राव-सिंह की जोड़ी ने सुधारीकरण किया तो उससे पहले बिगाड़ीकरण किसने किया था?

साठ के दशक में इस देश में ‘हरित क्रांति’ हुई। मैं किसान परिवार से ही आता हूं। हम सबने बेहतर व पहले से अधिक फसल देखकर खुशियां मनाई थीं। पर, धीरे- धीरे बात समझ में आने लगी थी।

New Delhi, Jun 07 : 1991 में पी.वी.नरसिंह राव -मन मोहन सिंह की जोड़ी ने देश में आर्थिक सुधारीकरण की बड़े पैमाने पर शुरूआत की थी। राव-सिंह की सरकार कांग्रेस की ही सरकार थी। पर, किसी ने तब भी यह सवाल नहीं पूछा कि जब राव-सिंह की जोड़ी ने सुधारीकरण किया तो उससे पहले बिगाड़ीकरण किसने किया था ? वह कौन था ? अनुमान लगाइए। किसी का नाम लेने की जरुरत नहीं। बस, इतना ही बता दीजिएगा कि ‘बिगाड़ीकरण’ करने वाला दूरदर्शी था या ‘सुधारीकरण’ करने वाला ?

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साठ के दशक में इस देश में ‘हरित क्रांति’ हुई। मैं किसान परिवार से ही आता हूं। हम सबने बेहतर व पहले से अधिक फसल देखकर खुशियां मनाई थीं। पर, धीरे- धीरे बात समझ में आने लगी थी। पहले के देसी गेहूं की रोटी में जो मिठास थी, वह बाद के विकसित गेहूं में नहीं रही। एक बात और हुई। हरित क्रांति के लिए हमारी जमीन को भारी कीमत चुकानी पड़ी। अधिकाधिक रासायनिक खाद – कीटनाशक दवाओं के कारण मिट्टी का स्वास्थ्य खराब होने लगा। उसका असर भूजल पर भी पड़ने लगा। अनेक लोग कैंसर से जूझ रहे हैं। फिर भी दिल्ली के हमारे हुक्मरान ताना मारते थे। कहते थे कि बिहार जैसे पिछड़े राज्य में रासायनिक खाद की खपत अपेक्षाकृत कम है।

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कटु अनुभवों के बाद क्या स्थिति है ! अब जैविक खेती पर जोर दिया जा रहा है। हमारे पूर्व पत्रकार व पूर्व राज्य सभा सदस्य मित्र आर.के.सिन्हा ने हाल में कहा कि जिंदा रहने के लिए जैविक उत्पादों का सेवन कीजिए। वे खुद करीब 50 एकड़ जमीन में जैविक खेती कर रहे हैं। ऐसे अन्य हजारों लोगों ने रासायनिक खेती छोड़ दी है।

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अब बताइए कि खेतों में रासायनिक खाद-कीटनाशक यानी जहर पटा देने वाला दूरदर्शी था या आज जैविक खेती अपनाने वाला ? याद रहे कि कटु अनुभवों के कारण जब अमेरिका में किसान जैविक खेती की ओर बढ़ रहे थे उन्हीं दिनों भारत में रासायनिक खेती का श्रीगणेश हो रहा था।
हालांकि हमारे इलाके के कांग्रेसी विधायक व कट्टर गांधीवादी जगलाल चैधरी उन्हीं दिनों यानी साठ के दशक में ही गांवों में घूम -घूम कर यह कह रहे थे कि रासायनिक खाद का प्रयोग मत कीजिए।
यह मिट्टी के लिए खतरनाक है।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)