Opinion – कोरोना को भारत मात देकर रहेगा

इस समय देश के डाॅक्टर, नर्स, पुलिसकर्मी, बैंक कर्मचारी और पत्रकार अपनी जान हथेली पर रखकर लोगों की सेवा में लगे हुए हैं।

New Delhi, Apr 14 : आज केंद्र सरकार के दफ्तरों में मंत्री लोग और बड़े अफसर दिखाई पड़े हैं, उससे आप पक्का अंदाज लगा सकते हैं कि अब यही साहस राज्यों की सरकारें भी दिखाना शुरु कर देंगी। धीरे-धीरे छोटे कर्मचारी भी दफ्तरों में आने लगेंगे। इस संबंध में मेरा पहला सुझाव तो यही है कि मध्यप्रदेश में उसके मुख्यमंत्री शिवराज चौहान अपने मंत्रिमंडल का गठन तुरंत कर लें तो इसमें कोई बुराई नहीं हैं। बिना भीड़-भड़क्का और धूम-धड़क्का किए हुए उनका मंत्रिमंडल भोपाल में शपथ ले सकता है।

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पिछले तीन-चार हफ्तों से वे ही सरकार चलाने का बोझ अकेले उठा रहे हैं। यदि देश के सभी प्रदेशों में वहां की सरकारें सक्रिय हो जाएं तो जनता को जबर्दस्त राहत मिलेगी। जनता को यह भी अच्छा लगेगा कि वह तीन-चार हफ्ते बाद अपने डरपोक और घर-घुस्सू नेताओं के दर्शन कर सकेगी। यदि मंत्री बाहर निकलेंगे तो हजारों कार्यकर्ता भी मैदान में कूद पड़ेंगे। यह पहल कोरोना-युद्ध में भारत को विजयी बना देगी। इस समय देश के डाॅक्टर, नर्स, पुलिसकर्मी, बैंक कर्मचारी और पत्रकार अपनी जान हथेली पर रखकर लोगों की सेवा में लगे हुए हैं।

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यदि करोड़ों राजनीतिक कार्यकर्ता भी मैदान में आ गए तो देश की अर्थ-व्यवस्था डांवाडोल होने से बच जाएगी। सरकार ने घोषणा की है कि आवश्यक माल ढोनेवाले ट्रकों पर कोई पाबंदी नहीं होगी। उनके ड्राइवरों को तंग नहीं किया जाएगा। मालगाड़ियां चल ही रही हैं। राज्य सरकारें अपने-अपने किसानों को फसल काटने और बेचने की सुविधा देने पर विचार कर रही हैं। यदि शहरों के कारखाने भी कुछ हद तक चालू कर दिए जाएं तो प्रवासी मजदूरों की समस्या भी सुलझेगी। जो अपने गांवों में लौटना चाहते हैं, उनका इंतजाम भी किया जाए। करोड़ों गरीबी रेखावाले लोगों को राशन और नकद रुपए सरकार ने पहुंचा दिए हैं।

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समाजसेवी संस्थाओं ने भी अपने खजाने खोल दिए हैं। दो लाख से ज्यादा लोगों की जांच हो चुकी है। सैकड़ों कोरोना मरीज स्वस्थ होकर घर लौट चुके हैं। करोड़ों मुखौटे बंट रहे हैं। लोग शारीरिक दूरी बनाकर रखने में पूरी सावधानी बरत रहे हैं।  कुछ प्रतिबंधों के साथ रेलें और जहाज भी चलाए जा सकते हैं। अगले दो हफ्तों में भारत कोरोना को मात देकर ही रहेगा।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)