जार्ज फर्नांडिस जैसा निर्भीक , निडर और ईमानदार नेता भारतीय राजनीति में अब दुर्लभ है

प्रेम विवाह के बावजूद पत्नी लैला से उन की कभी नहीं पटी । एक आई एस अफसर , जो उन के सचिव रहे थे , की पत्नी जया जेटली से जार्ज की नजदीकियां भी बहुत चर्चा में रही ।

New Delhi, Jan 30 : मजदूरों के मसीहा और ईमानदार राजनीतिज्ञ जार्ज फर्नांडीज को विनम्र श्रद्धांजललि। 88 साल की उम्र में वह दुनिया से विदा हुए थे। जार्ज की मां उन्हें पादरी बनाना चाहती थीं । 16 साल की उम्र में उन्हें एक क्रिश्चियन मिशनरी में भेजा भी गया था । लेकिन वहां की हिप्पोक्रेसी देख कर वह दो साल बाद लौट गए । मुम्बई चले गए । बेंच पर सोते-सोते टैक्सी ड्राइवरों से दोस्ती हुई फिर उन के नेता बन गए । लोहिया से प्रभावित जार्ज एक समय मुम्बई में मजदूरों के मसीहा बन गए । इमरजेंसी आई तो इंदिरा गांधी ने उन्हें डाइनामाइट कांड में फर्जी तौर पर फंसा दिया । बहुत दिनों तक वह अंडरग्राऊंड रहे पर बाद में पकड़े गए तो उन्हें बेड़ियों में जकड़ कर रखा गया । जितना जुल्म जार्ज के साथ इमरजेंसी में हुआ किसी और राजनीतिज्ञ के साथ नहीं । तो आजीवन वह कांग्रेस की ईट से ईट बजाते रहे ।

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प्रेम विवाह के बावजूद पत्नी लैला से उन की कभी नहीं पटी । एक आई एस अफसर , जो उन के सचिव रहे थे , की पत्नी जया जेटली से जार्ज की नजदीकियां भी बहुत चर्चा में रही । जया ने भी सारी कीमत चुका कर जार्ज से अपने संबंधों को कभी छुपाया नहीं ।

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यहां तक कि जब जार्ज बीमार पड़े , अल्जाइमर और पार्किन्शन जैसी बीमारियों से जूझ रहे थे तो उन की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी । बाद में लैला विदेश से लौटीं तो उन्हों ने जया जेटली को घर से न सिर्फ निकाल दिया बल्कि जार्ज से मिलने पर रोक लगा दिया । जया जेटली हाईकोर्ट गईं । अपने भावनात्मक संबंधों का हवाला दिया और जार्ज से मिलने की अनुमति मांगीं । हाईकोर्ट ने अनुमति दे दिया । अब के दिनों में तो सिर्फ दो ही लोग जार्ज से नियमित मिलते थे । एक जया जेटली , दूसरे लालकृष्ण आडवाणी । बाकी लोग जार्ज को भूल गए थे ।

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मंत्री रहते हुए भी जार्ज अपने काम खुद करते थे । अपने कपड़े खुद धोते थे , अपनी कार खुद चलाते थे । उन का घर सब के लिए सर्वदा खुला रहता था। घर के इस तरह खुले रहने का ही परिणाम था कि अर्जुन सिंह के इशारे पर तहलका के तरुण तेजपाल की टीम ने जया जेटली का फर्जी स्टिंग किया था । जार्ज जैसा निर्भीक , निडर और ईमानदार नेता भारतीय राजनीति में अब दुर्लभ है । जब मैं दिल्ली में रहता था , तब तुगलक लेन वाले उन के घर जाता था । वह एक पत्रिका भी निकालते थे । वह सब से खुल कर मिलते थे , चाय बनाते और पिलाते थे । लेकिन मैं तो चाय भी नहीं पीता। लखनऊ भी जब कभी वह आते तो मिलता था । एक बार गोरखपुर में भी मिला था । वह बड़ी आत्मीयता से मिलते , नाम याद रखते । नाम से ही संबोधित करते । खादी का कुरता पायजामा पहनने वाले जार्ज के कपड़े कभी मैं ने प्रेस किए हुए नहीं देखे।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)