Opinion – ओवैसी साहब इस देश में शर्तिया किरायेदार हैं

वो क्या है ना ओवैसी साहब, आपके दादाजान अब्दुल वाहिद ओवैसी ने 72 साल पहले ही अपने हिस्से की ज़मीन मांग ली थी… और हमने उन्हे वो दे भी दी थी।

New Delhi, Jun 03 : मुसलमानों के लिए ओवैसी ने कहा कि – “हम यहां पर बराबर के शहरी हैं… किराएदार नहीं हैं, हिस्‍सेदार रहेंगे”… इस मुद्दे पर देश के बाकी मुसलमानों की बात बाद में करेंगे लेकिन जहां तक ओवैसी साहब की बात है वो इस देश में शर्तिया किरायेदार हैं… जी हां, 100 फीसदी किरायेदार… वो क्या है ना ओवैसी साहब, आपके दादाजान अब्दुल वाहिद ओवैसी ने 72 साल पहले ही अपने हिस्से की ज़मीन मांग ली थी… और हमने उन्हे वो दे भी दी थी… पूरे 8 लाख 82 हज़ार स्कवेयर किलोमीटर का प्लॉट दिया था… जिसमें नदियां थी, हरियाली थी, उपजाऊ खेत-खलिहान थे… नॉर्थ-वेस्ट फेसिंग वाला ये प्लॉट एकदम हाईवे पर कॉर्नर का प्लॉट था… जहां से एक रास्ता मध्य एशिया, एक रास्ता मध्यपूर्व एशिया, एक रास्ता चीन की तरफ जाता था और साउथ में सी फेसिंग यानी अरब सागर था… बोले तो एकदम मौके का प्लॉट… इसके बाद भी आप वहां जाकर नहीं बसे तो हम क्या करें??? आपके प्लॉट पर लाहौर, कराची, पेशावर, रावलपिंडी के गुंडों ने कब्जा कर लिया तो इसमें हमारा क्या कसूर???

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“किरायेदार” ओवैसी की इस कड़वी सच्चाई को जानने के लिए थोड़ा इतिहास के झरोखे में झांकना होगा… ये वो खिड़कियां हैं जिन्हे अक्सर आम हिंदुस्तानियों के लिए बंद ही रखा गया है… तो आइए इतिहास की खिड़की खोलते हैं और जानते हैं ओवैसी का “किरायेदार” वाला काला सच…
बात 1927 की है… हैदराबाद में निज़ाम की सलाह पर एक दल बनाया गया जिसका नाम रखा गया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुसलमीन यानि MIM (आज ओवैसी इसी MIM की कोख से निकली AIMIM के अध्यक्ष हैं)… खैर जानते हैं कि इस MIM का मकसद क्या था… हैदराबाद रियासत का पूरी तरह से इस्लामीकरण करने के लिए कट्टरपंथी MIM का गठन हुआ था… जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ मिलकर MIM ने हैदराबाद में पाकिस्तान के विचार को इतना खाद-पानी दिया कि ये एक दिन ये आज़ाद भारत की सबसे बड़ी समस्या बन गया… ये तो हुई MIM की पाकिस्तान परस्त विचारधारा की बात लेकिन इसकी खूनी करतूतों की कहानी शुरु होती है 1944 में जब इस MIM की कमान कासिम रिज़वी के हाथों में आ गई…

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एमआईएम की कमान लेते ही कासिम रिज़वी भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में सबसे कट्टरपंथी खूनी नेता के तौर पर दर्ज हो गया… सबसे पहले उसने MIM में अपने रजाकारों को भरना शुरु किया… रजाकार यानि हथियारबंद मुसलमानों की वो सेना जो हैदराबाद को आज़ाद मुल्क बनाये रखने या फिर पाकिस्तान में मिलाये जाने के लिए हिंसा का सहारा लेती थी… करीब डेढ़ लाख रजाकारों की सेना जिसमें ज्यादातर MIM के कार्यकर्ता थे इन्होने हैदराबाद रियासत में करीब दो लाख हिंदुओं की हत्या की… ये एक लंबी कहानी है…

