शुक्रिया इरफ़ान, तुम गए भी तो सबको जोड़ते चले गए

इरफ़ान के जाने पर हर किसी को एक सा देख कर, एक बात और ज़ेहन में आई. वो ये कि हम सब हैं तो वही. एकदम कच्चे, साफ़, प्रेम, दुख, पीड़ाओं, यात्राओं, जुड़ाव और जीवन से भरे लोग.

New Delhi, Apr 30 : हममें से कई लोग आज रोए. न जाने क्यों रोए. न जाने उसके जाने में ऐसा क्या था, जो भीतर कुछ दरकता सा महसूस हुआ. हर इंसान ने एक ही बात कही. ऐसा लगा जैसे कोई अपना सा चला गया. ऐसा लगा कि अभी तो नहीं जाना था. अभी तो बहुत सारा इंतज़ार था उसे और देखने का. ऐसा लगा उसके भीतर न जाने और कितनी संभावना थी ख़ुद को उतार देने की हम सबके भीतर और हम सब अनजाने में उसके लिए बेसबर बैठे थे.

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एक टीवी सीरीज़ का दृश्य है. एक मां अपने 11 साल के बेटे के कमरे में ये बताने पहुंचती है कि उसके सबसे अच्छे दोस्त की मौत हो गई है. और वो उससे कहती है कि बेटा किसी की मृत्यु हमेशा ही दुखद है, लेकिन किसी का अकस्मात चले जाना, बेउम्र, यूंही अचानक.. एक गहरा घाव छोड़ती है. हम सभी शोक में हैं और अगर तुम्हें रोना आए तो तुम उस बात को लेकर शर्मिंदा मत होना.

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इरफ़ान के जाने पर हर किसी को एक सा देख कर, एक बात और ज़ेहन में आई. वो ये कि हम सब हैं तो वही. एकदम कच्चे, साफ़, प्रेम, दुख, पीड़ाओं, यात्राओं, जुड़ाव और जीवन से भरे लोग. ऐसा कैसे हो गया कि कल तक मज़हब और राजनीति के नाम पर बंटे लोग एक साथ एक ही बात पर रो पड़े हैं. तो मतलब कुछ तो होगा ना जो हम सब के दिलों के तारों को एक सा जोड़ता होगा. मतलब हम असल में तो यही हैं जो ठीक इस पल में हैं. वो नहीं जो कल थे या कल फ़िर होंगे. हमें इस पल को, जिसमें हम सब हैं, इसे हमेशा के लिए अपने भीतर फ़्रेम कर लेना चाहिए.

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ये किसी की मौत पर कहने के लिए शायद बेहद अजीब है. लेकिन हम सबको इस तरह इतना मानवीय, इतना मनुष्य सा देखना इतना सुखद है. कि हम सब कल तक जिस तरह बंटे और लड़े पड़े थे उसे छोड़ कर एक तरह से वल्नरेबल हैं और उसे ज़ाहिर कर पाने में सक्षम हैं. कि हम सब एक दूसरे को ठीक वैसा होता देख पा रहे हैं जैसा हम ख़ुद महसूस कर पा रहे हैं. एक बेहद नाज़ुक पल में हम एक दूसरे के साक्षी हैं और उसका सम्मान कर पा रहे हैं. हम अपने अपने घरों में कै़द हैं. लेकिन कहीं न कहीं जानते हैं कि हम सब क्या महसूस कर रहे हैं. एक पल में एक साथ, एक सा कुछ महसूस कर सकने का ये अद्भुत पल हम सबके भीतर हमेशा ज़िंदा रहेगा.
शुक्रिया इरफ़ान. तुम गए भी तो सबको जोड़ते चले गए.

(पत्रकार शोभा शमी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)