सीनियर एक्‍टर का खुलासा– ‘मैं भी आउटसाइडर था, रोज आते थे आत्महत्या के ख्याल, दोस्त बगल में सोते थे’

बॉलीवुड में आउटसाइडर होना और इसके बावजूद कड़ी मेहनत से अपना नाम बनाना आसान नहीं है, हाल ही में मनोज वाजपेयी ने अपने उन दिनों का खुलासा किया जब वो भी आत्‍महत्‍या के ख्‍याल के बेहद करीब पहुच गए थे ।

New Delhi, Jul 02: बॉलीवुड इंडस्‍ट्री के कुछ मंझे हुए कलाकारों में से एक हैं मनोज वाजपेयी । इनके अभिनय की आज दुनिया दीवानी है । बॉलीवुड को एक से बढ़कर एक फिल्‍म देने वाले मनोज वाजपेयी का इस इंडस्ट्री में कोई गॉडफादर नहीं था, जिसके कारण उनके लिए यहां जगह बनाना बेहद मुश्किल था । एक्‍टर ने सुशांत की खुदकुशी के कई दिनों बाद खुद को लेकर बड़े राज बताए हैं । बाया कि कैसे वो भी खुदकुशी के बेहद करीब पहुंच चुके थे, लेकिन उनके देास्‍तों ने उन्‍हें बचा लिया ।

Advertisement

मनोज वाजपेयी ने शेयर की स्‍ट्रगल की कहानी
मनोज वाजपेयी ने हाल ही में अपने संघर्ष की कहानी ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे नाम के इंस्टाग्राम पेज पर शेयर की है । उन्‍होने पोस्ट में लिखा है – मैं एक किसान का बेटा हूं । बिहार के एक गांव में पला-बढ़ा हूं । मेरे पांच भाई बहन थे । हम झोपड़ी के स्कूल में जाया करते थे । बहुत सरल जीवन गुजारा लेकिन जब भी हम शहर जाते थे तो थियेटर भी जाते । मैं बच्चन का फैन था और उनके जैसा बनना चाहता था ।

Advertisement

एक्टिंग में मन लगता था, पढ़ाई में नहीं
मनोज ने आगे लिखा है – 9 साल की उम्र में मुझे एहसास हो गया था कि एक्टिंग ही मेरी मंजिल है । लेकिन मैं सपने देखने की हिमाकत नहीं कर सकता था और मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी । लेकिन मेरा दिमाग किसी और चीज पर फोकस नहीं कर पा रहा था तो 17 साल की उम्र में मै दिल्ली यूनिवर्सिटी चला गया । वहां मैंने थियेटर किया लेकिन मेरे परिवार वालों को कोई आइडिया नहीं था । आखिरकार मैंने अपने पिताजी को पत्र लिखा, वे नाराज नहीं हुए बल्कि मुझे 200 रूपए फीस के तौर पर भेज दिए । गांव में लोग मुझे नाकारा घोषित कर चुके थे लेकिन मैंने परवाह करनी छोड़ दी थी । मैं एक आउटसाइडर था जो फिट होने की कोशिश कर रहा था तो मैंने अपने आपको सिखाना शुरू किया । इंग्लिश और हिंदी । मैंने फिर एनएसडी में अप्लाई किया लेकिन मैं तीन बार रिजेक्ट हुआ ।

Advertisement

आत्‍महत्‍या के करीब पहुंच गया था
मनोज ने आगे लिखा है – मैं आत्महत्या करने के काफी पहुंच गया था यही कारण है कि मेरे दोस्त मेरे पास सोते थे और मुझे अकेला नहीं छोड़ते थे । जब तक मैं स्थापित नहीं हो गया, वे मुझे मोटिवेट करते रहे । मनोज ने यहां अपनी पहली फिल्‍म जो कि शेखर कपूर की बैंडिट क्वीन थी, के बारे में बताया – उस साल मैं एक चाय की दुकान पर था जब तिग्मांशु अपने खटारा से स्कूटर पर मुझे देखने आया था । शेखर कपूर मुझे बैंडिट क्वीन में कास्ट करना चाहते थे, मुझे लगा मैं रेडी हूं और मुंबई आ गया । लेकिन शुरूआत में बहुत मुश्किल होती थी । मैं एक चॉल में 5 दोस्तों के साथ रहता था और काम की तलाश में रहता था लेकिन काम नहीं मिलता था । एक बार एक असिस्टेंट डायरेक्टर ने मेरा फोटो तक फाड़ दिया था और मैंने एक ही दिन में 3 प्रोजेक्ट्स गंवाए थे. ।

लोगों ने वापस जाने को कहा
मनोज ने बताया कि – मुझे मेरे पहले शॉट के बाद ये भी कहा गया था कि तुम यहां से निकल जाओ । मैं एक पारंपरिक हीरो जैसा नहीं दिखता था तो उन्हें लगता था कि मैं कभी बॉलीवुड का हिस्सा नहीं बन पाउंगा । लेकिन मनोज ने कहा कि वो हारे नहीं, मैं किराए के लिए पैसा निकालने के लिए संघर्ष करता रहा और कई बार तो मुझे वडा पाव भी महंगा लगता था । लेकिन मेरी पेट की भूख मेरे सफल होने की भूख को कभी हरा नहीं पाई । चार सालों के संघर्ष के बाद मुझे महेश भट्ट की टीवी सीरीज में रोल मिला ।

मुझे हर एपिसोड के 1500 रूपए मिलते थे, ये मेरी पहली स्थाई तनख्वाह थी । इसके बाद मेरे काम को पहचाना गया और मुझे कुछ समय बाद सत्या में काम करने का मौका मिला । इसके बाद सब कुछ बदल गया, घर पर अवॉर्ड्स आए । पहला घर खरीदा । मुझे एहसास हो गया था कि मैं यहां रूक सकता हूं । आज 67 फिल्मों के बाद भी मैं टिका हुआ हूं । जब आप अपने सपनों को हकीकत में बदलने की कोशिश करते हैं तो मुश्किलें मायने नहीं रखती हैं सिर्फ 9 साल के उस बिहारी बच्चे का विश्वास मायने रखता है ।