Opinion- अगर सरकार बनाने की हालत में कांग्रेस होती तो वो ज़रूर वहाँ भी गठबंधन कर लेते, राजनीति यही है

मुद्दों के लिए ना जनता लड़ रही और ना नेता. दोनों ही राजनीति कर रहे हैं. ख़ुद को जाट के तौर पर वोट देना कौनसा मुद्दा है भाई?

New Delhi, Oct 26 : जो हरियाणा की राजनीति को थोड़ा भी जानते-समझते हैं, उनके लिए दुष्यंत चौटाला का बीजेपी से हाथ मिलाना हैरानी भरा तो नहीं होना चाहिए. लोकसभा चुनाव के दौरान इंटर्व्यू में मैंने उनसे पूछा था कि केंद्र में किसे समर्थन देंगे. तो उन्होंने कांग्रेस के लिए तो कहा था कि उनसे विचारधारा नहीं मिलती. बीजेपी के लिए उन्होंने साफ़ इनकार नहीं किया था. वहाँ गुंजाइश छोड़ी थी. उनकी पुरानी पार्टी भी बीजेपी के क़रीब थी और गठबंधन हो चुके हैं. वो बात अलग है कि तब इण्डियन नेशनल लोकदल ‘बड़ा भाई’ होती थी.

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शिरोमणि अकाली दल से भी उनके पारिवारिक रिश्ते हैं जो बीजेपी की सहयोगी है पंजाब में. जैसे आप यहाँ फ़ेसबुक पर पॉलिटिक्स करते हैं, दोस्ती निभाते हैं, नफ़ा-नुक़सान देखते हैं, वैसे ही राजनीतिक पार्टियों में भी होता है. अभी बहुत से लोग लिख रहे हैं कि दादा-पापा के लिए समझौता किया है तो सोशल मीडिया को पढ़ना थोड़ा कम कर दीजिए. वहाँ से तर्क और जानकारी उतनी ही मिलती है जितना किसी राजनीतिक पार्टी के समर्थक से.

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वैसे अगर सरकार बनाने की हालत में कांग्रेस होती तो वो ज़रूर वहाँ भी गठबंधन कर लेते. राजनीति यही है.
मैं बहुत अनुभवी तो नहीं हूँ लेकिन मैंने ऐसे राजनेता नहीं देखे जो सरकार बनाने की हालत में थे और विपक्ष में बैठ गए. यहाँ सपा-बसपा का गठबंधन भी देखा, राजद-जेडीयू का भी देखा, बीजेपी-पीडीपी का भी देखा, एनसीपी-कांग्रेस का भी देखा, आप-कांग्रेस का भी देखा.

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देखिए, मुद्दों के लिए ना जनता लड़ रही और ना नेता. दोनों ही राजनीति कर रहे हैं. ख़ुद को जाट के तौर पर वोट देना कौनसा मुद्दा है भाई? पोलराइज़ जनता को किया जा रहा है, जनता हो रही है. जाट वर्सेस नॉन-जाट में जनता का तो कोई फ़ायदा नहीं है.
हाँ, आजकल जाति लामबंदी एक बड़ी फ़ोर्स के तौर पर काम तो करती है. लेकिन इसका विकल्प खोजिए. ये जनता के लिए फ़ायदेमंद नहीं है और ना किसी जाति के लिए.

(चर्चित पत्रकार सर्वप्रिया सांगवान के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)