Odd-Even : ‘मोहम्मद बिन तुगलक’ को आम आदमी को परेशान करके कौन-सा सुख मिलता होगा?

मोहम्मद बिन तुगलक आम आदमी के पैसे की बर्बादी तो ज़रूर करता होगा, लेकिन क्या वह सहजता से इतने बड़े-बड़े झूठ भी बोल लेता था?

New Delhi, Nov 14 : मोहम्मद बिन तुगलक कैसा रहा होगा, अगर आपको इसका अंदाज़ा लगाना है तो मेरे परम प्रिय नेता श्री अरविंद केजरीवाल को देख लें।
आज मैं एक अत्यंत महत्वपूर्ण मीटिंग के लिए नोएडा से दिल्ली की ओर चला। बॉर्डर पर कई पीताम्बरधारी ट्रैफिक कर्मचारियों ने रोक लिया। कहा दिल्ली में ऑड इवन लागू है। आपकी गाड़ी का नम्बर एक सम संख्या है, आज सम संख्या की गाड़ी दिल्ली नहीं जा सकती। मैंने माथा पीटा। मैं तो भूल ही गया था कि मोहम्मद बिन तुगलक सरीखे अपने परम प्रिय नेता की सरहद में घुसने जा रहा हूँ।

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बहरहाल, मैं लेट हो रहा था, फिर भी सोचा कि चलो मोहम्मद बिन तुगलक सरीखे अपने परम प्रिय नेता के विकलांग विचार का सम्मान करते हैं, इसलिए तुरंत टैक्सी बुक करने की बजाय किसी सार्वजनिक परिवहन का इंतजार करने लगा, लेकिन बॉर्डर पर उस समय सार्वजनिक परिवहन का कोई भी साधन न दिखा। दो-चार कारों को हाथ दिया कि थोड़ी दूर के लिए लिफ्ट ही मिल जाए, फिर आगे देखेंगे। लेकिन मोहम्मद बिन तुगलक सरीखे मेरे परम प्रिय नेता की सरहद में जब लिफ्ट भी न मिली, तो आखिरकार मुझे ओला ही बुक करना पड़ा।

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फिर क्या था? एक तरफ मोहम्मद बिन तुगलक सरीखे मेरे परम प्रिय नेता के राज्य के बॉर्डर पर मेरी सम संख्या वाली गाड़ी प्रतिबंधित पड़ी थी, दूसरी तरफ से ओला की सम संख्या वाली गाड़ी हनहनाती हुई आ गयी। अब मैं अपनी सम संख्या वाली गाड़ी को बॉर्डर पर लावारिस छोड़कर ओला की सम संख्या वाली गाड़ी से दिल्ली जा रहा था।
रास्ते भर मैं सोचता रहा। इससे दिल्ली का प्रदूषण कितना कम हुआ? एक गाड़ी छोड़ी, दूसरी गाड़ी से जा रहा हूं। उसमें भी अकेला था। इसमें भी अकेला हूँ। उसका नम्बर भी सम था। इसका नम्बर भी सम है। लेकिन वो एक आम आदमी की गाड़ी थी, इसलिए गैरकानूनी थी। ये अंबानी-अडानी टाइप ही किसी बड़े पूंजीपति की कंपनी की गाड़ी है, इसलिए कानूनी है। फिर मन में यूं ही एक सवाल उमड़ आया कि क्या मोहम्मद बिन तुगलक कमीशन भी खाता था? मेरे परम प्रिय नेता तो ईमानदारी की मूर्ति हैं!

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आते-जाते रास्ते के दोनों तरफ अनेक जगहों पर मोहम्मद बिन तुगलक सरीखे अपने परम प्रिय नेता के कई विशाल होर्डिंग भी देखने को मिले, जिसमें इस तुगलकी प्रयोग से दिल्ली में 25% प्रदूषण कम हो जाने का दावा किया गया था। मैंने सोचा कि मोहम्मद बिन तुगलक आम आदमी के पैसे की बर्बादी तो ज़रूर करता होगा, लेकिन क्या वह सहजता से इतने बड़े-बड़े झूठ भी बोल लेता था? मेरे परम प्रिय नेता तो सच्चाई के मामले में राजा हरिश्चंद्र के भी दोनों कान काट चुके हैं और अब राजा हरिश्चंद्र बिना कान के ही घूमते हुए पाए जा रहे हैं।

बहरहाल जहां दिल्ली आने-जाने पर पेट्रोल पर मेरे 150 रुपये खर्च होते, वहीं ओला को मुझे 400 रुपए देने पड़े। अपनी गाड़ी से जाने-आने पर 40 मिनट खर्च होते, वहीं इस परिस्थिति में दो घंटे खर्च हो गए। मीटिंग में मैं एक घंटा लेट पहुंचा, जिसके लिए मुझे माफ़ी भी मांगनी पड़ी। इधर बॉर्डर पर मेरी कार लावारिस पड़ी थी, इसलिए अगले 4 घंटे तक, जब तक वहाँ लौट कर आ नहीं गया, मन में चिंता भी बनी रही।
अब सोच रहा हूँ कि मोहम्मद बिन तुगलक को आम आदमी को परेशान करके कौन-सा सुख मिलता होगा? हालांकि मेरे परम प्रिय नेता तो आम आदमी के बहुत बड़े हितैषी हैं!

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)