतंकी था… मैं इंदौर का रहने वाला हूं और इस सच्चाई को मेरे मालवा (पश्चिमी मध्यप्रदेश) इलाके के लोग अच्छे से जानते है…अगर दिल्ली में बैठे “सिकलुर” लोगों को इस सच्चाई पर शक है तो 1994 और 1995 के इंदौर-उज्जैन के अखबार खंगाल लें।
अब सुनिए इस देशद्रोही सोहराबुद्दीन की कहानी… सोहराबुद्दीन मध्यप्रदेश का हिस्ट्रीशीटर था और उज्जैन जिले के झिरन्या गाँव में मिले एके 47 और अन्य ‍हथियारों में इसी का हाथ था… दरअसल ये साज़िश पूरे देश को दहला देने के लिये रची गई थी… ये झिरन्या कांड उस टाइम हमारे मालवा की सबसे बड़ी सुर्खी था… इंडिया टुडे ने इस पर 3 पन्नों की स्टोरी छापी थी…
खैर सोहराबुद्दीन के संपर्क छोटा दाउद उर्फ शरीफ खान से थे जो अहमदाबाद से कराची चला गया था… इसी शरीफ खान के लिए सोहराबुद्दीन काम करता था… ये शरीफ खान, दाऊद इब्राहिम का राइट हैंड माना जाता है।

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दरअसल सोहराबुद्दीन 1990 में इन्दौर के आशा-ज्योति ट्रांसपोर्ट पर ट्रक क्लीनर का काम करने लगा… साल 1994 में अहमदाबाद की सायरा नामक महिला ने 50 एके 47 मध्यप्रदेश के लिए रवाना की थी और इस ट्रक का ड्राइवर उज्जैन जिले के महिदपुर का पप्पू पठान था और सहयोगी ड्राइवर सोहराबुद्दीन था… इस ट्रक का क्लीनर सारंगपुर का अकरम था। जब सायरा अहमदाबाद में पकड़ी गई तो उसने पप्पू और सोहराबुद्दीन के ट्रक में हथियार पहुँचाने की बात कबूली… पप्पू के पकड़े जाने पर अहमदाबाद पुलिस ने जाल बिछाया और सोहराबुद्दीन को जयपुर में पकड़ा… सायरा को अब्दुल लतीफ ने हथियार दिए थे… लतीफ के साथ ही सोहराबुद्दीन की पहचान समीम, पठान जैसे माफियाओं से हुई थी, ये सब D कम्पनी के लोग थे।

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बाबरी ढाँचे के गिरने के बाद लतीफ ने ही छोटा दाउद उर्फ शरीफ खान से कराची से हथियार बुलवाए थे… शरीफ खान के कहने पर ही सोहराबुद्दीन ने रउफ के साथ मिल कर अमहमदाबाद के दरियापुर से हथियारों को झिरन्या पहुँचाया था… यहां पर हथियारों को कुएँ में छुपा दिया गया था… असल में सोहराबुद्दीन ने हथियार पूरे देश में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए अपने गांव झिरन्या में जमा किये थे… बाबरी मस्जिद कांड का बदला लेने के लिए ये हथियार देश के बड़े शहरों में पहुँचते उसके पहले ही झिरन्या कांड दुनिया के सामने आ गया… तब मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार थी और सोहराबुद्दीन से जुड़े ये सारे खुलासे उनकी ही पुलिस ने किए थे… अब इस “दिग्विजय तथ्य” के बाद तो सिकलुर चुप हो जाने चाहिए, लेकिन मुझे पता है, ऐसा होगा नहीं…
खैर झिरन्या कांड के बहुत दिनों बाद सोहराबुद्दीन गुजरात पुलिस के हत्थे चढ़ गया और उसे ढेर कर दिया गया… भैय्या सीधी सी बात है, एनकाउंटर एक आतंकवादी का हुआ था… किसी “शांति दूत” का नहीं… अब अगर अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय सोहराबुद्दीन जैसे कुछ और आतंकवादियों को सेट कर देता है तो इसमें बाकी आम हिंदुस्तानियों को क्या ऐतराज़ हो सकता है… हां, बाकी सिकलुर गैंग की न तो कोई गारंटी ले सकता है न वारंटी ले सकता है।
( लेखक के फेसबुक वॉल से साभार )