सरकार के वायदे- नारे इन गरीब मजदूरों को रोक नहीं पा रहे हैं, सरकार को यह स्वीकार कर लेना चाहिए
लॉक डाउन 2 के बाद हमने सोचा था कि शायद अभी पलायन का सिलसिला रुक जाएगा , लेकिन दुर्भाग्य है कि पलायन अब पूरे देश में फैल चुका है।
New Delhi, May 08 : अभी कुछ देर पहले साहिबाबाद में मोहन नगर की तरफ जा रहा था। पैर घसीटते तीन लड़के मिले वही पीठ पर पिट्ठू बैग ,मुंह पर सफेद रंग का कपड़ा ,पैर घिसटते हुए अनंत की और हताश चले जा रहे थे।
थोड़ा रोक कर पूछा उनसे– बिहार जा रहे थे।
ऐसे ही परसों सुबह सुबह 5:00 बजे मुझे कोई 13-14 लोग मिले थे ,साइकिलों से बिहार कूच कर रहे थे ।सामान के साथ में स्टोवः था । दाल भात था ।जहां जगह मिलेगी, जब धूप तेज होगी तो एक बार दाल भात खा लेंगे और फिर आगे चल जाएंगे।
हमने लॉक डाउन की घोषणा के बाद दिल्ली में कई लाख लोगों का पलायन देखा है । मेरा तो बहुत छोटा सा योगदान था लेकिन मेरे कई दोस्तों ने ,कई अनजान लोगों ने ,लाखों लाख लोगों को खाना खिलाया ,पानी पिलाया, फल दिए । इस समय पलायन का सिलसिला कई दिन चला था । लॉक डाउन 2 के बाद हमने सोचा था कि शायद अभी पलायन का सिलसिला रुक जाएगा , लेकिन दुर्भाग्य है कि पलायन अब पूरे देश में फैल चुका है। केरल में भी ,तेलंगाना में भी , महाराष्ट्र में , जम्मू कश्मीर में भी , हर जगह लोग सड़कों से , सड़कों पर पुलिस रोके तो गलियों से, गलियों से पुलिस रोके तो रेल पटरी से , रेल पटरी से पुलिस रोके तो खेतों से , कोई यहां तक कि नदियों तालाबों में कूद के भी अपने घर जाने को व्याकुल हैं।
हर जगह सारे देश में बड़े स्तर पर पलायन हो रहा है। शायद दुनिया का अभी तक का सबसे बड़ा प्लायन। आज फिर जरूरत है कि हम सब लोग एक हों और घर जाने वाले ग्रामीणों के लिए कुछ खाने पीने की व्यवस्था कर सकें। सबसे ज्यादा जरूरी है कि सरकार बगैर समय बिताए हर जिले में जो भी बसें उपलब्ध हैं, जितनी ट्रेनों को चला कर तीन से चार दिन में सभी पलायन करने वालों को उनके गृह जिले तक कम से कम पहुंचा दें।
अब तापमान बढ़ रहा है , गुंजाइश है शहरों में लोगों को पीने का पानी नहीं मिलेगा और अजगर से चौड़ी डामर की सड़कें अब पैरों के छालों को घाव में बदल देंगे ।
सरकार के वायदे- नारे इन गरीब मजदूरों को रोक नहीं पा रहे हैं, सरकार को यह स्वीकार कर लेना चाहिए ।
इसको एक बड़े अवसर के रूप में स्वीकार करना चाहिए ।एक समय एक साथ सरकार के पास में पूरे देश का सबसे सटीक आंकड़ा एकत्र हो सकता है कि कितने मजदूर किस काम के लिए पलायन करते हैं । और यह आंकड़े कंप्यूटर में डाल कर सामान्य सॉफ्टवेयर की मदद से अपने जिले या अधिक से अधिक करीब 5 जिलों में उन को रोजगार मुहैया करवाने की व्यवस्था करना अब बहुत सरल होगा ।
लेकिन आज जरूरत है सड़क पर चलने वाले लोगों को रोकने, उन्हें लाठी मारने या उनको एकांतवास के लिए जबरिया बंद करने के लिए लगी पुलिस को थोड़ा सभ्य बनाया जाए।
सबसे पहले इन व्याकुल परेशान लोगों को उनके अपने घर गांव को पहुंचाने की व्यवस्था की जाए।
हमारे साथी जो भी सड़कों के आस-पास रहते हैं खासकर मीरा रोड ठाणे और उससे आगे आगरा बॉम्बे रोड पर– इसके अलावा दिल्ली से लखनऊ और लखनऊ से बिहार को जाने वाले रास्तों पर– अपने घर गांव के बाहर इन बेचारों को पानी पिलाने की व्यवस्था करें। संभव हो तो कुछ भुजा या कुछ भोजन की व्यवस्था करें । यह बहुत जरूरी है वरना आने वाले दिनों में हमारी सड़कें लाशों से पटी होंगी।
खासकर सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। यह आंकड़े सरकारी दस्तावेज का हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं लेकिन हकीकत है कि हर दिन देशभर में घर की ओर जाते बेबस मजदूरों को सड़क पर कुचल के मरने या पानी की कमी या थकान के कारण मौतों के आंकड़े औसतन हर दिन 100 का है। यह मौत का आंकड़ा कोरोना से होने वाली मौत के आंकड़ों से अब कहीं बहुत ज्यादा है।इस तरह की मौत सभ्य समाज में शर्मनाक है। टीवी मीडिया तू विदेश से आने वाले जहाज में सवार दो सौ ढाई सौ लोगों की घर वापसी पर जश्न मना रहा है लेकिन कई लाख लोग सड़क पर पड़े हैं उनकी खबर उसे भी बेखबर है उनकी खबर सरकार ने इसके लिए आप सभी लोग अपने इलाके के सांसद विधायक कलेक्टर सभी को s.m.s. भेजें व्हाट्सएप संदेश करें ईमेल करें और दवा भी बनाएं और सबसे जरूरी इन लोगों के खाने-पीने के लिए जरूर विचार करें।