पितरों के स्वर्गवास की तिथि को लेकर है जरा सा भी कन्फ्यूजन तो इस दिन कर सकते हैं श्राद्ध
ऐसी मान्यता है कि इन दिनों पितृ अपनों को आशीर्वाद देने आते हैं और घर आए इन मेहमानों को तृप्त करना ही तर्पण कहलाता है ।
New Delhi, Sep 13: श्राद्ध पक्ष् या पितृ पक्ष शुक्रवार 13 सितंबर से शुरू हो गए हैं, ये 28 सितंबर तक चलेंगे । धर्मग्रंथों की मान्यता के अनुसार पितृपक्ष के दौरान पितरों को तृप्त करने के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। यानी हमारे वो परिजन जो अब हमारे साथ नहीं है उन्हें याद करने, उनकी इच्छाओं की पूर्ति, उन्हें तृप्त करने के लिए ये श्राद्ध किए जाते हैं। पितरों का श्राद्ध उस तिथि पर किया जाता है जिस दिन उन्होने देह छोड़ी थी । यदि आप इस तिथि को लेकर असमंजस में हैं तो परेशान ना हों, एक ऐसी तिथि भी है जिस दिन आप पितरों का श्राद्ध बिना उनकी तिथि के भी कर सकते हैं, और इसका शुभ फल भी आपको प्राप्त होगा ।
इस तारीख पर करें श्राद्ध
यदि आपको अपने पितरों के स्वर्गवास की तिथि का पता नहीं है तो इस माह के अमावस्या तिथि कोउनका श्राद्ध कर्म कर सकते हैं । इस अवधि में श्राद्ध कर्म से पूर्वजों को तृप्ति मिलती है और कहा जाता है कि उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितरों के लिए श्राद्ध घर पर किया जाता है, तर्पण भी घर पर ही होता है । कई लोग मंदिरों, पवित्र स्थानों या फिर नदी किनारे भी करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों पितृ अपनों को आशीर्वाद देने आते हैं और घर आए इन मेहमानों को तृप्त करना ही तर्पण कहलाता है ।
श्राद्ध से जुड़ी जानकारी
पितृपक्ष आश्विन माह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होते हैं, जो 13 सितंबर से शुरू हो गए हैं । हिंदू पुराणों में 12 तरह के श्राद्ध बताए गए हैं, नित्य श्राद्ध, नैमित्तिक श्राद्ध, काम्य श्राद्ध, वृद्धि श्राद्ध, सपिंदन श्राद्ध, पार्वन श्राद्ध गोष्ठी श्राद्ध, शुद्धयार्थ श्राद्ध, र्कामांग श्राद्ध, श्रद्धालुओं के लिए श्राद्ध, पुष्टयार्थ श्राद्ध। श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वजों को याद करने से , उनके नाम से दान आदि करने से बहुत लाभ होता है, पितृ आपको आशीर्वाद देते हैं और आपके घर सौभाग्य का आगमन होता है ।
मान्यताएं
श्राद्ध पक्ष को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं, जैसे इस पक्ष में नए वस्त्र आदि नहीं खरीदने चाहिए, खरीदें भी तो दान आदि कर्म के लिए खरीदें । शराब, मांस आदि का सेवन ना करें । दान सामर्थ्यानुसार जरूर करें । मंदिर में जाएं, ईश्वर को याद करें । घर पर पूजा करते हुए अपने पितरों को जरूर याद करें । इस अवधि में पितरों के लिए बनाए भोग को गाय को कभी ना दें, इसे कौवे, कुत्ते, भैंस आदि जानवरों को ही खिलाने की मान्यता है । ऐसा करना शुभता का कारक है ।