Opinion – भारत अगर आज पूरी दुनिया में सैन्य ताकत है तो इसकी एक बहुत बड़ी वजह वीर सावरकर हैं

दूरदृष्टा वीर सावरकर ये बात जानते थे कि भारत के आज़ाद होने का समय निकट है और कांग्रेस की नीतियों की वजह से इसका बंटवारा भी होना तय है।

New Delhi, Oct 18 : वीर विनायक दामोदर सावरकर को क्यों नहीं मिलना चाहिए भारत रत्न ? मिलना चाहिए, बिल्कुल मिलना चाहिए, क्योंकि इससे वीर सावरकर नहीं बल्कि खुद भारत रत्न जैसा सम्मान सम्मानित हो जाएगा। ये और बात है कि इससे “सावरकर सिंड्रोम” से ग्रस्त सिकलुर गैंग को बुरा लग सकता है, खैर वीर सावरकर को भारत रत्न मिलना चाहिए, इसकी सैकड़ों वजह हैं, लेकिन आज मैं जिस वजह से सावरकर को भारत रत्न देने का समर्थन कर रहा हूं वो ऐसा ऐतिहासिक तथ्य है जिसे भारतीय इतिहास का सबसे विवादित पन्ना भी कहा जा सकता है। मैं ये पूरी शिद्दत से मानता हूं कि भारत अगर आज पूरी दुनिया में सैन्य ताकत है तो इसकी एक बहुत बड़ी वजह वीर सावरकर हैं।

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तो आइए अध्ययन करते हैं उस दौर का, वो दूसरे विश्व युद्ध का दौर था, अंग्रेज़ घिरे हुए थे, उन्हे भारतीय युवकों की सेना में ज़रूरत थी। अब देखते हैं उस दौर में ब्रिटिश सेना में भारतीयों का आंकड़ा क्या था। ब्रिटिश सेना में जो भारतीय थे, उसमें मुस्लिम सैनिकों की तुलना में हिंदु सैनिकों की संख्या काफी कम थी। इतना ही नहीं उस दौर में भारतीयों पर लाइसेंसी शस्त्र रखने पर पाबंदी थी। दूरदृष्टा सावरकर ने इसे मौके की तरह देखा, वो हिंदू समाज का सैन्यीकरण करना चाहते थे, और इसीलिए उन्होने हिंदु युवाओं से आह्वान किया कि वो सेना में भर्ती हों,  उन्होने पूरे देश का चक्रवाती दौरा किया और इसी दौरान कानपुर की एक सभा में उन्होने कहा कि – “आज ब्रिटिश सरकार की मजबूरी है कि वो आपके हाथों में हथियार और गोला बारूद सौंप रही है, पहले आपको पिस्तौल रखने पर कारावास हो जाता था लेकिन आज अंग्रेज आपको रायफल, मशीनगन, तोप दे रहे हैं। आप पूर्ण प्रशिक्षित सैनिक और सेनानायक बनो, पानी के जहाज और लड़ाकू वायुयान भी हमारे हाथों में होंगे।

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आपको कागज़ से स्वराज नहीं मिलेगा, स्वराज तब मिलेगा जब आपके कंधों पर रायफल होगी”
सावरकर की इस मुहिम का असर हुआ और बड़ी तादाद में हिंदू युवा सेना में भर्ती हुए। इसे देखकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के चांसलर और पाकिस्तान आंदोलन के नेता सर जियाउद्दीन अहमद ने कहा कि – “जल, थल और वायुसेना में हिंदु नौजवान तेज़ी से भर्ती हो रहा है, ये मुसलमानों के लिए चिंता की बात है”… 1946 तक आते-आते मुस्लिम लीग के मुखपत्र डॉन में जिन्ना ने ये चिंता जताई की जिस तेज़ी से सेना में हिंदु शामिल हो रहे हैं वो एक खतरनाक संदेश है। दरअसल जिस बात का डर जिन्ना को 1946 में लगा था वो 1947 में सही साबित हुआ।

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दूरदृष्टा वीर सावरकर ये बात जानते थे कि भारत के आज़ाद होने का समय निकट है और कांग्रेस की नीतियों की वजह से इसका बंटवारा भी होना तय है। ऐसे में जब दोनों देशों की सेना का बंटवारा होगा तो उसका अनुपात क्या होगा ? सावरकर ने जो सोचा था वही सही साबित हुआ। 1947 में बंटवारे के समय सभी सैनिकों के सामने भारत और पाकिस्तान की सेना में शामिल होने का विकल्प रखा गया। करीब-करीब सभी मुस्लिम सैनिकों ने पाकिस्तान की सेना में शामिल होने का विकल्प चुना और हिंदु सैनिकों ने भारत की सेना के साथ रहने का फैसला किया। आजादी को अभी तीन महीने पूरे भी नहीं हुए थे कि पाकिस्तानी सेना ने कबायली भेष में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया और तब काम आए वही सैनिक जिन्होने बंटवारे के वक्त भारतीय सेना को चुना था। सोचिए क्या होता अगर सावरकर के आहवान पर हिंदू समाज सेना में भर्ती नहीं होता ? तो क्या कश्मीर आज हमारा होता. बिल्कुल नहीं।