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खैर, जब सरदार पटेल ने देखा कि MIM और रजाकारों के सरगना कासिम रिज़वी की वजह से हैदराबाद हाथ से निकल सकता है तो उन्होने सितंबर 1948 में हैदराबाद पर हमला बोल दिया और ऑपरेशन पोलो के तहत के रज़ाकारों की सेना महज 5 दिन में ढेर हो गई… इसके तत्काल बाद कासिम रिज़वी को गिरफ्तार कर लिया गया और उसी साल MIM पर प्रतिबंध लगा दिया गया… कासिम रिज़वी के “पाकिस्तानी सपने” और उसका घमंड एक झटके में फना हो गया… कासिम रिज़वी को अपने मुसलमान होने का कितना अभिमान था इसका उल्लेख एक किताब “October Coup – A Memoir of the Struggle for Hyderabad” में मिलता है… इस किताब के लेखक मोहम्मद हैदर ने लिखा है कि जब उन्होने कासिम रिज़वी से पूछा कि – “आखिर, ये कहां तक सही है कि हैदराबाद रियासत के 20 फीसदी मुसलमान बाकी 80 फीसदी हिंदुओं पर राज करें?” इस सवाल पर घमंडी कासिम रिज़वी ने कहा कि – “ हैदराबाद में हम मुसलमान भले ही सिर्फ बीस फीसदी हैं लेकिन हमारे निजाम ने यहां 200 साल राज किया है तो इसका एक ही मतलब है कि हम मुसलमान सिर्फ राज करने के लिए ही बने हैं और देखना एक दिन ऐसा भी आएगा, जब मुसलमान इस पूरे देश पर राज करेंगे”… वहीं पी वी काटे अपनी किताब Marathwada Under the Nizams के पेज नंबर 75 पर लिखते हैं कि – ” कासिम रिज़वी की एक ही सोच थी कि मुसलमान हिंदुओं को गुलाम बना कर रखें”…. क्या आपको नहीं लगता है MIM वाले कासिम रिज़वी वाली ये सोच AIMIM वाले ओवैसी से काफी मिलती जुलती है ???

अब चलिए 10 साल और आगे… 1957 में नेहरू सरकार ने गद्दार कासिम रिज़वी को रिहा कर दिया… कासिम रिज़वी का भारत में अब कोई रहनुमा नहीं बचा था, उसने अपने आकाओं के ज़रिए पाकिस्तान में शरण मांगी जो उसे मिल गई… पाकिस्तान जाने से एक दिन पहले उसने MIM की बैठक बुलाई और अपने पाकिस्तान जाने के फैसले के बार में अपने साथियों को बताया… इसी बैठक मे सवाल उठा की अब मजलिस यानि MIM की कमान किसे सौंपी जाए तो कासिम रिज़वी ने अपने एक साथी युवा वकील का नाम सुझाया जिसका नाम था अब्दुल वाहिद ओवैसी… जी हां वही अब्दुल वाहिद ओवैसी जो आज के ओवैसी साहब के दादाजान थे… कासिम रिज़वी तो 15 जनवरी 1970 को कराची में गुमनामी की मौत मर गया लेकिन ओवैसी का खानदान हैदराबाद में बरगद का पेड़ बन गया…

अब्दुल वहीद ओवैसी ने MIM की कमान लेने के बाद सिर्फ एक बदलाव किया… MIM के आगे ऑल इंडिया लगा दिया और इस तरह बनी “ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुसलमीन” यानि AIMIM… लेकिन नाम बदलने से क्या होता है ??? MIM की कोख से AIMIM का जन्म हुआ, आखिर उसका डीएनए कैसे बदलता… ठीक वैसे ही अब्दुल वहीद ओवैसी के डीएनए उनके पोते असदुद्दीन ओवैसी की रगों में दौड़ रहे हैं… इसीलिए ओवैसी साहब अगली बार कौन किराएदार है और कौन हिस्सेदार ये बताने से पहले ये पता करना कि आपके मरहूम दादाजान और आपकी पार्टी MIM ने हिस्सेदारी में क्या मांगा था??? लड़कर लेंगे पाकिस्तान, मरकर लेंगे पाकिस्तान!

(वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)