क्या कोरोना मरीज दिल्ली सरकार के लिए आंकड़ा भर है? पढिये एक कोरोना संक्रमित का दर्द

सरकारी महकमे ने कभी ये नहीं पूछा कि होम आइसोलेशन में आपको कोेई परेशानी तो नहीं हो रही…जरूरी सामान कैसे मंगवाते हैं…खाने-पीने की चीजें कैसे लाते हैं।

New Delhi, Jul 18 : और आज बात होम आइसोलेशन की…दिल्ली सरकार दावा करती है कि दिल्ली में ये प्रयोग काफी सफल रहा…होम आइसोलेशन में किसी भी कोरोना मरीज की मौत नहीं हुई…अब सरकार किस आधार पर ये कह रही है…ये तो वही जाने…मैं अपना अनुभव शेयर कर रहा हूं…

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ऑफिस में कई लोगों के कोरोना की चपेट में आने के बाद 16 जून को ऑफिस की ओर से मेरा कोरोना टेस्ट हुआ..17 जून देर शाम को रिपोर्ट आई तो पॉजिटिव निकला…18 जून को मेरे पास कोरोना के केंद्रीय हेल्पलाइन नंबर 1075 से फोन आया…मतलब ये कि केंद्र सरकार तक मेरे कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी पहुंच गई…उसके दो-तीन घंटे के बाद दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग से भी फोन आ गया…मतलब कि दिल्ली सरकार को भी जानकारी मिल गई..
इसके अगले दिन यानी 19 जून को मेरे पास पूर्वी दिल्ली जिला कार्यालय औ र न्यू अशोक नगर स्थित किसी सरकारी अस्पताल से फोन आया…सबने कमोवेश एक ही सवाल पूछे…नाम और एड्रेस कंफर्म करने से संबंधित सवाल…साथ ही, ये भी पूछा कि मैंने कोरोना टेस्ट क्यों कराया…हां, न्यू अशोक नगर अस्पताल से जिस महिला का फोन आया…उसने जरूर ये पूछा कि मुझे कहीं कोई परेशानी तो नहीं हो रही है,,,सांस लेने में कोई दिक्कत तो नहीं हो रही है…

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कोरोना होने के बावजूद मेरी तबीयत पूरी तरह से ठीक थी…कोई लक्षण नहीं थे…सां स लेने में भी कोई दिक्कत नहीं हो रही थी…हां, थोड़ी वीकनेस महसूस हो रही थी…वजह अब शारीरिक था…या मनोवैज्ञानिक बता नहीं सकते..मैंने उन्हें सब कुछ सच-सच बता दिया…इस पर उस महिला ने कहा कि मैं आपके लिए विटामिन की कुछ गोलियां भिजवा देती हैं…
कुछ घंटे बाद एक साथ चार महिलाएं धमक गईं…शायद उनमें एक महिला डॉक्टर भी थीं…नाम तो मुझे पता है..लेकिन बताऊंगा नहीं…क्योंकि बेचारी की रोजी-रोटी पर न आंच जाए…कोई कार्रवाई न हो जाए,..
उन्होंने मुझे दो पेज का एक कागज दिया…अंग्रेजी में.. जिसमें होम क्वॉरंटाइन रहने की बात लिखी गई थी…साथ ही, कुछ इंस्ट्रक्शन भी थे..
फिर उन्होंने मकान में नोटिस लगाया…और उस कागज के साथ मेरा फोटो लेकर हड़बड़ी में चली गईं…कोई दवा नहीं दी…मैंने भी मांगी नहीं…क्योंकि मैं सरकारी सिस्टम को चेक करना चाह रहा था..कि वो कैसे काम के नाम पर भार टालती है…
मेरे साथ ऑफिस का पूरा सपोर्ट था…सो,अगले दिन मैंने ऑफिस से जुुड़े डॉक्टर से बात की…चूंकि मुझमें कोरोना का कोई लक्षण नहीं दिख रहा था…सिर्फ एक दिन हल्का-सा बुखार आया था…सो, डॉक्टर ने बताया कि मुझे अस्पताल में भर्ती होने या ज्यादा दवा खाने की जरूरत नहीं हैं…उन्होंने मुझे टेंशन फ्री होकर घर में नॉर्मल रहने..और घर वालों से दूरी मेंटेन करने की कहा…
डॉक्टर ने कहा कि मुझे ज्यादा इलाज की जरूरत नहीं है…और मैं जल्द ठीक हो जाऊंगा… फिर भी वो मेरे लिए कुछ जरूरी दवाईयां भिजवा देंगे…उन्होंने मेरी उम्र भी पूछी…फिर बताया कि एक दवा और दे सकते थे…लेकिन चूंकि आप 45 साल से ज्यादा के हो चुकी है..इसलिए ये दवा आपको नहीं दी जा सकती…अगले दिन मेरे घर पर एक स्टाफ दवा लेकर पहुंच गया…
मैं डॉक्टर के कहे के मुताबिक दवा खाता रहा…काढ़ा पीता रहा…हल्दी के साथ गर्म दूध पीता रहा…एक्सरसाइज करने की कभी आदत नहीं रही..फिर भी सुबह 10-15 मिनट एक्सरसाइज करता रहा…इस दौरान न कभी सर्दी-खांसी हुई..न बुखार हुआ…न गले में तकलीफ हुई…न सांस लेने में कभी कोई दिक्कत…

