Opinion – टीवी में चीत्कार करने वाले ज़्यादातर एंकर इसी प्रजाति के हैं

इधर देख रहा हूँ कि संघ में दीक्षित कुछ पत्रकार बेअंदाज़ हो गए हैं. सत्ता का अहंकार सर चढ़ कर बोलने लगा है।

New Delhi, Aug 30 : आज सुबह सुबह फिर एक गणवेशधारी पत्रकार मित्र ने उलाहना दे दिया : यार आप जब देखो बीजेपी की सरकार को को कोसते रहते हो जबकि इसी पार्टी के सीएम ने आपको सूचना आयुक्त बनाया था. क्या सूचना आयुक्त बनाने से पहले आपने मुझे बीजेपी या कांग्रेस किसी की भी चमचागिरी करते हुए देखा था – मैंने पूछा.
वो तो ठीक है लेकिन कुछ तो अहसान मानो, भाई ने कहा.

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कोई आम आदमी ये वाला तर्क दे तो समझ में आता है. लेकिन एक पत्रकार से आप इस तरह के वक्तव्य की अपेक्षा नहीं करते. ये पत्रकारिता का मिजाज नहीं है. वैसे भी मै कोई ओएसडी या प्रेस सलाहकार थोड़े ही बना था. आरटीआई की बात अलग है. एक्ट में ही लिखा है इसके आयोग में पत्रकार लिए जा सकते हैं. इससे पहले भी पत्रकार होने के नाते एकाध कमेटियों में रहा हूँ. पत्रकार संघटन स्वयं कई कमेटियों में अपने प्रतिनिधि भेजते हैं. इसका मतलब ये तो नहीं हुआ न कि जिस सरकार के समय आप किसी कमेटी में गए उसके गुण गाने लगो. ऐसे ही सोच प्रभावित होने लगे तो पत्रकारिता क्यों करनी, पकोड़े बेच लो.

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ये भी बता दूँ कि जाती तौर पर बीजेपी और कांग्रेस, दोनों पार्टियों को नापसंद करने के बावजूद मैंने इनके समर्थकों के साथ कभी भेदभाव नहीं किया. मुझे याद है जब मै चैनल प्रमुख की हैसियत से नियुक्त करने की स्थिति में आया तो मैंने ये मालूम होने के बावजूद कि अमुक अभ्यर्थी संघ या कांग्रेस का है, कभी भी भेदभाव नहीं किया. न उनसे कभी ये अपेक्षा की कि पत्रकार के रूप में वो वही लिखें जो मै चाहता हूँ. मुझे अच्छी तरह से याद है उत्तरप्रदेश के एक मंत्री ने जो मुझे जानते थे साफ़ साफ़ कहा कि ये लड़का हमारे प्रचारक का पुत्र है और खुद भी आरएसएस का कार्यकर्ता है लेकिन मै चाहता हूँ कि आप इसका इंटरव्यू कर लें और फिर निर्णय करैं – ये साहब सलेक्ट हुए और आज कहीं ब्यूरो चीफ हैं. ऐसे कई उदाहरण हैं – वो भी जानते हैं और मै भी.

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लेकिन इधर देख रहा हूँ कि संघ में दीक्षित कुछ पत्रकार बेअंदाज़ हो गए हैं. सत्ता का अहंकार सर चढ़ कर बोलने लगा है. पहले ऐसा नहीं था. कई पुराने संघी पत्रकार अपने मित्र रहे हैं. कभी भी उन्हे मर्यादा की सीमा लांघते नहीं देखा. आजकल तो ये सब सामान्य जीवन में भी सोशल मीडिया की संस्कार विहीन भाषा बोलने लगे हैं. टीवी में चीत्कार करने वाले ज़्यादातर एंकर इसी प्रजाति के हैं…..मै जानता हूँ इसलिए कह रहा हूँ.

( चर्चित वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)