पीएम फंड – कांग्रेसी फौज इनदिनों विचित्र राजनीतिक बौखलाहट और बदहवासी का शिकार बनी हुई है

कोरोना महामारी के लिए बने पीएम केयर फंड में कितना पैसा जमा हुआ.? वो पैसा कहां खर्च हुआ.? सरीखे सवाल कांग्रेसी फौज की उस राजनीतिक बौखलाहट, राजनीतिक बदहवासी की हास्यास्पद स्थिति का शर्मनाक परिचय दे रहे हैं.

New Delhi, May 27 : पता नहीं कितने लोगों को याद है, लेकिन मुझे अच्छी तरह से याद है कि जून 2013 में केदारनाथ में आयी जलप्रलय के शिकार बने लोगों को राहत पहुंचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोगों से प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में दान देने की अपील की थी. लोगों ने पैसा दान दिया भी था. इसके बाद राहत कार्य में खर्च हुई रकम की रिपोर्ट भी आयी थी. सुना है रिपोर्ट में यह सच भी उजागर हुआ था कि राहत के नाम पर 195 रूपये में आधा लीटर दूध खरीदा गया. राहत कार्य के नाम पर जिन ट्रकों में डीज़ल भरवाने के लिए लाखों रूपये के बिलों का भुगतान किया गया, उन ट्रकों के नंबर आरटीओ दफ्तर में स्कूटर मोटर साइकिलों के नंबरों के रूप में दर्ज थे.

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राहत कार्य करने गए अमले के एक टाइम के भोजन के खर्च का बिल 900 रूपये बना था . उस निर्जन बीहड़ तबाह इलाक़े में राहत कार्य करने गए सरकारी अमले के होटल बिल साढ़े छह हजार प्रतिदिन से साढ़े सात हजार रूपये प्रतिदिन तक के बने थे. उस समय उत्तराखंड और केन्द्र दोनों ही स्थानों पर कांग्रेस की ही सरकार थी. उस जलप्रलय में उन सरकारों का अमला किस प्रकार का राहत कार्य कैसे कर रहा था. इसकी अत्यन्त सूक्ष्म बानगी मात्र है उपरोक्त विवरण।
उसी राहत कार्य के दौरान दिल्ली की उस ब्लू स्ट्रीक हेलिकॉप्टर सर्विस नाम की कम्पनी की भी चर्चा खूब हुई थी जिसे तत्कालीन सरकार ने राहत कार्य की अनुमति दी थी. उस अनुमति के दम पर वो कम्पनी जल प्रलय के स्थान से जीवित व्यक्ति को निकाल के देहरादून तक पहुंचाने की फीस दो लाख रूपये और मृत शरीर को पहुंचाने की फीस एक लाख रूपये वसूल रही थी. कम्पनी उसी वीवीआईपी दामाद के नाम पर रजिस्टर्ड थी जो दामाद अपनी भ्रष्टाचारी करतूतों के कारण पूरे देश में कुख्यात है.

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आज उपरोक्त प्रकरण के साथ पोस्ट की शुरुआत इसलिए की है क्योंकि कांग्रेसी फौज इनदिनों विचित्र राजनीतिक बौखलाहट और राजनीतिक बदहवासी का शिकार बनी हुई है. कोरोना महामारी के लिए बने पीएम केयर फंड में कितना पैसा जमा हुआ.? वो पैसा कहां खर्च हुआ.? सरीखे सवाल कांग्रेसी फौज की उस राजनीतिक बौखलाहट, राजनीतिक बदहवासी की हास्यास्पद स्थिति का शर्मनाक परिचय दे रहे हैं.
अतः कांग्रेसी फौज को पहले यह याद कराना जरूरी है कि 26 दिसंबर 2004 को आयी सुनामी ने 12 हजार लोगों के प्राण ले लिए थे. लाखों लोगों को बेघर कर दिया था. उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में दान के लिए लोगों से अपील की थी. इसके 5 महीने (154 दिन) बाद मनमोहन सिंह ने 3 जून 2005 को देश के समक्ष कुल 11544.91 करोड़ की समस्त राहत राशि के खर्च का लेखाजोखा प्रस्तुत किया था. जबकि पीएम केयर फंड बने अभी मात्र 45 दिन हुए हैं. 1.75 लाख करोड़ की रूपये की राहत राशि के प्रथम पैकेज समेत सरकार द्वारा खर्च किए गए 4-5 लाख करोड़ रूपये तो प्रथम दृष्टया ही दिखाई दे रहे हैं. इसके बावजूद पीएम केयर फंड के हिसाब किताब को लेकर कांग्रेसी फौज के प्राण उसके गले में अटके क्यों नजर आ रहे हैं.?

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पीएम केयर फंड के दुरूपयोग का क्या कोई एक भी प्रकरण देश के समक्ष अबतक उजागर कर सकी है कांग्रेसी फौज.? इसका उत्तर है नहीं…
पीएम केयर फंड के उपयोग से सम्बन्धित किसी भी प्रकार की गड़बड़ी धांधली भ्रष्टाचार का क्या कोई एक भी साक्ष्य या प्रमाण कांग्रेसी फौज ने देश के समक्ष आजतक प्रस्तुत किया है.? इसका भी उत्तर है नहीं…
फिर क्या कारण है कि जिस प्रधानमंत्री ने पिछले 5 सालों में गैस सिलेण्डर, मनरेगा, खाद सब्सिडी की चोरी पकड़ के देश के खजाने के एक लाख करोड़ से अधिक रूपये बचाए हैं, उस प्रधानमंत्री पर वो लोग शक कर रहे हैं, वो लोग उससे हिसाब किताब मांग रहे हैं जिनके राज में उपरोक्त चोरी खुलेआम होती थी और उन्होंने उस चोरी को ना कभी रोका ना कभी पकड़ा.

क्या कारण है कि जिस प्रधानमंत्री ने पिछले 5 सालों में स्पेक्ट्रम तथा कोयले की खदानों की नीलामी कर के देश को लगभग 10-11 लाख करोड़ रू की आय कराई है उस प्रधानमंत्री पर वो लोग उंगली उठा रहे हैं। वो लोग अब हिसाब किताब मांग रहे हैं जिनके राज में वो कोयला खदाने तकरीबन मुफ्त में दे दी गईं थीं और पहले आओ पहले पाओ की शैली में सारे स्पेक्ट्रम केवल 7-8 हजार करोड़ रूपये में बांट दिए गए थे.
अतः आज पीएम केयर फंड के नाम पर भयंकर राजनीतिक हुडदंग कर रही कांग्रेस के अराजक राजनीतिक आचरण से यह सवाल स्वतः उत्पन्न होता है कि कांग्रेस द्वारा यह हंगामा क्यों… इतना हुड़दंग क्यों… आखिर उसकी नीयत क्या है…?

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)