Opinion – सोनाक्षी सिन्हा : भूल सुधार की उनके पास यही सूरत बची है

राम जी को हमारे जीवन में सरकार या कोई राजनीतिक दल वापस नहीं ला पाएगा बल्कि इस के लिए हमारे समाज को ही हर स्तर पर कठिन आराधना करनी होगी।

New Delhi, Sep 22 : हमारे बचपन में हर गली हर मुहल्ले में रामलीला होती थीं। इनका हिस्सा हिंदू मुसलमान सभी होते थे। शाम को घर का काम ख़त्म कर सभी की कोशिश होती कि घर के समीप की किसी बड़ी रामलीला को देखने जाएं। फिर रामलीलाओं में प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगीं और उस में नर्तक आदि बुलाए जाने लगे। इस से संस्कृति से जुड़े लोग धीरे धीरे दूर होने लगे लेकिन वह अधिक जुड़ने लगे जिनका उद्देश्य धार्मिक और सांस्कृतिक संतुष्टि नहीं अपितु मनोरंजन पाना था। शायद उसी समय में हम लोगों को वहां जाने से घर वालों ने मना किया। रही सही कसर रामानंद सागर जी ने पूरी कर दी और घर घर रामायण दूरदर्शन के माध्यम से पहुंचा दी गई।

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एक एसा समय भी आया कि रामलीला के मंचन की जगह बड़े पर्दे पर दिखाई जाने वाली रामायण ने ले ली। आरंभ में इसका सभी ने आनंद लिया क्योंकि पर्दे के दोनों ओर दर्शक बैठ जाते थे और रामायण का आनंद लेते थे।
भू माफिया के चलते और पार्क समाप्त हो जाने के कारण रामलीला मंचन के स्थान भी समाप्त होते चले गए। अब इक्का दुक्का स्थान पर ही रामलीला मंचन होता है। जहां बड़े स्तर पर होता है वहां आप हर दिन नहीं जा सकते।

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पश्चिमी बंगाल ने अपने यहां दुर्गा पूजा को संस्कृति से इस प्रकार जोड़ा हुआ है कि दुर्गा पूजा पंडालों का व्यापक प्रोत्साहन होता है। हमें रामलीलाओं को भी उसी प्रकार आगे बढ़ाना था लेकिन हम राम के नाम से की जाने वाली राजनीति में इस प्रकार उलझ गए कि राम राम से जय श्री राम तक तो पहुंच गए किन्तु मर्यादा पुरषोत्तम राम जिन को अल्लामा इक़बाल ने क्या सुंदर अभिव्यक्ति से सजाया है और इमामे हिंद कहा है, आज हमारी संस्कृति से दूर हो गए हैं।
यह हमारे समय की त्रास्दी ही कही जायेगी कि सोनाक्षी सिन्हा को यह तक नहीं मालूम था कि हनुमान जी किन के लिए संजीवनी बूटी लेने गए थे जबकि हमारे घर में सब एक दूसरे को देख रहे थे कि इतना भी नहीं मालूम।

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सोनाक्षी सिन्हा के बारे में यह कहते हुए इस कारण भी दुख होता है कि वह एक एसे परिवार में जन्मी पली बढ़ी हैं जिस में सभी का नाम रामायण से ही जुड़ा है। उनका घर रामायण, उनके पिता शत्रुघन, चाचा राम, लखन और भरत यहां तक कि उनके भाइयों तक का नाम लव और कुश है और सब से बड़ी बात यह कि उनके पिता उस समय भाजपा का हिस्सा रहे थे जब राम मंदिर आंदोलन अपने ज़ोर पर था।
यह केवल एक फ़िल्मी परिवार का मामला नहीं है बल्कि हमें सोचना होगा कि जो नई नस्ल सोनाक्षी जैसों को अपना आइडल या आराध्य मान लेती है उनके जीवन से भी कहीं रामायण दूर न हो गई हो।

मुझे राम इस लिए पसंद हैं कि वह त्याग की मूरत हैं, वह अपने पिता के कहने पर राज सिंहासन त्याग कर जंगलों का कठिन जीवन जीने निकल पड़ते हैं। वह भी एक दो वर्ष के लिए नहीं बल्कि चौदह वर्षों के लिए। रावण से भी उनका युद्ध अंतिम समय तक टालने की कोशिश होती है किन्तु जब रावण अपनी हद में नहीं रहता तब राम युद्ध करते हैं। रावण के अंतिम छनों में भी वह उसके ज्ञान का सम्मान करने से नहीं चूकते और लक्ष्मण से उसे पानी पिलाने को और ज्ञान पाने को कहते हैं। लक्ष्मण चरणों के स्थान पर सर के पास बैठते हैं और ज्ञान से वंचित रह जाते हैं।
एसे मर्यादा पुरषोत्तम राम किसे पसंद नहीं आएंगे और कौन उनके बताए रास्ते पर चल कर रोशनी नहीं पाना चाहेगा। अफ़सोस हमारे जीवन से एसे राम की लीला दूर हो गई हैं।

आव्यशक्ता है देश को फिर मर्यादा पुरषोत्तम राम जी से जोड़ने की जो धार्मिक मान्यता के अनुसार मेरे साथी देश वासियों के भगवान हैं ही किन्तु मेरी अपनी सांस्कृतिक धरोहर भी हैं। राम जी को हमारे जीवन में सरकार या कोई राजनीतिक दल वापस नहीं ला पाएगा बल्कि इस के लिए हमारे समाज को ही हर स्तर पर कठिन आराधना करनी होगी। जहां तक सोनाक्षी सिन्हा की बात है उन्हें घर में बैठ कर कई दिन तक रामायण पढ़नी चाहिए और हो सके तो इतनी रट लेनी चाहिए कि आगे हो सके तो वह राम कथा वाचन कर सकें। भूल सुधार की उनके पास यही सूरत बची है।
दिलों के बीच बना दे जो प्यार का सेतु।
उस आला ज़ात को भगवान राम कहते हैं।।”

(वरिष्ठ पत्रकार तहसीन मुनव्वर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)