इन 5 कारणों से झारखंड में फेल हुआ बीजेपी का मिशन 65, सरयू की ‘राय’ नहीं मानना भारी पड़ा

झारखंड में बीजेपी और आजसू 5 साल तक सत्ता में रही, लेकिन जब गठबंधन कर चुनाव लड़ने का समय आया, तो दोनों ने रास्ते जुदा कर लिये।

New Delhi, Dec 23 : झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे सत्ता से बीजेपी के विदाई के संकेत दे रहे हैं, रुझानों में महागठबंधन को जनता का समर्थन मिलता दिख रहा है, चुनाव से पहले सीएम रघुवर दास ने अबकी बार 65 पार का नारा दिया था, लेकिन उस चुनाव में रघुवर का ये नारा ध्वस्त होता दिख रहा है, ताजा रुझानों में बीजेपी 65 तो दूर इसके आधी सीटें भी लाती नहीं दिख रही है। बीजेपी के कमजोर प्रदर्शन का अब पोस्टमॉर्टम होना शुरु हो गया है, मोदी, शाह और रघुवर दास ने डबल इंजन की सरकार बनाने का बार-बार अपील किया था, लेकिन जनता उनकी बातों में नहीं आ सकी, आइये वो पांच कारण बताते हैं जिसकी वजहे से बीजेपी की सरकार जाती दिख रही है।

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रघुवर से नाराजगी, गैर आदिवासी चेहरा
2014 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 37 सीटें मिली थी, रघुवर ने भले ही पांच साल तक मुख्यमंत्री रहने का गौरव हासिल किया हो, लेकिन वो अपने दम पर बीजेपी को दोबारा सत्ता में नहीं ला सके, वो भी तब जब केन्द्र की मजबूत सरकार का साथ था, पिछले 5 साल में झारखंड में कई ऐसी घटनाएं हुई, जिससे लोग सीएम से नाराज थे, 15 नवंबर 2018 को झारखंड के स्थापना दिवस के मौके पर प्रदर्शन कर रहे पारा शिक्षकों पर लाठी चार्ज हुआ था, इस लाठीचार्ज में कई शिक्षक घायल हो गये थे, एक शिक्षक की मौत भी हो गई थी, विरोध में शिक्षक हड़ताल पर रहे, इस घटना से रघुवर की छवि को गहरा धक्का लगा था, झारखंड में करीब 70 से 80 हजार पारा शिक्षक हैं।

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आंगनबाड़ी सेविकाओं पर लाठीचार्ज
इसी साल सितंबर में भी आंगनबाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं पर भी पुलिस ने लाठीचार्ज किया था, जिसका राज्य में पूरजोर विरोध हुआ था, हेमंत सोरेन ने विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान लगातार इस मुद्दे को उठाया, इसके साथ ही गैर आदिवासी चेहरा भी बड़ा मुद्दा बना, झारखंड में एक जनमत बना कि गैर आदिवासी सीएम झारखंड के आदिवासियों के लिये कल्याण की बात नहीं कर सकता।

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राष्ट्रीय के बजाय स्थानीय मुद्दों पर जोर
सरकारी नौकरियों में स्थानीय की बहाली को लेकर पूरे 5 साल झारखंड में हंगामा होता रहा, राज्य सरकार ने हाई स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति की, तो इस दौरान दूसरे राज्यों के उम्मीदवारों को नौकरी मिलने का मामला विपक्ष ने जमकर उठाया, इस मामले को लेकर राज्य के युवाओं में गहरा रोष देखने को मिला, झारखंड में पिछले 5 साल में राज्य लोकसेवा आयोग की एक भी परीक्षा नहीं हो पाई।

आजसू और बीजेपी का अलगाव
झारखंड में बीजेपी और आजसू 5 साल तक सत्ता में रही, लेकिन जब गठबंधन कर चुनाव लड़ने का समय आया, तो दोनों ने रास्ते जुदा कर लिये, पिछले चुनाव में आजसू ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा ता और 8 सीटों में से 5 जीतने में सफल रही थी, इस बार आजसू ने अपनी सीटों की डिमांड बढा दी, जिसकी वजह से दोनों दलों में बात नहीं बन पाई, बीजेपी भी आत्मविश्वास में थी, इसलिये आजसू को मनाने की कोशिश भी नहीं की, आजसू 52 सीटों पर लड़ी, लिहाजा उसने बीजेपी के वोट काटे, साथ ही लोजपा भी एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ी।

सरयू राय की बगावत से गलत संदेश
सरयू राय की गिनती ईमानदार नेताओं में होती है, उन्होने बिहार और झारखंड में कई घोटालों का पर्दाफाश किया है, चारा घोटाले को जनता के सामने लाकर उसकी अदालती जांच को अंजाम तक ले जाने में सरयू राय की काफी बड़ी भूमिका रही है। इसके साथ ही सरयू राय ने झारखंड के पूर्व सीएम मधु कोड़ा को भी जेल भिजवाने में बड़ी भूमिका निभाई थी, हालांकि रघुवर दास से भी उनके रिश्ते कड़वाहट भरे ही रहे, नतीजा ये हुआ कि रघुवर ने इस बात की भरपूर कोशिश की, कि उनका टिकट काटा जाए, सरयू राय जमशेदपुर पश्चिमी से चुनाव लड़ते थे, जब पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया, तो उन्होने जमशेदपुर पूर्वी से सीधे सीएम को ही चुनौती दे दी, उनकी बगावत से जनता में ये संदेश गया कि बीजेपी ऐसे नेताओं का टिकट काट रही है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाता रहा है।