खैर… अब आप सोच रहे होंगे कि दूसरे विश्व यु्द्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के लिए भर्ती कैंप लगाने वाला सावरकर देशभक्त कैसे हो गया ? आपके मन में ये भी सवाल उठ रहा होगा कि तब गांधी और नेहरू ब्रिटिश सरकार के बारे में क्या सोच रहे थे ? तो आइए शुरुआत करते हैं गांधी से…
भारत छोड़ो आंदोलन शुरु होने से ठीक दो दिन पहले 7 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सामने दिए अपने भाषण में कहा कि – “कभी भी ये विश्वास मत कीजिए कि ब्रिटेन युद्ध में हार जाएगा, मैं जानता हूं कि ब्रिटेन डरपोकों का राष्ट्र नहीं है, हार मानने के बदले वो खून की आखिरी बूंद तक लड़ेंगे, पर थो़ड़ी देर के लिए कल्पना कीजिए कि युद्ध नीति की वजह से कहीं मलेशिया, सिंगापुर और बर्मा की तरह उन्हे भारत छोड़ना पड़ा तो हमारी दशा क्या होगी, जापानी भारत पर चढ़ दौड़ेंगे और उस समय हम तैयार भी न होंगे। भारत पर जापानियों का अधिकार हो जाने का मतलब है चीन और शायद रूस का भी अंत, हम चीन और रूस की हार का मोहरा नहीं बनना चाहते, इसी पीड़ा के फलस्वरूप भारत छो़ड़ो प्रस्ताव पारित किया गया है। आज ब्रिटेन को बुरा लग सकता है और वो लोग मुझे अपना दुश्मन समझ सकते हैं लेकिन कभी वो भी कहेंगे कि मैं उनका दोस्त था”

आइए अब जानते हैं दूसरे विश्व युद्ध में चाचा नेहरू के विचार क्या थे जब आजाद हिंद फौज के सहयोग से जापान की सेना भारत की सीमा तक पहुंच गई थीं। चूंकि चाचा नेहरू पर कुछ लिखने पर सिकलुर गुस्सा हो जाते हैं इसीलिए इसके लिए मैंने चुना है परमपूजनीय समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया को, लोहिया की किताब “भारत विभाजन के गुनहगार” में नेहरू जी को उन्होने “पागल” बताते हुए लिखा है कि – “सन 1942 के कुछ महिनों में नेहरू की विक्षिप्त (पागलपन) प्रतिक्रियाएं कम से कम कुछ हद तक सुभाष चंद्र बोस से इर्ष्यावश थीं, तब उन्होने जापानियों से मुकाबले के लिए लाखों गुरिल्ला फौज तैयार करने के अपने इरादे और अपनी ताकत का ऐलान किया था” दरअसल दूसरे विश्वयुद्ध में जापान जब भारत की सीमा तक पहुंच गया था तो चाचा नेहरू ने ऐलान किया था कि वो खुद तलवार लेकर ब्रिटिश सेनाओं के साथ पूर्वी सीमाओं पर जापानियों से लड़ने जाएंगे, यानि एक तरह से गांधी और नेहरू दूसरे विश्व युद्ध मे ब्रिटिश सेना के साथ थे।

आइए अब जानते हैं कि जापान के सहयोग से ब्रिटिश सरकार को उखाड़ने का सपना देख रहे आजाद हिंद फौज के नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस वीर सावरकर के लिए उस दौर में क्या कह रहे थे। 25 जून 1944 को आजाद हिंद रेडियो से नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सावरकर के बारे में खुद अपनी आवाज़ में कहा कि – “जब राजनीतिक गुमराही और दूरदर्शिता की कमी के कारण, कांग्रेस पार्टी का हर नेता आजाद हिंद फौज के जवानों को भाड़े का सिपाही कहकर ताना मार रहा है, वैसे समय में ये जानकर बहुत खुशी हो रही है कि वीर सावरकर पूरे साहस के साथ भारत के युवाओं को फौज में शामिल होने के लिए लगातार भेज रहे हैं। ये युवा सैनिक आज हमारी आजाद हिंद फौज की ताकत बन चुके हैं।”

चलिए अब वापस आते हैं मुद्दे पर… सावरकर को क्यों मिलना चाहिए भारत रत्न ??? और हिंदू समाज के सैन्यीकरण का क्या हुआ इस देश को फायदा ??? 1946 तक ब्रिटिश सेना में भारतीयों की तादाद करीब 25 लाख तक की हो चुकी थी (मेरे दावे की पड़ताल करने लिए आप आज़ाद हैं)… और इसी दौरान होती है वो घटना जिसकी वजह से भारत को मिली आजादी… 1946 में भारतीय नौसेना में बगावत होती है (ये कहानी फिर कभी)… और अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ता है, क्योकि सेना में भारतीयों की तादाद बहुत ज्यादा हो चुकी है… और इन्ही हालात में भारत की आजादी का ऐलान हो जाता है… सोचिए… अगर ब्रिटिश सेना में भारतीय न होते तो क्या ऐसा होता ??? तो दिल पर हाथ रखिए और पूछिए सवाल कि – स्वातंत्रयवीर विनायक दामोदर सावरकर को क्यों नहीं मिलना चाहिए भारत रत्न ???

महत्वपूर्ण – तो आप सोच रहे होंगे की वीर सावरकर जैसे महान विचारकों की वजह से 1947 तक जो 25 लाख भारतीयों की फौज बनी थी वो कहां चली गईं ??? दरअसल जब आजादी के बाद प्रधानमंत्री नेहरू के पास भारतीय सेना के प्रमुख General Sir Robert McGregor Macdonald Lockhart गये तो उनसे सफेद कबूतर उड़ाने के शौकिन हमारे चाचा नेहरू ने कहा कि भारत जैसे शांतिप्रिय देश को इतनी बड़ी फौज की ज़रूरत नहीं है। और इस तरह धीरे-धीरे समय के साथ भारतीय फौज की संख्या काफी कम कर दी गई और जिसका नतीजा था 1962 का चीन युद्ध।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)