Opinion- वंशवाद-परिवारवाद राजनीति को रसातल तक ले जाता है

वैसे भी वंश से अलग पार्टी के अन्य नेताओं की हैसियत चपरासी से अधिक नहीं है। ‘‘शीर्ष’’ के अलावा बाकी सब के बस शीर्ष के गुलाम हैं।

New Delhi, Feb 17 : यदि किसी के सिर में घाव हो और वह इलाज पैर का करा रहा हो तो क्या उसका घाव कभी सूखेगा ? कभी नहीं छूटेगा। बल्कि, वह बढ़ता ही जाएगा । और, एक दिन उसका पूरा शरीर गल जाएगा। वही हाल इस देश के एक राजनीतिक दल का है। उसके सिर का घाव बढ़ रहा है। उसके लिए जिम्मेदार गलत व बकलोल शीर्ष नेतृत्व है।

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होटल का हर बियरर पार्टी तो नहीं चला सकता !! वहां नेतृत्व के खिलाफ बोलना ईशनिन्दा है।
इसलिए जब वह दल चुनाव हारता है, तो दोष किसी और को दिया जाता है। ऐसा ही करने की मजबूरी है। जब असली कारण तक पहुंचने की मनाही है तो फिर इधर -उधर ही तो दोष ढूंढ़ना पड़ेगा।

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मजबूरी है। और चारा ही क्या है ? वैसे भी वंश से अलग पार्टी के अन्य नेताओं की हैसियत चपरासी से अधिक नहीं है। ‘‘शीर्ष’’ के अलावा बाकी सब के बस शीर्ष के गुलाम हैं। इस तरह पार्टी भी बर्बाद हो रही है और देश के लोकतंत्र का स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है। आखिर बकलोल नेतृत्व पार्टी का कैसे नेतृत्व करे ?

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बकलोल जी तो किसी दूसरे काम के लिए बने थे। पर उन्हें गलत जगह पर बैठा दिया गया।
अब उसका हश्र देखते जाइए। कुछ अन्य दलों का भी ऐसा ही हाल है। इस पर अच्छा शोध निबंध बन सकता है कि वंशवाद-परिवारवाद किस तरह राजनीति को रसातल तक ले जाता है।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)