Opinion – हिंसा और हुड़दंग कर रहे मुसलमानों को ही तय करना होगा कि वे किसी की सियासी बंदूक न बनें

मैं मानता हूं कि देश के मुसलमानों को गुमराह किया जा रहा है और वे साज़िश का शिकार हो रहे हैं, लेकिन पुलिस इसमें क्या कर सकती है?

New Delhi, Dec 31 : अगर मेरे सामने भी कोई “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगाएगा, तो पहली निर्विकार और सहज प्रतिक्रिया यही होगी कि “ठीक है भाई, हम लोगों का जीना हराम मत करो, पाकिस्तान जाकर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाओ, बशर्ते कि पाकिस्तान भी भारत जैसा ही कानून बनाकर तुम्हें स्वीकार कर ले और मुहाजिर या निकृष्ट दर्जे का मुसलमान मानकर प्रताड़ित करके भगा न दे।”

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इसलिए अगर मेरठ के एसएसपी ने कुछ लोगों से ऐसा कहा है तो घटना पर इसे उनकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया मानी जानी चाहिए। जो वीडियो सोशल मीडिया में वायरल कराया गया है, उसे देखने से स्पष्ट है कि उसके पहले कोई घटना हुई है, जिसके बाद एसएसपी ने स्थिति नियंत्रित करने और दंगाइयों एवं हुड़दंगियों को आगे ऐसी हरकत न करने की चेतावनी देने के इरादे से यह बात कही है। जो घटना स्थल पर होता है, जिसकी जान दांव पर लगी होती है और जिसपर हालात संभालने की ज़िम्मेदारी होती है, वही यह तय कर सकता है कि उसे कब कैसे क्या बोलकर और एक्शन लेकर स्थिति नियंत्रित करनी है।

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उन लोगों को शर्म आनी चाहिए जो अपने राजनीतिक फायदे के लिए लगातार एक समुदाय की हिंसा और कट्टरता को बढ़ावा दे रहे हैं और इसकी आलोचना में एक शब्द भी बोलने को तैयार नहीं हैं। अगर यह देश सबका है तो सबको ज़िम्मेदारी से पेश आना होगा। यह नहीं हो सकता कि पब्लिक की कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी और केवल पुलिस को ज्ञान बांचा जाएगा।
मैं पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और उसकी कार्यप्रणाली का घोर आलोचक हूँ, इसके बावजूद ऐसा कह रहा हूं। स्वयं नीर-क्षीर विवेक रखे बिना और पुलिस के साथ अन्याय करते हुए उससे हम न्याय की उम्मीद नहीं कर सकते।

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मैं मानता हूं कि देश के मुसलमानों को गुमराह किया जा रहा है और वे साज़िश का शिकार हो रहे हैं, लेकिन पुलिस इसमें क्या कर सकती है? जिसके हाथों में पत्थर और ज़ुबाँ पर देशविरोधी नारे होंगे, उसे ही तो वह धरेगी। यह खुद हिंसा और हुड़दंग कर रहे मुसलमानों को ही तय करना होगा कि वे किसी की सियासी बंदूक न बनें, ज़िम्मेदारी से पेश आएं और अमन व सौहार्द्र बनाए रखें।
मैंने पहले ही आगाह किया था कि निहित स्वार्थी तत्वों के बहकावे में आकर चार लोग साज़िशन हिंसा और हुड़दंग करेंगे, लेकिन बदनाम पूरी कम्युनिटी होगी। यह मुसलमानों को ही तय करना है कि वह अपने बीच के ऐसे लोगों पर नकेल कसेंगे या बात-बेबात पुलिस और सरकार को कोसते रहेंगे, जिसका अंततः कोई फायदा नहीं होने वाला।
देश में CAA और NRC के विरोध में कुछ मुसलमान जो भी कर रहे हैं, उससे वे अपने पूरे समुदाय के लिए केवल और केवल बदनामी खरीद रहे हैं। उनकी इन गतिविधियों के कारण देश के बहुसंख्यकों में उनके प्रति भरोसे की कमी होती जा रही है, जो कि मुझ जैसे लोगों के लिए चिंता की बात है, क्योंकि इससे देश में साम्प्रदायिक सौहार्द्र की भावना को ठेस पहुंच सकती है। शुक्रिया।

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)