कभी दो समय भरपेट भोजन के लिये भी तरसते थे, बेहद प्रेरणादायक है युवा IPS की कहानी, मां दूसरों के घरों में…

सफीन हसन का जन्म 21 जुलाई 1995 को हुआ था, वो गुजराती, हिंदी, अंग्रेजी तथा संस्कृत चार भाषाओं के जानकार है, साल 2017 में उन्होने यूपीएससी में 570वां रैंक हासिल किया था।

New Delhi, Jul 12 : गुजरात के पालनपुरा में पैदा हुए सफीन हसन ने जामनगर में बतौर एएसपी सबसे युवा आईपीएस पुलिस अधिकारी के रुप में पदभार संभाल है, ट्रेनिंग के बाद ही उनकी जामनगर में पहली पोस्टिंग का रास्ता साफ हो गया था, उनका बचपन काफी संघर्षपूर्ण रहा, उनके माता-पिता मजदूर हैं, बेटे की पढाई के लिये मां ने दूसरों के घरों में काम किया, जबकि पिता ठंड में अंडे और चाय का ठेला लगाते रहे, हसन की जिंदगी में कई ऐसे मौके आये, जब वो टूट सकते थे, कई रातें भूखे पेट भी सोना पड़ा, हालांकि कुछ सज्जन व्यक्तियों की वजह से हसन यहां तक पहुंचने में सफल रहे, कुछ शिक्षकों ने हसन की फीस माफ कर दी, तो एक शख्स ने दिल्ली में रहने का उनका पूरा खर्च उठाया।

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एएसपी बने
सफीन हसन का जन्म 21 जुलाई 1995 को हुआ था, वो गुजराती, हिंदी, अंग्रेजी तथा संस्कृत चार भाषाओं के जानकार है, साल 2017 में उन्होने यूपीएससी में 570वां रैंक हासिल किया था,  इसके बाद गुजरात कैडर से आईपीएस की ट्रेनिंग के लिये हैदराबाद चले गये थे, वहां से लौटने के बाद जामनगर में उन्हें असिस्टेंट सुपरिटेंडेट ऑफ पुलिस के रुप में नियुक्ति मिली, हसन कहते हैं कि खुद का कांफिडेंस और स्मार्ट वर्क कायम रहे, तो सफलता पक्का मिलती है।

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जून 2016 में तैयारी शुरु की
अपनी तैयारी के बारे में बताते हुए हसन ने कहा है कि मैं जून 2016 में तैयारी शुरु की थी, फिर यूपीएससी और जीपीएससी की परीक्षा दी, गुजरात पीएससी में भी सफलता हासिल की, कई मौके ऐसे आये, जब मुश्किलों से जूझना पड़ा, लेकिन मैं लड़ता रहा, यहां तक की परीक्षा से पहले मेरा एक्सीडेंट हो गया था, मैंने पेन किलर खाकर पेपर दिया, परीक्षा के बाद लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा।

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मां-बाप ने क्या-क्या किया
युवा आईपीएस अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में बताते हुए कहते हैं कि जब पढाई के लिये पैसे कम पड़ने लगे, तो मां नसीम बानो रेस्टोरेंट और शादी समारोह में रोटी बेलने का काम करने लगी, पिता मुस्तफा हीरे की एक यूनिट में काम करते थे, हालांकि कुछ सालों पहले उनकी नौकरी चली गई, घर चलाना भी मुश्किल हो गया, हमें कई रात भूखे पेट सोना पड़ा। यूपीएससी का पहला अटेंप्ट देते समय एक्सीडेंट हो गया, इसके बावजूद 2017 यूपीएससी परीक्षा में 570वां रैंक हासिल कर आईपीएस तक का सफर तय किया।

तब ठाना कि आईपीएस ही बनना है
आईपीएस बनने का ख्याल क्यों आया, इसके जवाब में हसन ने बताया कि जब मैं अपनी मौसी के साथ एक स्कूल में गया था, तो वहां समारोह में पहुंच क्लेक्टर का खूब सम्मान और आवभगत हो रहा था, तो मैंने मौसी से पूछा कि ये कौन है, तो मेरी मौसी ने बताया कि ये आईपीएस है, जिले का मुखिया होता है, ये पद देशसेवा के लिये है, तभी मैंने तय कर लिया था, कि मुझे भी आईपीएस बनना है।

मां-बाप ने किया त्याग
हीरा यूनिट में नौकरी जाने के बाद हसन की मां ने दूसरों के घरों में काम करना शुरु किया, तो पिता ने इलेक्ट्रिशियन का काम शुरु किया, साथ ही जाड़े में वो ठेले पर अंडे और चाय बेचते थे, हसन ने कहा कि मैं अपनी मां को सर्दियों में भी पसीने से भीगा देखता था, किचन में बैठकर पढाई करता था। मां सुबह तीन बजे उठकर 20 से 200 किलो आटे तक की रोटी बनाती थी, इस काम से हर महीने उन्हें 5 से 8 हजार रुपये की कमाई होती थी।