इस गांव के लोग रावण का दहन नहीं बल्कि पूजा करते हैं, मानते हैं पूर्वज और अराध्य
एक ग्रामीण ने बताया कि आर्यन रावण का विरोध करते हैं, वाल्मीकि रामायण में रावण के 10 सिर नहीं हैं, लेकिन तुलसीदास ने रावण के दस सिर और बीस भुजाएं बना दी जो गलत है।
New Delhi, Oct 08 : दशहरा में जहां पूरे देश में रावण का पुतला फूंककर असत्य का प्रतीक मानकर उत्सव मनाया जाता है, वहीं एक गांव ऐसा भी है, जहां रावण की पूजा की जाती है, मंडला जिले के वन ग्राम डुंगरिया में रावण को गोंडवाना भू-भाग गोंडवाना साम्राज्य का महासम्राट, महाज्ञानी, महाविद्वान और अपना पूर्वज मानकर दशहरा के दिन उसकी पूजा की जाती है।
रावण का मंदिर
इस गांव में रावण का मंदिर भी बनाया गया है, अभी कच्चा और घास-फूंस का बनाया हुआ है, उसे रावण के अनुयायी भव्य मंदिर में बदलना चाहते हैं,
मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले के वन ग्राम डुंगरिया में ये रावण का मंदिर बना हुआ है। जहां लोग पूजा करने के लिये आते हैं।
ऐसा है रावण का मंदिर
लकड़ी, बांस और घास-फूंस से तैयार इस मंदिर में रावण की बड़ी सी तस्वीर रखी हुई है, जिसके सामने ज्योत जलती रहती है, रावण को अपना पूर्वज और अराध्य मानने वाले इस गांव के लोग उसकी पूजा करते हैं, रावण के अनुयायियों का कहना है कि वो एक महान विद्धान, संत, वेद शास्त्रों का आचार्य, महापराक्रमी और दयालु राजा थे, ये राम-रावण युद्ध को आर्यन और द्रविण का युद्ध मानते हैं।
हमारे पूर्वज
गांव के युवा बताते हैं कि पहले हमें रावण के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि वो हमारे पूर्वज हैं, इस धरती में उनका अच्छा राज चला है, इसलिये हम उन्हें अपना अराध्य मानकर इनकी पूजा करते हैं, महाराज रावण बहुत महान और प्रतापी थे, उन्हें सब चीजों का ज्ञान था, वो इतने बलशाली थे, कि उनके चलने से धरती कांपने लगती थी, पिछले साल यहां मंदिर बनाकर उनकी पूजा शुरु की गई, जिसमें बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग शामिल होते हैं।
दहन नहीं पूजन होगा
एक ग्रामीण ने बताया कि आर्यन रावण का विरोध करते हैं, वाल्मीकि रामायण में रावण के 10 सिर नहीं हैं, लेकिन तुलसीदास ने रावण के दस सिर और बीस भुजाएं बना दी जो गलत है, हम जानते हैं, कि रावण हमारे पूर्वज हैं, और गोंडी धर्म को मानते हैं, इसलिये हमने मंदिर बनाकर उनकी पूजा शुरु की है।