Opinion- मजदूरों का पलायन रुकेगा यदि देश का समरूप विकास हो

पंजाब की तरह यहां खेती का विकास हुआ होता तो एक हद तक क्षतिपूत्र्ति हो जाती। पर, वह भी नहीं होने दिया गया। कोसी और गंडक सिंचाई योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं।

New Delhi, May 01 : कोरोना महामारी के समय एक बात फिर खुल कर सामने आई है।
वह यह कि कितनी बड़ी संख्या में बिहार के मजदूरों को हर साल दूसरे राज्यों में रोजी-रोटी के लिए जाना पड़ता है ! अपुष्ट आकलन 30 लाख मजदूरों का है। आजादी के बाद यदि देश का समरूप विकास हुआ होता तो शायद बिहार से मजदूरों का असामान्य पलायन हर साल नहीं होता। आजादी के बाद के वर्षों में विकास की असमान नीति के कारण कुछ राज्य उन्नत तो हुए।पर, बिहार जैसे कुछ राज्य पिछड़ गए।

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बिहार,मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश और राजस्थान को तो ‘बीमारू’राज्य कहा गया। बेहतर जीवन के लिए किसी अन्य देश या प्रदेश में किसी का जाना चिंता की बात नहीं। पर, बुनियादी जरुरतें पूरी करने के लिए घर-द्वार-परिवार से लाखों लोगों को कोसों दूर जाना पड़े तो यह स्थिति जरुर चिंताजनक हो जाती है। उस चिंता को कोरोना जैसी विपत्ति कई गुणा बढ़ा देती है। कोई नहीं कह सकता कि यह आखिरी विपत्ति है।

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अविभाजित बिहार में इसलिए बसा टाटा नगर
आजादी से पहले अविभाजित बिहार के खनिज बहुल हिस्से में जमशेदजी नौसरवान जी टाटा ने उन्नीसवीं सदी में बड़ा उद्योग लगाया। उस जगह का नाम पड़ा जमशेदपुर। खनिज पदार्थों के मामले में देश का संपन्न राज्य होने के कारण टाटा को गुजरात से बिहार आना पड़ा था। रेल भाड़ा को लेकर यदि पहले की स्थिति बनी रहती तो आज भी क्या होता ! जमशेदपुर की तरह यहां अन्य अनेक बड़े आद्योगिक केंद्र बनते । लोगों को रोजगार मिलते।इस राज्य का पिछड़ापन कम होता।
पर, पचास के दशक में केंद्र सरकार ने बिहार से वह बढ़त छीन ली। रेल भाड़ा समानीकरण नीति,1952 ने अविभाजित बिहार की आर्थिक प्रगति रोक दी।

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पंजाब की तरह यहां खेती का विकास हुआ होता तो एक हद तक क्षतिपूत्र्ति हो जाती। पर, वह भी नहीं होने दिया गया। कोसी और गंडक सिंचाई योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं। रेल भाड़ा समानीकरण नीति के तहत खनिज पदार्थों की ढुलाई का रेल भाड़ा पूरे देश के लिए एक समान कर दिया गया था। नियम बना कि धनबाद से सौ टन कोयला रांची पहुंचाने का जितना रेल भाड़ा लगेगा,उतना ही रेल भाड़ा उसे मद्रास या बंबई पहुंचाने में लगेगा। फिर बंबई का कोई उद्योगपति बंदरगाह के पास का इलाका छोड़कर बिहार में उद्योग क्यों लगाता ? इस नीति का जब भारी विरोध हुआ तो नब्बे के दशक में केंद्र सरकार ने इसे समाप्त किया । पर एक अनुमान के अनुसार उस नीति से अविभाजित बिहार को इस बीच 10 लाख करोड़ रुपए का नुकसान पहुंच चुका था।
उसकी भरपाई आज तक नहीं हो सकी। विशेष राज्य के दर्जे की मांग उसी क्षतिपूत्र्ति के लिए होती रही है। नतीजतन बिहार से मजदूरों का पलायन अवश्यम्भावी हो गया।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)