शरद पवार ने भतीजे अजित पवार को उनकी हैसियत बताकर अपनी बेटी के लिए पार्टी सुरक्षित कर ली

महाराष्ट्र में बहुमत के लिए 145 सीटें चाहिए, लेकिन उद्धव केवल 56 विधायकों के सहारे मुख्यमंत्री पद का सफर तय करने जा रहे हैं।

New Delhi, Nov 26 : राजनीति में अगर साम-दाम-दंड-भेद सब जायज़ है, जैसा कि सभी राजनीतिक दलों के व्यवहार से साबित है, तो महाराष्ट्र की राजनीति में बाला साहब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे सबसे बड़े विजेता बनकर उभरे हैं। शरद पवार ने अपने भतीजे अजित पवार को उनकी हैसियत बताकर अपनी बेटी के लिए पार्टी सुरक्षित कर ली, इस नाते उन्हें भी चाणक्य कह लीजिए, लेकिन उद्धव ठाकरे ने इस चाणक्य को भी अपनी उंगलियों पर नचा लिया और उनसे वही काम करवा लिया, जो वे चाहते थे, इसके बावजूद कि एनसीपी के पास शिवसेना से केवल 2 सीटें कम थीं।

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महाराष्ट्र में बहुमत के लिए 145 सीटें चाहिए, लेकिन उद्धव केवल 56 विधायकों के सहारे मुख्यमंत्री पद का सफर तय करने जा रहे हैं। हालांकि उनकी सरकार की स्थिरता के बारे में अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता, फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “पद्मविभूषण” को अपनी तरफ मिला लेना कोई साधारण राजनीतिक सफलता नहीं है।
यह भी स्पष्ट है कि शिवसेना को इस बात का अहसास हो चुका है कि अब बाला साहब के रास्ते पर चलते हुए मातोश्री में बैठकर पार्टी को आगे ले जाना संभव नहीं है। लेकिन यह देखना दिलचस्प रहेगा कि हिंदुत्व और गैर-मराठियों के मुद्दे पर नई शिवसेना का क्या रुख रहने वाला है।

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बीजेपी का सत्ता पर स्वाभाविक दावा था, क्योंकि जनता ने शिवसेना के साथ उसके चुनाव-पूर्व गठबंधन को बहुमत दिया था, लेकिन संविधान को इस बात से कोई मतलब नहीं। संविधान केवल यह देखता है कि किसी विशेष वक़्त में किसके पास विधायकों का बहुमत है। चुनाव बाद शिवसेना के पाला बदलने से यह बीजेपी के पास नहीं रह गया था।

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ऐसे में बीजेपी ने रातों रात अजित पवार की संदिग्ध चिठ्टी के सहारे सरकार बनाकर बड़ी गलती की। कर्नाटक के बाद महाराष्ट्र में उसे ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए थी। इसलिए भी नहीं करनी चाहिए थी कि उसे भरोसा होना चाहिए था कि जैसे साल भर में कर्नाटक में सहजता से उसकी सरकार बन गई, वैसे ही महाराष्ट्र में भी बन सकती है। अगर नहीं भी बन पाए, तो बीजेपी को कांग्रेस की तरह सत्ता-मोह के ऐसे भोंड़े प्रदर्शन से बचना चाहिए, क्योंकि अगर कांग्रेस और बीजेपी का भेद खत्म हो गया तो जनता का सभी पार्टियों से बचा-खुचा मोह भी खत्म हो जाएगा और प्रकारान्तर से इससे लोकतंत्र को बड़ा नुकसान पहुँचेगा।
तो आज के दिन बीजेपी को जो सहानुभूति मिल सकती थी, बीजेपी ने स्वयं ही उसे गंवा दिया है।

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)