Opinion – चीन का चलन चलनी जैसा है, मगर उसके बोल तो सूप जैसे ही हैं

चीन की पडोसी राष्ट्रों से संबंधों की नीति और इतिहास पर गौर कर लें, ताइवान स्वाधीन राष्ट्र है, पर चीन उसे हथियाना चाहता है।

New Delhi, Aug 13 : चीन का चलन चलनी जैसा है| मगर उसके बोल तो सूप जैसे ही हैं| आज भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर से बीजिंग में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि पाकिस्तान से वार्ता द्वारा कश्मीर का समाधान निकाल लें| उधर सौ दिन से आजादी और मानवाधिकार हेतु संघर्षरत हांगकांग की जनता की समस्याओं का निदान यही माओवादी सम्राट पुलिसिया बल से निकाल रहे हैं| याद करें चीन ने कितना ना–नुकुर किया था घोर आतंकी हाफिज सईद को अंतर्राष्ट्रीय अपराधी घोषित करने के लिये? जबकि वह भारतीय वायुयान के हाइजैक होने के कारण रिहा हुआ था| करोड़ों रूपये मेजर जसवंत सिंह अलग फिरौती के तौर पर कांधार में दे आये थे|

Advertisement

देखें जरा क्या चल रहा है हांगकांग द्वीप में? ब्रिटिश राज में तो वह चीन राष्ट्र से कई गुना अधिक संपन्न था| ठीक उलटा हो रहा है इसका कश्मीर घाटी में| इस जन्नत को पहले हिन्दू रजवाड़े ने चूसा, फिर दो मुस्लिम परिवारों (शेख और मुफ़्ती) ने निचोड़ा| अब मोदी ने मरहम का वादा किया है|
मगर हांगकांग के रूप में निर्धन लाल चीन की लाटरी 1999 में खुल गई थी, जब शताब्दी बाद इस उपनिवेश को मलिका-ए-बर्तानिया ने स्वतंत्रता दे दी थी| पहले यहाँ शासक मतदान द्वारा चुने जाते थे| कम्युनिस्ट राज में वोट नहीं, मनोनयन की पद्धति होती है| विरोध नहीं होता| अतः गत सप्ताह जब विक्टोरिया पार्क में आजादी और लोकशाही के लिये जनता जमा हुई, तो आंसू गैस और लाठीचार्ज से सामना पड़ा, संवाद से नहीं| आज हांगकांग का व्यापार ठप हो गया| पर्यटक उद्योग घटता गया| कम्युनिस्ट चीन के सत्तासीनों का आरोप है कि अमरीका, पड़ोसी ताइवान और चन्द शत्रु राष्ट्र हांगकांग को चीन से काटना चाहते हैं| “मुट्ठी भर अपराधी, उग्रवादी और मसखरे हांगकांग का नाश चाहते हैं|” हालाँकि इस द्वीप प्रान्त में साम्यवादी क्रांति के स्थापित हुए सात दशक हो गये| फिर भी मुख्य धारा में यह प्रान्त समाविष्ट नहीं हो पाया| कारण विस्तारवादी चीन का नव-उपनिवेशवाद ही है|

Advertisement

चीन की पडोसी राष्ट्रों से संबंधों की नीति और इतिहास पर गौर कर लें| ताइवान स्वाधीन राष्ट्र है, पर चीन उसे हथियाना चाहता है| पुर्तगालियों से मुक्त कराकर मकाओ को (1949 से) कम्युनिस्ट शासकों की रंगरलियों का अड्डा बना दिया गया है| वहां से मिलनेवाली राशि बीजिंग के खजाने में सालाना अकूत मात्रा में जमा होती है|
मगर अमानवीय दृष्टान्त तो चीन के उपनिवेशों का है| कश्मीर घाटी के मुसलमानों पर भारत के कथित अत्याचारों के सन्दर्भ में पाकिस्तान की बात माननेवाले चीन ने खुद अपने पश्चिमी प्रदेश शिनजियांग में क्या किया? मस्जिदों के सामने सूअर के गोश्त की दुकान खोल दी| हज को बंद कर दिया| नमाज का समय सीमित कर दिया| अरबी ख़त्म कर मंडारिन भाषा थोप दी| ग्यारह लाख मुसलमानों को पुनर्प्रशिक्षण शिविरों में कैद कर नास्तिकता का पाठ पढाया जा रहा है| मार्क्स को मोहम्मद से बड़ा बताया जा रहा है| कुरान को प्रतिबंधित कर दिया गया है |

Advertisement

तिब्बत जैसा शिनजियांग क्षेत्र में भी किया गया| बहुसंख्यक हान नस्ल के पुरूषों से मुसलमान महिलाओं से जबरन शादी करायी जाती है| जैसे तिब्बत में बौद्ध संप्रदाय के साथ हो रहा है| उइगर के सुन्नी भी जल्दी ही इतिहास हो जायेंगे| इस्लामी पाकिस्तान की पूरी जानकारी में और स्वीकृति से चीन ऐसा कर रहा है| अब राजधानी काशगर को कराची से सड़क मार्ग से जोड़ दिया गया है| यह भी पाक-अधिकृत कश्मीर क्षेत्र से होकर जाता है|
दुखद अचम्भा होता है कि इन वारदातों पर भी भारत की इस्लामी तंजीमें और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट राष्ट्रहित में कदम नहीं उठा रहे हैं| उनका यह विश्ववाद है, शायद!

(वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)