149 साल बाद बन रहा है सोमवती अमावस्‍या पर ये दुर्लभ योग, ये काम आज जरूर करें

सोमवती अमावस्या के दिन स्नान और दान का विशेष महत्त्व है । इस दिन कई लोग मौन भी रखते हैं, इस कारण इसे मौनी अमावस्या भी कहा जाता है ।

New Delhi, Jun 03 : आज सोमवती अमावस्‍या या वट सावित्री का व्रत है, इसके साथ ही इस दिन शनि जयंती का भी शुभ सांयोग है, जो कई वर्षों के बाद बना है । ज्योतिष और धर्म जानकारों के अनुसार शनि जंयती और सोमवती अवस्या एक ही दिन पड़ने से इस व्रत की महत्‍ता काफी बढ़ जाती है । एक ही दिन में दो – दो शुभ धर्मोत्‍सव पड़ने से इसकी महिमा बढ़ गई है, इसलिए अस दिन किए गए उपाय भी अधिक फलदायी होंगे । इस बार बन रहा संयोग 149 साल बाद बन रहा है । आगे जानिए इसके शुभ फल से जुड़ी प्रत्‍येक जानकारी ।

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149 साल बाद बना शुभ योग
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ये संयोग पहली बार 30 मई 1870 को पड़ा था । जानकारों के अनुसार अमावस्‍या का काल 3 जून को दोपहर 3 बजकर 31 मिनट पर समाप्त हो जाएगा । इससे पहले स्नान – दान आदि का लाभ उठाएं । ऐसा करना बहुत ही शुभ माना जाता है । आज का दिन व्रत करने वाली सुहागिनों के लिए बहुत ही खास है, स्त्रियां अपने सुहाग के लिए वट सावित्री का व्रत करती हैं और ईश्‍वर से पति की लंबी आयु की कामना करती हैं । पेड़ पर धागा बांधने की परंपरा भी इसी दिन पूरी की जाती है ।

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सोमवती अमावस्या के उपाय
आगे जानिए वो उपाय जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्‍हें सोमवती अमावस्‍या के दिन करने से बहुत लाभ होता है । सोमवती अमावस्या के दिन तुलसी की 108 परिक्रमा करने से दरिद्रता मिटती है । इसके बाद क्षमता के अनुसार दान किया जाता है । सोमवती अमावस्या के दिन स्नान और दान का विशेष महत्त्व है । इस दिन कई लोग मौन भी रखते हैं, इस कारण इसे मौनी अमावस्या भी कहा जाता है । ऐसी मान्‍यता है कि सोमवती अमावस्या के दिन मौन धारण करने और स्नान – दान करने से  हजार गायों के दान करने के समान फल मिलता है ।

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सोमवती अमावस्या का पाएं पूर्ण फल
अगर आप विवाहित स्‍त्री हैं तो धर्म कथाओं के अनुसार ये व्रत आपको अवश्‍य रखना चाहिए । इस व्रत की कथा भी कुछ इसी प्रकार है । कथानुसार – एक व्यक्ति के सात बेटे और एक बेटी थी । उसने अपने सभी बेटों की शादी कर दी लेकिन, बेटी की शादी नहीं हुई । एक भिक्षु रोज उनके घर भिक्षा मांगने आते थे. वह उस व्यक्ति की बहूओं को सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद तो देता था लेकिन उसने उसकी बेटी को शादी का आशीर्वाद कभी नहीं दिया । बेटी ने अपनी मां से यह बात कही तो मां ने इस बारे में भिक्षु से पूछा, लेकिन वह बिना कुछ कहे वहां से चला गया । इसके बाद लड़की की मां ने एक पंडित से अपनी बेटी की कुंडली दिखाई । पंडित ने कहा कि लड़की के भाग्य में विधवा बनना लिखा है । मां ने परेशान होकर उपाय पूछा तो उसने कहा कि लड़की सिंघल द्वीप जाकर वहां रहने वाली एक धोबिन से सिंदूर लेकर माथे पर लगाकर सोमवती अमावस्या का उपवास करे तो यह अशुभ योग दूर हो सकता है । इसके बाद मां के कहने पर छोटा बेटा अपनी बहन के साथ सिंघल द्वीप के लिए रवाना हो गया । रास्ते में समुद्र देख दोनों चिंतित होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए । उस पेड़ पर एक गिद्ध का घोंसला था । मादा गिद्ध जब भी बच्चे को जन्म देती थी, एक सांप उसे खा जाता था । उस दिन नर और मादा गिद्ध बाहर थे और बच्चे घोसले में अकेले थे. इस बीच सांप आया तो गिद्ध के बच्चे चिल्लाने लगे । यह देख पेड़ के नीचे बैठी साहूकार की बेटी ने सांप को मार डाला । जब गिद्ध और उसकी पत्नी लौटे, तो अपने बच्चों को जीवित देखकर बहुत खुश हुए और लड़की को धोबिन के घर जाने में मदद की । लड़की ने कई महीनों तक चुपचाप धोबिन महिला की सेवा की । लड़की की सेवा से खुश होकर धोबिन ने लड़की के माथे पर सिंदूर लगाया । इसके बाद रास्ते में उसने एक पीपल के पेड़ के चारों ओर घूमकर परिक्रमा की और पानी पिया । उसने पीपल के पेड़ की पूजा की और सोमवती अमावस्या का उपवास रखा । इस प्रकार उसके अशुभ योग का निवारण हो गया । और आगे चलकर उसका विवाह हुआ ।