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Opinion – फिरोज गांधी – शायद इसीलिए नेहरू-गांधी परिवार ने उन्हें भुला दिया!

फिरोज गांधी – वे सरकारी धन के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ थे। शायद इसीलिए नेहरू-गांधी परिवार ने उन्हें भुला दिया।

New Delhi, Sep 13 : कहते हैं कि जिसकी घर में इज्जत नहीं होती उसकी बाहर भी पूछ नहीं होती। यह उक्ति फिरोज जहांगीर गांधी पर पूरी तरह फिट बैठती है। आज उनकी जयंती है।
फिरोज गांधी यानी इंदिरा गांधी के पति, राजीव गांधी और संजय गांधी के पिता, राहुल गांधी, प्रियंका बाड्रा और वरुण गांधी के दादा। वही फिरोज जिनके श्वसुर जवाहर लाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे। पत्नी इंदिरा और पुत्र राजीव भी प्रधानमंत्री बने। ये सब तो याद किये जाते हैं, लेकिन फिरोज भुला दिए गए। इलाहाबाद में उनकी समाधि दशकों से बाट जोह रही है कि कोई वंशज आकर श्रद्धा के दो पुष्प चढ़ा दे। लेकिन भूले भी कोई वहां नहीं जाता।

फिरोज देश के पहले विशिलब्लोअर थे। 1957 का वर्ष था। वे रायबरेली से दूसरी बार सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे थे। उन्होंने अपने श्वसुर की सरकार के वित्तमंत्री टीटी कृष्णमाचारी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। संसद में दस्तावेजों के साथ उन्होंने मूंदड़ा कांड का पर्दाफाश किया था। सबूत इतने अकाट्य थे कि न चाहते हुए भी प. नेहरू को अपने वित्त मंत्री का इस्तीफा लेना पड़ा था। मूंदड़ा एक कारोबारी थे और कांग्रेस को चंदा देते थे। उनकी कंपनी दिवालिया होने के कगार पर थी। वित्त मंत्रालय के दबाव पर LIC ने उनकी कंपनी के शेयर काफी महंगे दाम में खरीदे थे। इसी पर फिरोज गांधी ने सवाल खड़ा किया था।

बाद में जब उनकी पत्नी इंदिरा गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं तो उनके दबाव पर 1959 में केरल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बर्खास्त कर दी गई थी। इसपर पति-पत्नी के बीच तीखी बहस हुई थी। उस समय नाराज होकर फिरोज ने प्रण किया था कि वे कभी प्रधानमंत्री निवास नहीं आयेंगे। इसका उन्होंने पालन भी किया। उनका शव ही त्रिमूर्ति भवन में गया था।
महात्मा गांधी ने फिरोज गांधी के बारे में कहा था कि अगर मुझे फिरोज जैसे 7 युवा मिल जायें तो वे एक साल में स्वराज हासिल कर लेंगे।

वे सरकारी धन के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ थे। शायद इसीलिए नेहरू-गांधी परिवार ने उन्हें भुला दिया। लेकिन देश ने इस सपूत को क्यों भुला दिया?
उस महापुरुष को, जिसने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी पार्टी और अपने श्वसुर की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला, कोटिश: नमन और श्रद्धांजलि.

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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