JNU सिर्फ नि:शुल्क शिक्षा के लिए नहीं लड़ रहा, और न ही नि:शुल्क शिक्षा मिलने पर वह शांत हो जाएगा

अगर आपको इस्लामिक अलगाववाद और असहिष्णुता से अनुराग है, और अगर आप भारतीय और हिंदू प्रतीकों से घृणा करते हैं, तो नि:शंक होकर JNU के साथ खड़े होइए।

New Delhi, Nov 21 : सहमतियों का निर्माण करना केवल फ़ासिस्टों का ही हुनर नहीं है, कम्युनिस्ट भी इसमें माहिर हैं। शायद ज़्यादा ही माहिर होंगे। वास्तव में संसार में कोई भी प्रपंच नैरेटिव-निर्माण के बिना नहीं चल सकता। विशेष तौर पर आज की सोशल मीडिया की दुनिया में। वॉट्सएप्प यूनिवर्सिटी का पर्याय दक्षिणपंथी ज्ञान-परम्परा है। किंतु फ़ेसबुक पर उदारवादियों और मुख्यधारा के बौद्धिकों के द्वारा जो पोस्ट लिखे जाते हैं, वो स्वत: प्रमाणित हैं, यह प्रचारित कर देना भी एक क़िस्म का पोस्ट-ट्रुथ है।

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जनेवि ने यह मनवा लिया है कि वह सस्ती शिक्षा के लिए लड़ रहा है और सभी ने भोले-भालों की तरह मान लिया है। फ़ेसबुक की टाइमलाइन आई स्टैंड विद जेएनयू के हैशटैग से भर गई है। भली बात है। ये वो लोग हैं, जो न इतिहास जानते हैं, न भविष्य के अंदेश उन्हें चिंतित करते हैं। वे सतत वर्तमान में जीते हैं। फ़ेसबुक के ये हैशटैग क्या किसी वॉट्सएप्प यूनिवर्सिटी से कम हैं?
जनेवि ने इससे पहले सस्ती शिक्षा के लिए कब आंदोलन किया था? कोई बतला सके तो भला होगा। अगर सरकार जनेवि के सामने झुककर रोलबैक कर लेती है तो सस्ती शिक्षा की दिशा में जनेवि का आगामी आंदोलन कहां पर होगा? किस गांव और खेड़े में? क्या इसकी कोई योजना है? अगर नहीं तो क्या सस्ती शिक्षा की मांग जनेवि तक ही सीमित है? क्या यही भारत का इकलौता शिक्षा का केंद्र है, जहां शिक्षा के नि:शुल्क होते ही वह समग्र भारत में नि:शुल्क हो जाएगी। आप सस्ती शिक्षा की मांग करके जनेवि के साथ खड़े होने का हैशटैग क्यों लगाते हैं, इस पर विचार कीजियेगा। इन दोनों में क्या तारतम्य है? क्या किसी विश्वविद्यालय में 19 सालों से फ़ीस-ढांचे का पुनरीक्षण नहीं होना आर्थिक अनियमितता की श्रेणी में नहीं आता? क्या दस रुपए का कमरा और मुफ़्त बिजली रियायत की अति नहीं है? या फिर हम ऐसा करते हैं कि जनेवि को पूर्णतया शुल्कमुक्त कर देते हैं। दस रुपया भी एक कमरे का क्यों लें, उसे मुफ़्त ही दे देते हैं। भोजन, बिजली, सफ़ाई भी मुफ़्त। जनेवि की शिक्षा को पूर्णतया ही नि:शुल्क बना देते हैं। उसके बाद क्या?

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तब क्या जनेवि भारतीय-तंत्र से राज़ी हो जाएगा? क्या एक माह पूर्व तक जब ये फ़ीस बढ़ोतरी नहीं हुई थी, जनेवि भारतीय-तंत्र के साथ राज़ी-ख़ुशी था? उसके प्रति सम्मान और सदाशयता की भावना रखता था? अगर नहीं तो आप इस आंदोलन को महज़ नि:शुल्क शिक्षा से कैसे जोड़ सकते हैं और उसके पीछे वर्षों पुराने मनोवैज्ञानिक टकरावों को कैसे नहीं देख सकते हैं? ये टकराव उतने पुराने हैं, जब आज के दक्षिणपंथियों, जो असहमतों को पाकिस्तान जाने की हिदायत देते हैं, की तर्ज़ पर पंडित जवाहरलाल नेहरू कम्युनिस्टों को सोवियत संघ चले जाने का कटाक्ष करते थे। ये आज-कल की बात नहीं है। हरिशंकर परसाई जब जनेवि का पिष्टपेषण करते हैं तो वो किसी सस्ते प्रचार के वशीभूत होकर ऐसा नहीं करते हैं। मैं आपसे कहता हूं- भारत-देश के किसी भी गांव की कोई भी पाठशाला नि:शुल्क शिक्षा की मांग करे तो उसके साथ बेधड़क खड़े हो जाइए! कोई भी महाविद्यालय, कोई भी विश्वविद्यालय जब वैसा कहे तो उसका साथ दीजिए! लेकिन जब जनेवि किसी बात को लेकर आंदोलित होता है तो एक बार विचार कर लीजिए। उसके नैरेटिव के पीछे झांककर देखिए। भुलावे में मत आइए। वो जनेवि है। वो एक मामूली विश्वविद्यालय नहीं है।

