एक हादसे ने बदल दी हेमंत सोरेन की जिंदगी, ऐसे संभाला था झामुमो का मोर्चा

21 मई 2009 को शिबू सोरेन के बड़े बेटे और झामुमो महासचिव दुर्गा सोरेन की बोकारो सिटी में अपने निवास पर संदेहास्पद स्थितियों में मौत हो गई थी।

New Delhi, Dec 24 : झारखंड में 5 साल बाद एक बार फिर से सोरेन परिवार प्रदेश की राजनीति का केन्द्र बन गया है, सोमवार को आये नतीजों में शिबू सोरेन के छोटे बेटे हेमंत सोरेन नये क्षत्रप बनकर उभरे हैं, वो प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री होंगे, आपातकाल के साल 1975 में जन्में हेमंत शिबू सोरेन के मंझले बेटे हैं, अपने बड़े भाई दुर्गा सोरेन की मौत के बाद उनकी सक्रियता राजनीति में बढी।

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दादा ने किया था आंदोलन
शोबरन मांझी हेमंत सोरेने के दादा थे, उन्होने ही प्रदेश में संथाल आदिवासियों को महाजनों से मुक्त कराने के लिये आंदोलन शुरु किया था, पिता शिबू ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत हार से की थी, पहला लोकसभा चुनाव 1977 में लड़ा था, लेकिन हार मिली, वहीं हेमंत ने अपना पहला चुनाव 2005 में दुमका सीट से लड़ा और निर्दलीय स्टीफन मरांडी से हारकर तीसरे स्थान पर रहे।

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दादा को घात लगाकर मारा गया
लेखक और एक्टिविस्ट पत्रकार विनोद कुमार बताते हैं कि हेमंत के दादा शोबरन मांझी गोला प्रखंड के नेमरा इलाके के गिने-चुने पढे लिखे लोगों में से एक और पेशे से टीचर थे, उनका राजनीति में भी दखल था, लेकिन महाजनों और सूदखोरों से उनकी नहीं बनती थी, उस दौर में शोषण का एक आम तरीका ये था कि महाजन जरुरत के समय सूद पर धान देते और फसल कटने पर डेढ गुना वसूलते, इसे ना चुकाने पर खेत नाम करवा लेते, उसी से उसकी जमीन पर ही काम करवाते, एक बार उन्होने एक महाजन को सरेआम पीटा, इसलिये वो सबकी आंख की किरकिरी बन गये, उन दिनों शिबू सोरेन गोला इलाके के एक स्कूल में पढते थे, वहीं हॉस्टल में अपने भाई राजाराम के साथ रहते थे, 27 नवंबर 1957 को शोबरन बेटों को राशन पहुंचाने जा रहे थे, तभी घात लगाकर उनकी हत्या कर दी गई थी।

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शिबू सोरेन के गुरुजी बनने की कहानी
शिबू की मां सोनामणि भी जीवट महिला था, उन्होने बहुत दिनों तक अपराधियों को सजा दिलाने के लिये कोर्ट के चक्कर काटे, और अपने बच्चों को अकेले पाला, कोर्ट की तारीखों पर वो बच्चों को लेकर जाया करती थी, एक दिन इस संकल्प के साथ लौटीं, कि अपने पिता के हत्यारों के साथ अब उनके बच्चे ही इंसाफ करेंगे, शिबू ने भी उनके संघर्ष को आगे बढाया, लकड़ी बेचकर गुजारा किया, महाजन प्रथा के खिलाफ धनकटनी आंदोलन चलाया, संथालों ने उन्हें दिशोम गुरु यानी दसों दिशाओं का गुरु नाम दिया, तब से ही शिबू सोरेन गुरुजी के नाम से पहचाने जाने लगे, 4 फरवरी 1973 को उन्होने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया, बिहार से अलग राज्य के लिये संघर्ष किया, 1980 में पहली बार सांसद बनें, तब उनके समर्थक साइकिल पर झोले में लाल मिट्टी और नील रखकर गांव-गांव प्रचार में घूमते और आदिवासी एकता के नारे लिखते थे, 2000 में झारखंड अस्तित्व में आया, तो शिबू सोरेन का कद बढ गया, शिबू राज्य के पहले नेता हैं, जो खुद तीन बार मुख्यमंत्री बनें और बेटे हेमंत को दो बार इस पद पर पहुंचाया।

भाई की मौत के बाद राजनीति में उतरे
21 मई 2009 को शिबू सोरेन के बड़े बेटे और झामुमो महासचिव दुर्गा सोरेन की बोकारो सिटी में अपने निवास पर संदेहास्पद स्थितियों में मौत हो गई, हालांकि डॉक्टरों ने 39 वर्षीय दुर्गा की मौत का कारण किडनी फेल बताया था, ये भी कहा गया कि दुर्गा बहुत शराब पीते थे, उन्हें कई बीमारियां थी, हेमंत ने अगले ही दिन मीडिया से कहा था कि उनके भाई रात को सोने चले गये थे, लेकिन सुबह उठे ही नहीं, हम पोस्टमॉर्टम के बाद मौत के कारण पर कुछ बता पाएंगे, दूसरी ओर बोकारो जनरल अस्पताल के डॉक्टरों ने कहा कि जब दुर्गा को अस्पताल लाया गया, तो उनका शरीर अकड़ चुका था, ठंडा हो गया था, डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया, बोकारो एसपी ने उनकी मौत पर संदेह जताया था, क्योंकि उनके सिर के पीछे के हिस्से पर चोट के निशान थे, बिस्तर के पास खून के छीटें मिले थे, दुर्गा की पत्नी बाद में विधायक बनीं, इस बार भी वो विधायक बनी हैं, कहा जाता है कि दुर्गा के निधन के बाद ही हेमंत सोरेन की राजनीतिक सक्रियता बढी।