CAA-NRC : अपनी-अपनी सियासत में संविधान और लोकतंत्र की बलि न चढ़ाएं

अगर देश की संसद में पास कानून को नहीं माना जाएगा, तो राज्यों की विधानसभा या कैबिनेट में पास प्रस्ताव को कौन मानेगा?

New Delhi, Jan 03 : राजस्थान, केरल, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों की सरकारें कह रही हैं कि वे CAA और NRC लागू नहीं करेंगी। इसके लिए वे अलग-अलग हथकंडों का सहारा ले रही हैं। कोई विधानसभा में प्रस्ताव पास करा रही है तो कोई कैबिनेट मीटिंग में फैसला ले रही है।

Advertisement

सवाल यह है कि जब संविधान की सातवीं अनुसूची में नागरिकता को केंद्र का विषय बताया गया है, तो राज्य सरकारें इसपर कोई फैसला कैसे ले सकती हैं? संविधान के खिलाफ फैसले लेकर विरोधी दल किस मुँह से संविधान बचाने की बात कर रहे हैं?
आज अगर केंद्र में कांग्रेस की सरकार होती और विरोधी दलों की राज्य सरकारें इसी तरह के विरोधाभासी फैसले ले रही होतीं, तो उन सबको धारा 356 लगाकर एक झटके में बर्खास्त कर दिया गया होता।

Advertisement

दूसरी बात कि अगर देश की संसद में पास कानून को नहीं माना जाएगा, तो राज्यों की विधानसभा या कैबिनेट में पास प्रस्ताव को कौन मानेगा? हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में वरीयता तय है। देश की संसद सर्वोपरि है। विरोधी दलों की राज्य सरकारों का ये रवैया लोकतंत्र को अराजकता की ओर ले जाएगा।
अगर किसी को CAA और NRC से इतनी समस्या है तो वे सुप्रीम कोर्ट में इनके खिलाफ मज़बूती से लड़ें, लेकिन कथित रूप से एक असंवैधानिक कदम के जवाब में दूसरे असंवैधानिक कदम कैसे उठा सकते हैं?

Advertisement

सभी पक्षों से मेरा अनुरोध है कि अपनी-अपनी सियासत में संविधान और लोकतंत्र की बलि न चढ़ाएं। देश कुछ राजनीतिक दलों और उनके स्वार्थी नेताओं की जागीर नहीं है।
जहां तक CAA और NRC का सवाल है मैं व्यक्तिगत रूप से केंद्र सरकार के फैसले के साथ था, हूं और रहूंगा।

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)