कश्मीर- इनायत थी अल्लाह की, दहशतगर्द भागे!

इन मजहबी, जुनूनी आततातियों से उस सुन्नी शिशु को बचाने हेतु दो हजार किलोमीटर दूर चौबेपुर (काशी) का वासी पण्डित पवन कुमार चौबे था, जो इस पुलिस दल का जवान है| कैसा संयोग बना दो आस्थाओं में |

New Delhi, Jul 04 : उत्तरी कश्मीर में बारामुला जिले के सोपोर कस्बेवाली मस्जिद के भीतर घुसे लश्करे तैय्यबा के दहशतगर्दों (उस्मान और आदिल) ने केन्द्रीय रिजर्व पुलिस दल (CRPF) के गश्ती जवानों पर बेतहाशा गोलियां (1 जुलाई 2020) बरसायीं| एक बेगुनाह राहगीर (निर्माण कर्मी) बशीर अहमद खां का बदन छलनी हो गया| मगर उसके तीन साल के नाती मो. आयद पर खरोंच तक नहीं आई! क्या कहेंगे इसे ? परवरदिगार की इनायत ? अलौकिक मंजर ? करिश्मा!

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आगे देखिये| इन मजहबी, जुनूनी आततातियों से उस सुन्नी शिशु को बचाने हेतु दो हजार किलोमीटर दूर चौबेपुर (काशी) का वासी पण्डित पवन कुमार चौबे था, जो इस पुलिस दल का जवान है| कैसा संयोग बना दो आस्थाओं में | इस बालक आयद को बचाने में जरूर चौबेपुर का सोपोर से कोई रूहानी रिश्ता रहा होगा| कल कमांडेंट नरेन्द्रपाल चौबेपुर आये पवन चौबे के परिवार का सम्मान करने हेतु | उसकी पत्नी शुभांगी, पुत्र दिव्यांशु तथा पुत्री दिव्यांशी से वे मिले| पेशे से किसान पवन के पिता सुभाष चौबे का कहना है कि: “बेटे पर हमें गर्व है| देश सेवा के लिए गया और वह करके उसने दिखा दिया है|” परिवार ने बस इतना पुरस्कार माँगा कि चौबेपुर से उसके मुख्य मार्ग तक की ऊबड़ खाबड़ सड़क पक्की कर दी जाय| कमांडेंट वाराणसी जिलाधिकारी से कहेंगे| सभी ग्रामीणों को सुभीता हो जाय| यहाँ मेरा भी एक निजी सुझाव है| इस पक्की सड़क का नाम “आयद रोड” रख दिया जाय| लोगों की उत्कंठा बनी रहेगी कि हिन्दू इलाके में इस्लामी नाम ! ढोंगी गंगा-जमुनी वाले भी शायद तनिक सेक्युलर हो जायेंगे|

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अब कुछ बालक आयद की बात| अपने मृत नाना के गोलियों से लहूलुहान शरीर के सीने पर गुमसुम बैठा बालक अपने दायें बायें इस्लामी आतंकवादियों की कार्बाइन की दनादन गोलियों को सुन रहा था| तभी अपने प्राणों का मोह तजकर सिपाही पवन कुमार चौबे ने लपक कर बालक को उठा लिया, सीने से लगाकर ओट ले ली| फिर उसकी माँ के घर पहुँचाया| पवन अनुभवी है| वर्ष 2010 में सीआरपीएफ ज्वाइन करने वाले पवन की ट्रेनिंग के बाद पहली पोस्टिंग कोबरा बटालियन में रही| इसके बाद 2016 से वे जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं| पवन ने बताया कि बुधवार (1 जुलाई) की सुबह सीआरपीएफ टीम नाका के लिए आई थी| हर पोस्ट पर दो-दो जवान, बुलेटप्रूफ गाडी आगे बढ़ रही थी| तभी मस्जिद के पास पहुँचते ही अचानक आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी| एक हेड कांस्टेबल दीपचंद वर्मा शहीद हो गए| पवन नक्सलियों से भिड़ चुका था| चार वर्षों से कश्मीर में तैनात था| आततायियों से टकराना उसकी फितरत बन गई थी|

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श्रीनगर के संवाददाताओं (सलीम पण्डित: टाइम्स ऑफ़ इंडिया, और इंडियन एक्सप्रेस के नवीद इक़बाल, आदिल अखबेरा तथा बशारत मसूद) की रपट के अनुसार पूर्व मुख्य मंत्री ओमर अब्दुल्ला तथा इल्तिजा मुफ़्ती (महबूबा की पुत्री) ने कहा था कि सुरक्षा दलों ने राहगीर बशीर को मारा| ये दोनों नेता लोग घटना स्थल से पचास किलोमीटर दूर अपने श्रीनगर वाले भव्य बंगले में तब आराम फरमा रहे थे| समय भी सुबह के साढ़े सात का था| मुफ़्ती मोहम्मद सईद ही थे जिनकी पुत्री रुबैय्या का आतंकवादियों ने (1990 में) अपहरण कर लिया था | तब वे भारत के गृह मंत्री थे| रुबैय्या रिहा हुई जब खूंख्वार आतंकी छोड़े गए थे| कहते हैं कि मुफ़्ती ने सौदा किया था| ओमर अब्दुल के परिवार का रुतबा अब घाटी में बस इतना रह गया है कि उनके दादा शेरे-कश्मीर (शेख मोहम्मद अब्दुल्ला) की श्रीनगर-स्थित मजार पर भारतीय सुरक्षा दल तैनात रहते हैं| भय है कि कश्मीरी मुसलमान शेख की कब्र न खोद डालें|

(वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव के फेसबुक वॉल से साभार, ये  लेखक के निजी विचार हैं)