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क्या कोई मुझको बतला सकता है कि लाल क़िले पर लाल निशान, इस नारे का नि:शुल्क शिक्षा से क्या सम्बंध है? जनेवि के छात्र तो केवल पढ़ाई करना चाहते हैं ना? आपको यही भरमाया गया है ना? ढपली पर बजाए जा रहे गानों के माध्यम से यही आपके ज़ेहन में रोपा गया है ना कि हमें तो केवल क़लम और किताब चाहिए? तो फिर यहां लाल क़िले पर किस लाल निशान की बात हो रही है? ये किस पार्टी का निशान है? केंद्र में कौन-सी सरकार बनाने की बात की जा रही है- सीपीआई, सीपीएम या सीपीआईमाले? सीपीआईमाले यानी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी। क्या आप बतलाएंगे लिबरेशन फ्रंट केंद्र में कैसे आता है और वहां पर जाने के बाद क्या करता है? चे ग्वेरा एक चित्र से बढ़कर क्या है और छापामार युद्धनीति क्या होती है? सशस्त्र क्रांति और सर्वहारा अधिनायकत्व के क्या मायने हैं? क्या आपको पता है संसद की तरफ़ कूच करने वाले जनेवि छात्रों के दिल में किस तरह के अरमान हिलोरें लेते हैं? ओवरथ्रो ऑफ़ रिजीम के सेंटिमेंट्स क्या होते हैं? सरकार विरोधी पक्ष की आवाज़ दबा रही है ना? प्रतिरोधियों के प्रति स्तालिनवादियों का क्या ऐतिहासिक रवैया रहा है, कृपया बताइये। जनेवि ने ही अपने कैम्पस में विरोधी आवाज़ों के साथ क्या किया? मकरंद परांजपे की हूटिंग करने वाले कौन थे- क्या वे जनेवि के वामपंथी छात्र नहीं थे?

या फिर यही बतला दीजिए कि नक्सलवाद से नि:शुल्क शिक्षा का क्या सम्बंध है? नक्सलवाद का सम्बंध गोली और बम से है या क़लम और किताब से है? क्योंकि जनेवि तो ढपली बजाकर कहता है हमें केवल क़लम और किताब चाहिए। फिर नक्सलवाद के प्रति रोमानी भावनाएं किस कैम्पस में हैं? या यही बतला दीजिए कि इस्लामिक अलगाववाद का नि:शुल्क शिक्षा से क्या सम्बंध है। क्योंकि जनेवि इस्लामिक अलगाववाद से उसी तरह से घुला-मिला है, जैसे दूध में मिश्री घुल जाती है। कश्मीर पर जनेवि का मत जान लीजिए।

जिन-जिन लोगों ने आई स्टैंड विद जेएनयू का हैशटैग लगाया है, अगर उन्होंने इन तमाम बातों को जानने के बावजूद यह किया है, तो उन्हें मुबारकबाद। किंतु जिन्होंने यह सब जाने बग़ैर यह किया है, उन्हें स्वयं से पूछना चाहिए कि उन्होंने अपना भेड़ों जैसा यह चरित्र क्यों बनाया है कि जिसने जिस दिशा में खदेड़ा, वहीं चले गए। ना सोचा, ना समझा, ना जाना, ना बूझा। एक तरफ़ मासूम नौजवान हैं, दूसरी तरफ़ सितमगर सरकार? हमें तो मासूम नौजवानों का साथ देना चाहिए, जो बेचारे केवल पढ़ना चाहते हैं? जैसे कि भारत-देश एक ऐतिहासिक सातत्य नहीं, एक सस्ती बम्बइया फ़िल्म हो, जिसमें मज़लूम और ज़ालिम की लड़ाई चल रही हो।

