नशे के लिए इनके पास पैसे हैं लेकिन 200 रुपये किराया का नाम सुनते ही इनकी “मर्दानगी” खत्म हो जाती है

दिल्ली में सस्ता रहना , सस्ता खाना और सस्ती पढ़ाई का यह मतलब तो नही कि सरकार और टैक्सपेयर्स के पैसे पर ऐश किया जाए ।

New Delhi, Nov 20 : एक कंडोम की कीमत लगभग 10 रुपये है। एक सिगरेट की कीमत 10 रुपये या इससे अधिक है । गांजा चरस तो और भी महंगा होगा । मोबाइल की कीमत 10 हजार के आसपास है। एक ब्रांडेड जीन्स की पैंट तीन हजार से शुरू होती है । टी शर्ट या कुर्ता भी ऐसी ही औकात रखता है । जे एन यू में ये तीनो चीजें बहुतायत में और धड़ल्ले से इस्तेमाल की जाती है । किसी छात्र के लिए ये चीजें न केवल निषेध है बल्कि अय्याशी का भी प्रतीक है ।

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मोबाइल को लेकर लोगो को आपत्ति हो सकती है कि यह अय्याशी का माध्यम नही हो सकता है। लेकिन जितना नेट डेटा की खपत इस विश्वविद्यालय परिसर में होता है वह पढ़ाई परपस से तो नही ही होता है । मैं यहां के हॉस्टल में कई दिन और रात बिता चुका हूँ । मेरा छोटा और ममेरा भाई यहां पर शोध छात्र था । जब मैं दिल्ली में उससे मिलता था तो वह अपने रूम के बाहर कुछ खास इलाको में नही जाने का आग्रह बड़े संकोच से किया करता था । मुझे इसका मतलब पता करना था । एक दिन चुपके से उन इलाकों से गुजर गया तो उपरोक्त अय्याशी के तत्व निर्लिप्त , निर्द्वन्द्व और निर्लज्ज होकर मुझे चिढ़ाते दिखे । मैं उसके बाद कभी वहां के होस्टलों में नही गया ।

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पिछले दिनों आई आई टी , आई आई एम जैसे संस्थानों में फीस बढ़ाई गई । कहीं से कोई आवाज नही आई । हम अपने बच्चों के स्कूली फीस में हर साल बढ़ोतरी देखते हैं ,झेलते हैं लेकिन कोई सुगबुगाहट नही । आखिर जे एन यू में ही कौन कहर बरपा गया । आपको मालूम होना चाहिए कि यहां के रिसर्च स्कॉलर्स को भारी छात्रवृत्ति मिलती है । यह पैसा पढ़ाई और रिसर्च के काम आए इसलिए । लेकिन इस पैसे से अय्याशी की जाती है , राजनीति की जाती है तो बात बाहर जाएगी ही । जे एन यू बहुत नीमन संस्थान है तो क्या बी एच यू खत्तम संस्थान है । इसे समझिए …. यहाँ के माओ , स्टालिन और मार्क्स के वंशजों की यह फड़फड़ाहट है ।

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सेक्स , दारू , गांजा के लिए इनके पास पैसे हैं लेकिन 200 रुपये किराया का नाम सुनते ही इनका ” इरेक्शन डिसफ्यूजन ” हो जाता है यानी मर्दानगी खत्म हो जाती है । कसाई के यहाँ पशुओं को मारते देखा है आपने ? मरने के बाद भी इन पशुओ का देह काफी देर तक छटपटाता है । वैश्विक मृत्यु के बाद साम्यवादी छटपटाहट है ये । वामपंथियो के पिता प्रदेश / देश चीन के हॉन्गकॉन्ग में जब आजादी की बात उठायी जाती है तो कामनिष्ठ सरकार गोलियों से जवाब देती है । भारत मे जब इनका चुतर लाल किया जा रहा है तो चेग्वेरा के गीत गा रहे हैं । दिल्ली में सस्ता रहना , सस्ता खाना और सस्ती पढ़ाई का यह मतलब तो नही कि सरकार और टैक्सपेयर्स के पैसे पर ऐश किया जाए । वर्तमान में जो चार्ज इनसे लिया जा रहा है वह मुफ्त के बराबर ही है । जो बढ़ी हुई दर है वह भी बीपीएल के नीचे ही है ।

भारत मे अभी कई गुरुकुल हैं जहां केवल धार्मिक आध्यात्मिक पढ़ाई ही नही होती है वैज्ञानिक पढ़ाई भी होती है । अधिकांश जगहों पर मुफ्त या मामूली चार्ज लगता है । लेकिन वहां न तो आजादी के नारे लगते हैं न ब्रह्मचर्य की ऐसी की तैसी होती है । उनके खर्चो में न कंडोम न गांजा शामिल होता है । कुछ लिखाड़ , नव प्रयोगवादी , नव प्रगतिशील फेसबुकी विचारक ” आजादी के इन लड़ाकों ” की कुटाई पर छाती पीट रहे हैं। उनके समर्थन में कुछ सिरफिरे खड़े हो रहे हैं तो वे खुद को बड़ा बुद्धिजीवी महसूस करने लगे हैं। जब उनकी भी ठुकाई होगी तब आटा दाल का भाव पता चलेगा ।
एक हमलोग हैं कि कोई पढ़े या नही , कोई समर्थन में खड़े हो या नही बिंदास लिखते जाते हैं । हमें सियारो का कुकुरहाव नही चाहिए । दो तीन शेरो की गर्जन हो जाये तो जमाना हिल जाए।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)