Opinion – चुनौतियों के बीच उम्मीद वाला बजट

सरकार के बजट में जो रोडमैप दिखाया गया है, वो ये भरोसा तो देता है कि उम्मीद पूरी होगी, लेकिन वो कब होगी इसकी मियाद साफ नहीं हो पाई है।

New Delhi, Feb 08 : साल 2020 का बजट अनुमानों के गलियारों से निकलकर अब हकीकत की जमीन पर उतर चुका है। ये बजट ऐसे समय में आया है जब देश घटती विकास दर, बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और निवेश में कमी समेत आर्थिक मोर्चों पर तमाम दूसरी चुनौतियों का सामना कर रहा है। नए दशक का पहला बजट पेश करने के दौरान सरकार पर किसी तरह का चुनावी दबाव नहीं था, मगर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के पर्याप्त अवसर थे। जब बजट पेश नहीं हुआ था, तब इस पर कई सवाल उठ रहे थे। मौटे तौर पर इन सवालों का सार यही था कि कैसे वित्त मंत्री इन सब चुनौतियों को पार कर देश को आगे ले जाने वाला बजट दे पाएंगी? अब जब बजट पेश हो चुका है तो सारे सवाल उस बड़ी पहेली में सिमट गए हैं कि क्या ये बजट देश को नई दिशा दे पाएगा?

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वैसे तो बजट को नापने के कई पैमाने होते हैं, लेकिन मौजूदा दौर की सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था में सुस्ती और बेरोज़गारी है। तो क्या ये बजट मंदी को दूर करने वाला बजट साबित होगा? क्या इससे 45 साल की सबसे बड़ी बेरोज़गारी दूर हो पाएगी? और सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या इससे हमारी अर्थव्यवस्था के 5 ट्रिलियन के स्तर तक पहुंचने के सपने को मदद मिलेगी?
सरकार के बजट में जो रोडमैप दिखाया गया है, वो ये भरोसा तो देता है कि उम्मीद पूरी होगी, लेकिन वो कब होगी इसकी मियाद साफ नहीं हो पाई है। रोजगार बढ़ाने की सबसे बड़ी पहल इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में दिखती है। सरकार नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन प्रोजेक्ट पर 102 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगी। ये इतनी बड़ी धनराशि है कि इससे देश के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के साथ ही बड़े पैमाने पर रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे।

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बजट से पहले आए इकोनॉमिक सर्वे में भी एनआईपी को लेकर बड़ी उत्साहजनक टिप्पणी है। इसके मुताबिक एनआईपी से इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं बेहतर तरीके से आगे बढ़ेंगी। इससे आर्थिक विकास ज्यादा समावेशी होगा जो जीवन स्तर में सुधार के साथ ही रोजगार पैदा करने का जरिया भी बनेगा।
बजट में हाई-वे और इकोनॉमिक कॉरिडोर के लिए ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर पर 1.7 लाख करोड़ रुपए का प्रस्ताव बड़ी बात है। इससे 2500 किलोमीटर के एक्सप्रेस हाई-वे, 2000 किलोमीटर के स्ट्रेटेजिक हाई-वे, 6000 किलोमीटर के हाई-वे और 9000 किलोमीटर का इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाए जाने की योजना है। देश के इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही ये प्रस्ताव रोजगार की तस्वीर बदलने में भी कारगर साबित होगा।

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लेकिन खुद वित्तमंत्री के मुताबिक सबसे ज्यादा नौकरियां शिक्षा और नर्सिंग के क्षेत्र में आएंगी। बजट में युवाओं के कौशल विकास के लिए 3000 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है। इससे युवा शिक्षक, नर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ़ और विदेश में देखभाल करने वाले व्यक्ति के रूप में नौकरी पा सकेंगे। कौशल विकास के तहत ग्रामीण युवाओं को भी इंटर्नशिप कराने का प्रस्ताव है। सरकार को उम्मीद है कि इस पहल से गांव तक भी नौकरियां पहुंचेगी।
बजट में पर्यटन और हेल्थ केयर के लिए बड़े प्रस्ताव और पीएम जनआरोग्य जैसी योजना में पीपीपी मोड में 20 हजार से ज्यादा अस्पताल बनाए जाने जैसे कई कदम हैं जिनसे नई नौकरियां पैदा होंगीं। मोबाइल फ़ोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक सामानों के निर्माण के लिए सरकार खास पैकेज लाने जा रही है जिससे फ़ैक्ट्री की नौकरियां भी पैदा हो सकेंगी। हालांकि ये सवाल फिर भी रहेगा कि क्या ये नौकरियां इतनी होंगी कि हर साल श्रम बल में जुड़ने वाले सभी युवाओं को रोजगार दे सके।

