Opinion – आपकी संतान की गलत हरकत से आप गलत नहीं हो जाते

दुनिया में बदनामी जैसी कोई चीज नहीं होती। ये वो हौवा है, जिसे सिर्फ आपका मन पालता है। जिन कहानियों को बदनामी से जोड़ा जाता है, उनकी उम्र 10 दिन से लेकर छह महीने तक ही होती है।

New Delhi, Jul 19 : विधायक की बेटी साक्षी मिश्रा के प्रकरण में कुछ लोग कह रहे हैं कि सोच बदलने की जरूरत है। बेटी भी अपने पिता से कह रही है कि सोच बदलो पापा जी। मुझे भी लगता है कि ऐसे मामलों में वाकई हमारी पीढ़ी को सोच बदलने की जरूरत है।
1- हमारी-आपकी बेटी अगर किसी के साथ भाग जाती है, भागकर किसी से शादी कर लेती है, या फिर हमारा-आपका बेटा अगर किसी लड़की को भगाकर शादी करता है तो आपको शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है। शर्मिंदा होने की इस सोच बदलने की जरूरत है। दिलो दिमाग में आत्महत्या का ख्याल लाने वाली सोच को बदलने की जरूरत है।

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2- अगर ऐसा कुछ आपकी जिंदगी में होता है तो आप अपनी परवरिश को मत कोसिए। ये हादसा किसी के घर में हो सकता है। बेहद निरीह मां-बाप के घर और उनके भी घर, जो संस्कारों का पाठ दूसरों को पढ़ाया करते हैं।
3-दुनिया में बदनामी जैसी कोई चीज नहीं होती। ये वो हौवा है, जिसे सिर्फ आपका मन पालता है। जिन कहानियों को बदनामी से जोड़ा जाता है, उनकी उम्र 10 दिन से लेकर छह महीने तक ही होती है। उसके बाद कोई चर्चा नहीं करता। बस आपको ही लगता रहता है कि हर जगह इसी बात की चर्चा हो रही होगी। समाज हमेशा नई कहानियों का इंतजार करता है। तो ऐसी किसी भी घटना से शर्म से सिर झुकाने की जरूरत नहीं है।
4-ऐसी घटनाओं को चटखारे लेकर सुनाने वालों के बीच जाकर हिम्मत से कहने की जरूरत है कि हां भाई हमारी बेटी घऱ से भाग गई है या हमारे बेटे ने ऐसा कर दिया है। अब बोलो कोई सजा दोगे, जाति से निकालोगे, समाज से बेदखल करोगे या फिर उसकी कहानियों से अपना मनोरंजन करोगे..?

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5- आपकी बालिग संतान ने अगर कोई फैसला लिया है तो पहले शांति के साथ, ठंडे दिमाग से ये परखिए कि वो फैसला कितना सही है और कितना गलत। अगर वो सही नजर आए तो संतान का साथ दीजिए। अगर खुद में उसके गलत फैसले को सही साबित करने का माद्दा नजर आए तो वो कीजिए। किसी की मत सुनिए, अपने दिल की सुनिए, अपने परिवार को भी उस पर राजी कीजिए।
6- अगर पूरी तरह सोच विचारकर आप इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि वाकई आपकी संतान ने गलत फैसला लिया है तो उसको उसके फैसले के साथ छोड़ दीजिए। कुछ सोचकर ही फैसला लिया है। आपको मृत मानकर ही ये कदम उठाया है। हानि-लाभ का आकलन करके ही ये फैसला लिया है। अब नफा-नुकसान उसकी किस्मत।

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7- ये सोच भी बहुत ठीक नहीं है कि ‘क्या करें, अपनी संतान को कोई छोड़ तो नहीं देता। अपनी संतान से सब हार जाते हैं।’ मेरी नजर में ये हारा हुआ ख्याल है। अपने साहस और व्यक्तित्व का समर्पण है। देश में हर महीने हजारों युवाओं की तमाम हादसों में मौत हो जाती है, तमाम बीमारियों से मर जाते हैं।दो-तीन महीने के मातम के बाद तकरीबन सभी परिवारों की जिंदगी पटरी पर आ जाती है।
8- मानव शरीर, मानव स्वभाव और उसकी संरचना ऐसी है कि वो किसी के बगैर भी जी सकता है। तो किसी चीज को अपनी कमजोरी न बनने दें। किसी भी इंसान को अपनी कमजोरी न बनने दें। भले ही वो आपकी संतान ही क्यों न हो। आपका अपना तो सिर्फ और सिर्फ आपकी सेहत और आप खुद ही हैं।

9- आपकी संतान ने अगर कुछ गलत किया है तो आप उसके साथ गलत मत कीजिए। दुश्मन नहीं है वो आपका। हिंसा तो बिल्कुल ही नहीं। कोसना और छाती पीटना बिल्कुल भी नहीं। आप अगर कुछ कर सकते हैं तो उसके गलत को सही करने की कोशिश कीजिए।
10- सुनील दत्त ने नरगिस से शादी की। शाहरुख खान ने गौरी से, आमिर ने लगातार दो हिंदू लड़कियों से शादी की, सुजैन खान ने रितिक रोशन से शादी की, नुसरत जहां ने जैन परिवार में शादी की। ये तो हिंदू-मुस्लिम वाली शादियां थीं। किसने इनकी शादियों पर एतराज जताया, किसने इनके मां-बाप को कोसा..? यहां जातीय नहीं, बल्कि मजहबी अंतर था, यानी समाज की नजर में और भी बड़ा पाप। फिर क्यों नहीं फतवे जारी हुए, क्यों नहीं आंदोलनकारी उनके घर प्रदर्शन करने पहुंचे..? दरअसल ऐसी खबरों पर चटखारे लेना फुरसतियों का काम है। आप फुरसतिये नहीं हैं। ऐसी घटना से अगर जिंदगी में सामना हो ही जाए तो योद्धा की तरह हालात का सामना कीजिए।

11- प्रेम कहानियां लैला-मजनूं, हीर-रांझा, सोहनी-माहिवाल, सलीम-अनारकली से लेकर साक्षी -अजितेश तक पहुंच गई हैं। जो भी कहानियां दुखांत हुईं, उनके पीछे या तो ऊंच नीच की भावना थी या फिर बदनामी का डर। तो ऊंच-नीच पर अपनी सोच बदलने की जरूरत है। आपकी संतान की गलत हरकत से आप गलत नहीं हो जाते। साक्षी की एक बात से तो मैं भी सहमत हूं कि जियो और जीने दो। थोड़ा स्वार्थी तो होना ही होगा। आप अपनी जिंदगी देखिए, उसे अपनी जिंदगी देखने दीजिए।
(इस पोस्ट का मकसद सिर्फ अपनी पीढ़ी को थोड़ा संबल देने और जीवन का एक नया नजरिया देने की कोशिश है, पोस्ट को कृपया उसी नजरिए से देखें।-धन्यवाद )

(वरिष्ठ पत्रकार विकास मिश्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)