‘कोका कोला कंपनी शुरू करनेवाला शिकंजी बेचनेवाला आदमी था’, जानिये कैसे हुई थी कोक की शुरुआत

राहुल गांधी के बहाने कोका कोला का संक्षिप्त इतिहास लिख दिया है। खेद है कि ना कोका कोला की खोज करनेवाले ने कभी शिकंजी बेची थी और ना उसे मशहूर ब्रांड बनाकर पैसा कूटनेवाले ने।

New Delhi, Jun 13 : ‘कोका कोला कंपनी शुरू करनेवाला शिकंजी बेचनेवाला आदमी था।’ इस एक लाइन पर दो साल पहले क्यों हंसा जा रहा था? दरअसल ये बात राहुल गांधी ने एक रैली में कही थी. आइए एक हल्की नज़र कोका कोला के बनने पर डाल लेते हैं।

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अमेरिका के अटलांटा में वो 1886 का साल था जब एक घर के तहखाने में कोका कोला नाम के पेय पदार्थ का जन्म हुआ। ज़ाहिर है जैसे बच्चे की शक्ल शुरूआती दिनों में अलग होती है वैसे ही कोका कोला भी एकदम शुरू में आज से अलग थी। नई चीज़ें खोजने, पेटेंट कराने और उससे पैसे कमाने की धुन लगी थी। फार्मासिस्ट जॉन पैम्बर्टन अलग-अलग तरह के रसायन मिलाकर एक ऐसा स्वाद ढूंढ निकालना चाहते थे जो लोगों को भा जाए। इससे पहले वो तमाम तरह की दवाइयां खोजने में लगे रहे थे। मूल रूप से वो दवाइयों के क्षेत्र में ही प्रयोग कर रहे थे, लेकिन कोका कोला उनके हाथों होनेवाला चमत्कार था।

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अटलांटा में तब सोडा फाउंटेन नाम की जगह पर लोगों की खूब आवाजाही रहती थी। यहां लोग इकट्ठा होते और खाने पीने के साथ ज़ोरदार बहसें करते। तब औरतों को हर जगह जाने की आज़ादी नहीं थी पर सोडा फाउंटेन में हर कोई आ-जा सकता था। इस जगह पर तरह-तरह के फ्लेवर की ड्रिंक भी परोसी जाती थी। कार्बोनेटिड पानी में लेमन, स्ट्रॉबेरी, चॉकलेट हर तरह के सीरप को घोलकर ग्राहकों को पेश किया जाता था। पैम्बर्टन ऐसा ही कुछ करना चाह रहे थे। गर्म पानी में तमाम तरह की सीरप डालकर वो प्रयोग दर प्रयोग करते जाते। अपने सैंपल्स को वो पास की जैकब फार्मेसी में भेजते जहां लोगों को स्वाद चखाया जाता और उनकी प्रतिक्रिया समझी जाती। 8 मई 1886 को पैम्बर्टन ने मान लिया कि उनका तैयार किया गया ड्रिंक अब परफेक्ट है। स्वाद वाकई अभूतपूर्व था। फार्मेसिस्ट मान रहे थे कि कोला फ्लेवर जल्दी ही जीभ से चला जाता है, जिसके बाद आप फिर से उसे पीना ज़रूर चाहेंगे। अब पैम्बर्टन के सहयोगी फ्रैंक एम रॉबिन्सन ने उस फ्लेवर को मशहूर करने का ज़िम्मा उठा लिया। उसी ने ‘कोका कोला’ नामकरण किया और पेटेंट लिया। एक लोगो तैयार किया गया जो आज भी जस का तस था। अखबारों में विज्ञापन छपवाया गया।

