Opinion – कभी के महाबली आज कहीं के नहीं

वेस्टइंडीज की गेंदबाजी मे थोड़ा पैनापन जरूर था और विशेष रूप सै कैमर रोच ने तेजी के साथ ही मूवमेन्ट से जब तब भारतीय शीर्ष क्रम को गंभीर झटके भी दिए ।

New Delhi, Sep 04 : सवाल उठता है बार बार अब कि कैरेबियाई द्वीप पुंज के देशों को बजाय वेस्टइंडीज टीम क्या अपना पृथक अस्तित्व रखते हुए क्रिकेट मैदान मे नहीं उतरना चाहिए ? क्योंकि आज की तारीख मे इण्डीज टीम बाग्लादेश से भी पार नहीं पा सकती, ऐसा अधोपतन उसका हो चुका है। यही कारण है कि जब विराट कोहली की भारतीय टीम ने चार दिन मे ही दोनो टेस्ट मैचों मे मेजबानो को निबटा कर सिरीज मे उनको धो दिया तब कहीं से भी आश्चर्य नहीं हुआ। बल्कि खेल के तीनों संस्करण मे भारतीयों का एक छत्र राज्य देख कर कोफ्त ही ज्यादा हुई।

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क्रिकेट जब संघर्षहीन हो जाती है तब इस खेल का निहायत उबाऊ होना स्वाभाविक ही है। आप ही बताइए कि जब सामने वाली टीम बल्लेबाजी के लिहाज से चारों पारियों मे एक बार भी ढाई सौ रन का आँकड़ा तक पार न कर सके, यह देख कर क्या दिलचस्पी मर नहीं जाएगी ? 100 और 117 पर वेस्टइंडीज के ढेर होने को आप और क्या कहेंगे? भारतीय जीत का अंतर भी क्रमशः 318 और 257 रन, टेस्ट चैम्पियनशिप के आगाज पर उसकी श्रेषठता की कहानी स्वयं सुना रहा है और बता रहा है हैट्ट्रिक वीर बुमराह जैसे प्रलयंकारी गेदबाज की अगुवाई मे भारतीय आक्रमण के पैनेपन को।

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दो राय नहीं कि एक जमाने मे अपने स्पिनर्स पर ही आश्रित रहने वाला भारत आज खेल के इस विभाग मे दुनिया की शीर्षस्थ टीमों मे है । जिसके पास खास तौर से मध्यम गति के तेज गेंदबाजों की लम्बी चौड़ी फौज खड़ी है। स्पिन और तेज का अद्भुत मिश्रण 14 जून 2021 को इस पांच दिवसीय संस्करण की पहली चैम्पियनशिप के समापन पर यदि भारत को पोडियम पर खड़ा नहीं करता तो आश्चर्य होगा।
दो राय नहीं कि वेस्टइंडीज की गेंदबाजी मे थोड़ा पैनापन जरूर था और विशेष रूप सै कैमर रोच ने तेजी के साथ ही मूवमेन्ट से जब तब भारतीय शीर्ष क्रम को गंभीर झटके भी दिए । लेकिन हद से गयी गुजरी बल्लेबाजी ने उसको नीचा देखने पर विवश कर दिया। आपने देखा होगा कि मेजबान टीम की ओर से जमैका मे खेले गए दूसरे व अंतिम टेस्ट मे ब्रूक्स ही कुल जमा एक अर्धशतक लगा सके।

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किसी भी खेल की लोकप्रियता का पैमाना उसके अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन पर निर्भर करता है । इस लिहाज से इसी वेस्टइंडीज को जब महाबली के रूप मे लिया जाता था तब खचाखच भरे मैदान पर कैलिप्सो की मादक धुन पर थिरकते दर्शक और बेक होते नानवेज भोजन की भीनी सुगंध के आलम का क्या पूछना !
बल्लेबाजी मे “काला मोती” वाली हैमन्ड से लगायत ब्रायन लारा तक गेंदबाजो की निर्मम पिटाई करने वाले कालजयी बल्लेबाजों की एक लम्बी श्रृन्खला का विश्व क्रिकेट साक्षी रहा है। महानतम हरफनमौला सर गारफील्ड सोबर्स हों या गेंद के चिथड़े उड़ाने वाले किंग विवियन रिटर्ड्स और दुनिया के सफलतम कप्तान क्लाइव लायड आदि ने कैरेबियाई टीम को सफलता के एवरेस्ट पर कभी पहुँचाया था।

वैसे ही वेस्ली हाल से लेकर कर्टली एम्ब्रोस तक इस देश के पास मारक गेंदबाजो की एक ऐसी सेना को दुनिया के क्रिकेट प्रेमियों ने देखा है जिनके आगे बड़े से बड़े बल्लेबाज पनाह माँगा करते थे।
आज वही वेस्टइंडीज खेल के हर विभाग मे इतना गरीब और दरिद्र हो चुका है कि उसके मैदानों से दर्शक भाग खड़े हुए। अब इस क्षेत्र मे युवा पीढी क्रिकेट की बजाय बास्केटबाल और एथलेटिक्स की ओर मुड़ चुकी है।
यही कारण था कि 2002 मे अंतिम पराजय के बाद भारत ने इस टीम के खिलाफ लगातार आठवीं टेस्ट सिरीज अपने नाम की। बतौर कप्तान विराट कोहली ने 48 वें टेस्ट मे सबाइना पार्क मे मिली अपनी 28वीं विजय के साथ धोनी ( 60 टेस्ट 27 विजय ) को पीछे छोड़ते हुए नया कीर्तिमान स्थापित किया।

हनुमा बिहारी ने सिरिज मे एक शतक और दो अर्धशतको के बल पर 264 रन सिरीज मे बना कर टीम मे शतक के साथ जबरदस्त वापसी करने वाले आजिन्क्य रहाणे के साथ भारतीय बल्लेबाजी का भार सफलता के साथ जहाँ अपने कंधो पर उठाया वहीं इस हैदराबादी ने टीम मे अपने चयन के औचित्य को भी सिद्ध किया। के एल राहुल और पुजारा के लिए यह सिरीज हाहाकारी रही। हाँ हर दिन एक उपयोगी आलराउण्डर के तौर पर निखर रहे रविन्द्र जडेजा ने अपने प्रदर्शन मे जरूर स्थायित्व दिखाया।
कुल मिला कर इस सिरीज से 128 अंक अर्जित करने वाली भारतीय टीम को इसी माह अपेक्षाकृत मजबूत दक्षिण अफ्रीका से अपने घर मे दो दो हाथ करना है। समय साबित करेगा कि कैरेबियाइयो के तौर पर निर्बल बकरो को रौदने वाली टीम दक्षिण अफ्रीका के सम्मुख उम्मीदों को कितना परवान चढाने मे कामयाब होती है।

(वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)