क्या कारण है कि जनेवि एक वाम-इस्लाम गठजोड़ की तरह काम करता है और हमेशा भारतीय राज्यतंत्र को निशाने पर लेता है? वह कभी जलवायु परिवर्तन और मीट इंडस्ट्री पर बात क्यों नहीं करता? पशु अधिकार और रिचुअल स्लॉटर उसकी चिंता का विषय क्यों नहीं है? नाज़ियों ने जितने लोगों को नहीं मारा, उससे ज़्यादा माओ, स्तालिन और इस्लामिक चरमपंथ ने मारा है। जनेवि को इनसे सहानुभूति क्यों है? दक्षिणपंथी लोग जनेवि पर आरोप लगाते हैं कि उसके कैम्पस में यौन उन्मुक्तता का माहौल है। किंतु इसी कैम्पस में लड़कियां बुरक़ा और हिजाब भी पहनती हैं। जनेवि की स्त्री-मुक्ति बुरक़ा मुक्ति तक क्यों नहीं पहुंची? उसने केवल हिंदू प्रतीकों को ही गाली क्यों बकी? उसकी दुश्मनी केवल भारतीय परम्परा से ही क्यों है? जिन लोगों को लगता है कि जनेवि नि:शुल्क शिक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है, उन्हें अपनी कमअक़्ली पर शर्मिंदा होना चाहिए। जनेवि एक एंटी इंडिया, एंटी स्टेट, लेफ़्ट-इस्लाम नेक्सस है, और उसी रूप से वह कार्य करता है। ख़ुद जनेवि के छात्रों को नहीं मालूम कि वो किन हाथों के मोहरे बन गए हैं। भारत-देश के मुख्यधारा के बौद्धिकों के लिए यह राजनीतिक शक्ति-प्रदर्शन का एक अवसर है। केंद्र में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के प्रति अपनी व्यक्तिगत घृणा के वशीभूत होकर इन बौद्धिकों ने भारत को दांव पर लगा दिया है।

जनेवि केवल नि:शुल्क शिक्षा के लिए नहीं लड़ रहा, और न ही नि:शुल्क शिक्षा मिलने पर वह शांत हो जाएगा। उसकी लड़ाई बहुत लम्बी है। और आज से नहीं, अनेक सालों से है।
मैं तो अत्यंत स्पष्ट शब्दों में कहूं, झगड़ा नि:शुल्क शिक्षा से नहीं, जनेवि और उसके आक्रामक तौर-तरीक़ो से है। कन्फ्रंटेशन के प्रति उसकी हवस चिंता की बात है। मैं तो साफ़ कहूं कि शिक्षा का हरगिज़ निजीकरण नहीं होना चाहिए। संसद की कैंटीन में भोजन की थाली हरगिज़ सब्सिडाइज़्ड नहीं होनी चाहिए। सरकार को ख़ज़ाना खोलकर ही लोककल्याण करना चाहिए। अम्बानी को हरगिज़ क़र्ज़ा नहीं दिया जाना चाहिए। और अगर आपको यही सुनकर ख़ुशी मिलती हो और आप इसी शर्त पर मुझसे राज़ी होने को तैयार हों तो मैं यह भी कहूंगा कि ना पटेल की मूरत बनाई जानी चाहिए, ना राम का मंदिर। लेकिन आप किसके साथ खड़े हो गए हैं, यह एक बार जान लीजिए। गानों, नारों, दृश्यों के बहकावे में मत आइए। कम्युनिस्ट प्रचार-तंत्र कैसे काम करता है और कैसे एक राष्ट्र को विखण्डन की दिशा में ले जाता है, इसको समझिए। जनेवि के साथ खड़े होने का दावा करने से पहले हज़ार बार सोचिए।

अगर आप केंद्र में माओवादी-स्तालिनवादी शासन तंत्र देखना चाहते हैं, जो भारत में मीडिया, लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन कर दे, जैसा कि उसने सोवियत संघ, चीन, उत्तरी कोरिया, क्यूबा में किया, अगर आप नक्सलवादी हिंसा के प्रति सहज हैं, अगर आपको इस्लामिक अलगाववाद और असहिष्णुता से अनुराग है, और अगर आप भारतीय और हिंदू प्रतीकों से घृणा करते हैं, तो नि:शंक होकर जनेवि के साथ खड़े होइए। किंतु अगर आप इस सबसे सहमत नहीं हैं तो ईश्वर के लिए नि:शुल्क शिक्षा के चारे को देखकर जनेवि के कांटे में फंसी मछली मत बनिए। अपनी स्वतंत्र चेतना का उपयोग कीजिए। इस पूरे खेल को अच्छी तरह समझिए। अपने हैशटैग का सोच-समझकर उपयोग कीजिए।

(सुशोभित के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)