आज के दौर में, अपने आस पास या दूर, सत्ता या संसद में, किसी अटल को ढूंढना बेहद मुश्किल है

अटलजी ने छोटे पत्रकारों को कभी ये आभास या संकेत नहीं दिए कि उनके अख़बार और चैनल के सम्पादक और मालिक, पीएम के घर-दफ्तर पर बिछे होते थे।

New Delhi, Dec 25 : 25 -26 साल की कच्ची उम्र में The Pioneer जैसे अख़बार का चीफ रिपोर्टर बनना मेरे लिए “टफ जॉब ” भी था और रोमांचक असाइनमेंट भी। टीम में, तब 11 -12 रिपोर्टर थे जिसमे से कई, आज नामी-गिरामी पत्रकार हैं । क्राइम, कोर्ट, एजुकेशन, हैल्थ, नगर निगम जैसी बीट के अलावा, टीम के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी लखनऊ के स्थानीय सांसद अटल बिहारी वाजपेयी को कवर करना। वाजपेयी तब देश के सबसे बड़े नेता के तौर पर उभर रहे थे और प्रधानमंत्री बनने के कगार पर थे। उस दौर में भी वे लखनऊ के मोहल्ले , गलियों और छोटे छोटे मार्केट में जाया करते थे और अक्सर वहीँ नुक्कड़ सभाएं भी कर देते । कई बार, एक-एक दिन में, मैंने उनकी आठ-आठ, दस-दस, छोटी छोटी सभाएं और कार्यक्रम कवर किये।आपको शायद यक़ीन न हो, पर मैंने अटल जी को एक मौके पर हज़रतगंज के करीब, धरने पर, रिक्शे पर बैठेकर आते हुए देखा है।इस रिक्शे की सवारी के पीछे एक दिलचस्प कहानी रही…. विस्तार से फिर कभी लिखूंगा।

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मेरे लिए ये संयोग ही था कि जब अटलजी, दिल्ली में प्रधानमंत्री बने तो मेरा स्थानांतरण भी कुछ ही दिन में दिल्ली हुआ और उन्हें, संसद से लेकर और उनके निवास 7, रेस कोर्स रोड पर फिर से कवर करने का मौका, पहले चन्दन मित्रा जी ने दिया फिर(आजतक में )उदय शंकर जी ने। यूँ तो लिखने को बहुत से किस्से हैं लेकिन सिर्फ एक बात आज कहनी है….
लखनऊ की नुक्कड़ सभाओं से लेकर रेस कोर्स रोड के पीएम बंगले तक, कभी भी, मुझे ये नहीं लगा कि मै इतने बड़े नेता को कवर कर रहा हूँ। आज के दौर में, अक्सर किसी विधायक या पार्टी प्रवक्ता से भी बात करते समय, मैं उतना सहज नहीं हो पाता जितना मैं उनके साथ था। मैं क्या, कोई भी रिपोर्टर , कार्यकर्ता , अधिकारी ये नहीं कह सकता की वे अटल जी के साथ किसी इंटरेक्शन में कभी असहज हुए हों।

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अटलजी ने छोटे पत्रकारों को कभी ये आभास या संकेत नहीं दिए कि उनके अख़बार और चैनल के सम्पादक और मालिक, पीएम के घर-दफ्तर पर बिछे होते थे। शायद इसीलिए , बतौर सांसद, वे दिल्ली के प्रेस क्लब में, पत्रकारों के साथ चाय पीने खुद ही आ जाते थे।
अपने राजनीतिक सहयोगियों से भी वे हमेशा विनम्र और सहज रहे। तेजस्वी वक्ता का यश, शौर्य या प्रधानमंत्री का रुतबा, रसूख, उनकी सहजता के आढ़े कभी नहीं आया।

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कंधार हाई-जैकिंग IC 814 पर पीएमओ के फैसले से क्षुब्ध उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण अडवाणी जब नाराज़ दिखे तो एक सुबह अटलजी ने सीधे कमला (अडवाणी) को फोन किया। तैयारी करिये, भोजन आज आपके यहाँ करूँगा … और हाँ , आपके हाथ की खीर भी खानी है। तब ,इस बहाने अटलजी ने डाइनिंग टेबल पर अडवाणीजी को मनाया। कई दिन बाद ये किस्सा मुझे अडवाणीजी के निकट सहयोगी ने बताया जो वाकई एक बड़ी खबर भी थी।
सचमुच, आज के दौर में, अपने आस पास या दूर, सत्ता या संसद मे , किसी अटल को ढूंढना बेहद मुश्किल है।
आज उनकी 95वीं जयंती पर, उनकी अटल सहजता, अटल विनम्रता को प्रणाम।

(वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)