बजट से जुड़ा दूसरा बड़ा सवाल उपभोग को लेकर है जिसकी अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी है। फिलहाल यह जीडीपी का करीब 60 फीसद है। इनकम टैक्स में कटौती का नया स्लैब टैक्स पेयर्स को करीब 40 हजार करोड़ की राहत पहुंचा सकता है। सरकार का अनुमान है कि इससे उपभोग के क्षेत्र को तत्काल मजबूती मिल सकती है। खास तौर पर युवा वेतनभोगी अपने खर्च की प्राथमिकताओं – वाहन या उपभोग की दूसरी वस्तुओं की खरीद पर नए सिरे से विचार कर सकता है। कटौती के बावजूद मनरेगा और पीएम किसान योजना जैसी फ्लैगशिप स्कीम्स से ग्रामीण जनता तक बड़ी राशि पहुंचेगी। इससे खर्च और खपत बढ़ेगी जो विकास को नई गति देगी।

बजट में इस तरह से विकास के नए अवसर बनाने के कई और भी कदम हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था के लिहाज से कुछ फैसले चौंकाते भी हैं। बजट में रियल एस्टेट या ऑटो सेक्टर के लिए कोई बड़ा एलान नहीं दिखा जबकि ये दोनों सेक्टर उपभोक्ता मांग में तत्काल इजाफा लाने वाले हैं। निवेशकों की लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स को खत्म करने की उम्मीद पूरी नहीं हो पाई। उल्टे निवेशक पर डिविडेंट डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स खत्म करने की मार पड़ी है। इस फैसले से निवेशक का डिविडेंट अब करदाता की आय में जुड़ जाएगा। बाजार को अगले वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि दर का 10 फीसद अनुमान, विनिवेश के लिए 2.10 लाख करोड़ के लक्ष्य की ही तरह महत्वाकांक्षी लग रहा है। इसी साल सरकार को विनिवेश से एक लाख करोड़ रुपए की उम्मीद थी, लेकिन लक्ष्य का केवल 40 फीसद ही हाथ लग पाया है। हालात इतने चुनौतीपूर्ण हैं कि जो सरकारी सम्पत्ति आज तक जुटाई गई है, उसे बेचना भी संभव नहीं हो रहा है यानी मंडी तो तैयार है पर खरीदार गायब हैं। एयर इंडिया इसका प्रमाण है।

बजट के इतर भी सरकार के कुछ फैसले आर्थिक मोर्चे पर चुनौती की ओर इशारा कर रहे हैं। जीएसटी का कलेक्शन 1.2 लाख करोड़ रुपए कम रहने का अनुमान है। कम आय की भरपाई के लिए सरकार ने अब रिजर्व बैंक से 45 हजार करोड़ रुपए मांगे हैं। ये पिछले साल लिए 1.48 लाख करोड़ के डिविडेंड और 28 हजार करोड़ के अंतरिम डिविडेंड के अतिरिक्त है। इसके अलावा सरकार ने तेल कंपनियों और दूसरी कई सरकारी कंपनियों से 19000 करोड़ मांगे हैं। वहीं सरकारी खजाना भरने के लिए कई कंपनियां अपने कैश रिजर्व से सरकार से शेयर वापस खरीद रही हैं। साल 2015-2019 के बीच के चार साल में घरेलू खर्च जीडीपी के 9 फीसद से बढ़कर 11.7 फीसद हो गया है। इससे महंगाई, घटती ब्याज दर और बढ़ते घरेलू कर्ज का मकड़जाल तैयार हो रहा है जो अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है।

बजट में देश की जनता के लिए तमाम अवसरों और चुनौतियों के बीच एक राय पड़ोसी देश चीन से सबक लेने की भी है। चीन में भी इस समय वैसी ही मंदी है जैसी भारत में है। लेकिन क्योंकि चीन में भारत की तरह जनतंत्र नहीं है, इसलिए वहां सरकार जनमत की परवाह किए बिना राष्ट्रहित में कठोर नीतियां लागू कर सकती है। वैसे भी चीन की जनता आज की तुलना में कहीं बुरे दिन देख चुकी है और वहां राष्ट्रहित में पेट काटना शहादत नहीं समझा जाता।
वैसे आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की जनता को बजट पर गुमराह करने वालों से बचने की सलाह दी है और इसे दशक का सबसे अच्छा बजट कहा है। प्रधानमंत्री का कहना है कि इस बजट में विजन और एक्शन दोनों है जिससे इकोनॉमी के तमाम इंजन – आमदनी, निवेश, मांग और खपत में इजाफा होगा। आम जनता की जुबान में कहें तो प्रधानमंत्री ने सबको भरोसा दिलाया है कि इस बजट से देश की मौजूदा जरूरत और भविष्य की उम्मीदें पूरी होगी।

(वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र राय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)