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सोडा फाउंटेन में भी इस फ्लेवर का स्वागत हुआ। गिलास में सीरप डाला जाता। बर्फ के टुकड़े घोले जाते। इसके बाद कार्बोनेटेड पानी मिला कर ग्राहकों के सामने पेश किया जाता। लोगों ने इसे पिया ज़रूर मगर पैम्बर्टन को कामयाबी उम्मीद के मुताबिक नहीं मिली। हिसाब-किताब के लिहाज से सबकुछ ठीक नहीं था। बीमार पैम्बर्टन ने मौत से पहले बदहाल हालत में अपने कोका कोला के अधिकार बेच डाले। जिस कैंडलर ने ये अधिकार खरीदे वो एक बार पैम्बर्टन से नौकरी मांगने गया था मगर मायूस लौटा था। 75 डॉलर जेब में डालकर वो अटलांटा में किस्मत आज़माने आया था। आखिरकार एक दवाइयों के स्टोर में उसने काम करना शुरू किया, जिसके बाद वो इसी क्षेत्र में बढ़ता ही रहा। 1888 के आसपास जब उसके पास कोका कोला के लिए निवेश का मौका आया तो उसने इनकार कर दिया था। फिर एक दिन उसने एक गिलास कोका कोला पिया। उस एक गिलास ने कोका कोला का भविष्य बदलकर रख दिया। कैंडलर को अहसास हो गया कि इस ड्रिंक का स्कोप शानदार है। 1891 में 2300 डॉलर के निवेश के साथ कैंडलर कंपनी का मालिक था। बिक्री शुरू हो चुकी थी। कैंडलर रणनीति बनाकर बाज़ार में उतर आया। मार्केटिंग की बारीक समझ रखनेवाले कैंडलर ने सारा ध्यान कोका कोला बेचने पर लगा दिया। उसकी ब्रांडिंग एक ऐसे ड्रिंक के तौर पर हुई जो सिरदर्द दूर करती है, थकान मिटाती है, मानसिक तनाव हटाती है। उसकी विज्ञापन रणनीति बेहद आक्रामक थी। उसने ऐसे कार्ड बंटवाए जिन्हें दुकान पर लानेवाले को मुफ्त कोका कोला पिलाई जाती थी। ये पहले इस्तेमाल करो फिर विश्वास करो की शुरूआत थी। इलाके में धमाल मच गया। पोस्टर, बैनर, बुकमार्क्स पर कोका कोला का विज्ञापन छा गया। ब्रांड बिल्डिंग का ये उदाहरण भी अद्भुत था। गिलास में कोका कोला लिए खड़ी महिलाएं अमेरिका को आकर्षित करने में सफल रहीं। 1897 आते-आते तो कंपनी ने कोका कोला को राष्ट्रीय ड्रिंक के तौर पर मशहूर करने की रणनीति अपना ली। ये राष्ट्रवाद के साथ प्रोडक्ट को बेचने की नीति थी, हालांकि उसी दौरान ड्रिंक में कोकेन मिले होने की अफवाह भी फैल गई। कैंडलर ने इस अफवाह का मुंहतोड़ जवाब दिया और लोगों का भरोसा कोका कोला पर जमा रहा।

वो सदी गुज़र गई। नई सदी आ गई। देश के 46 प्रांतों में कोका कोला ने धाक जमा ली। बॉटलिंग का वक्त आ गया था। अब तक गिलास में पी जानेवाली कोका कोला बोतल बंद होने लगी। बॉटलिंग की अपनी अलग ही कहानी है। कैंडलर को बोतल पर बहुत भरोसा नहीं था इसलिए उसने एक भूल कर दी। कोका कोला को बोतल में बंद करने की इच्छा रखनेवालों के साथ अनुबंध कर लिया कि अगर वो चाहें तो उसका प्रोडक्ट बोतलबंद करके बेच लें। इस अनुबंध में कैंडलर ने खुद के लिए रॉयल्टी मांगी ही नहीं। 1909 में कोका कोला बोतल बंद होकर धड़ल्ले से बिक रही थी। कामयाबी का आलम ये था कि मिलते जुलते नाम से बहुत कंपनियों ने अपने प्रोडक्ट बाज़ार में उतार दिए। कोका कोला बोतल की नकलें बिकने लगीं। कोका कोला ने इसके बाद बोतल को ही आकर्षित बना देने पर ज़ोर लगाया। इन्हीं बोतलों ने पहला विश्वयुद्ध देखा। मिलिट्री के लिए खूब बोतलें मुहैया कराई गईं। इसके बाद भी बहुत कुछ हुआ लेकिन पोस्ट लंबा नहीं करना चाहता।

राहुल गांधी के बहाने कोका कोला का संक्षिप्त इतिहास लिख दिया है। खेद है कि ना कोका कोला की खोज करनेवाले ने कभी शिकंजी बेची थी और ना उसे मशहूर ब्रांड बनाकर पैसा कूटनेवाले ने। बस इतनी भर बात है कि उस वक्त कोका कोला बनती वैसे ही थी जैसे आज शिकंजी बनती है। शायद राहुल ने कहना चाहा कि आज इतनी बड़ी कंपनी बनने वाली कोका कोला दरअसल शिकंजी की तरह बिकती थी लेकिन निवेशकों की ताकत ने उसे कहां से कहां पहुंचा दिया। ये बस वैसा ही उदाहरण है जैसा चाय की कैंटीन चलानेवाले परिवार का आदमी कहे कि वो चाय बेचा करता था।

(नितिन ठाकुर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)