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इसके बाद कई दिनों तक किसी का फोन नहीं आया…दिन बीतते गए…और मैं होम आइसोलेशन में घर में पड़ा रहा…सरकारी महकमे में से किसी ने हालचाल नहीं पूछा…फिर एक दिन न्यू अशोक नगर स्वास्थ्य विभाग से किसी महिला का फोन आया…कि आपकी तबीयत कैसी है?…मैं ठीक था़..सो बता दिया..अब मुझे दवा की भी जरूरत नहीं थी..ऑफिस से मिली दवा खा रहा था…
न मेरे घर को सेनेटाइज किया गया…न ही कोई सरकारी डॉक्टर मुझे देखने आया…बस, एक-दो बार फोन पर बात की…इस बीच न्यू अशोक नगर में भी एंटीजन टेस्ट शुरू हो गया…तो न्यू अशोक नगर अस्पताल वालों ने कहा कि आप कहें तो मैं आपकी वाइफ और बेटे का वहां टेस्ट करा दूं…मैंने उनसे कहा कि मैं ऑफिस से पूछकर आपको बताता हूं…क्योंकि हो सकता है…ऑफिस वाले टेस्ट कराएं…वाइफ ने भी कोरोना के डर से भीड़ में जाने से मना कर दिया…उम्मीद के मुताबिक ऑफिस ने दोनों का कोरोना टेस्ट कराया…और वो निगेटिव निकले..

इसके अलावा, सरकारी महकमे ने कभी ये नहीं पूछा कि होम आइसोलेशन में आपको कोेई परेशानी तो नहीं हो रही…जरूरी सामान कैसे मंगवाते हैं…खाने-पीने की चीजें कैसे लाते हैं…न ही ऐसा कोई नंबर दिया कि उस पर फोन कर उनकी मदद मांग सकें…हां, उस कागज में कई नंबर जरूर थे…लेकिन वो कोरोना से संबंधित थे…वो तो गनीमत रहा कि वाइफ और बेटे निगेटिव निकल गए…और वो जरूरी सामान लाते रहे…एक मिनट के लिए मान लीजिए कि दोनों पॉजिटिव निकल जाते…फिर क्या होता..जरा सोचिए..कैसे और किससे खाने-पीने का सामान मंगवाता…हम लोग तो घर में भूखे-प्यासे मर जाते…
धीरे-धीरे पता नहीं क्यों मुझे एहसास होने लगा कि सरकारी महकमा सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ाने में लगा है…करता-धरता तो कुछ है नहीं..सिर्फ फोन कर डिस्टर्ब करता है…सभी कंप्यूटर का अपना डाटा दुरूस्त करने में लगा है…सो, मैं दिन में आराम करते वक्त कुछ घंटे के लिए फोन स्विच ऑफ कर देता था…

अचानक एक दिन दोपहर में मुझे लगा कि कोई मेरा नाम लेकर आवाज दे रहा है…कोई काम-धाम तो था नहीं…लैपटॉप भी खराब था..सो, सोकर और टीवी पर न्यूज और फिल्में देखकर टाइम पास करता था…मैं सोया हुआ था..उठकर बालकनी से झांका तो देखा कि एक महिला और साथ में एक पुलिसकर्मी है…उसने नाम लेकर पूछा…तो मैंने कहा कि मैं ही हूं..बताइए क्या बात है…
उन्होंने मुझे नीचे बुलाया…फिर एक कागज थमा दिया..जिसमें लिखा हुआ था कि मुझे डिस्चार्ज कर दिया गया है..मेरे मन में आया कि उनसे पूछूं कि जब आपने मेरा कोई इलाज नहीं किया…कोई दवा नहीं दी..तो फिर डिस्चार्ज कैसे कर दिया?…फिर आपको कैसे पता चल गया कि मैं कोरोना निगेटिव हो चुका हूं…क्योंकि आपने टेस्ट कराया ही नहीं…तब तक ऑफिस की ओर से टेस्ट नहीं कराया गया था…क्योंकि 14 दिन पूरे नहीं हुए थे…
अब क्रोनोलॉजी समझिए…जब उन्होंने मुझे होम आइसोलेशन का कागज दिया था..वो 19 जून के डेट का था…लेकिन जब मुझे 10 दिन बाद कथित तौर पर डिस्चार्ज किया…तो 27 तारीख थी…मतलब उन्होंने आठ दिन बाद ही मुझे डिस्चार्ज कर दिया…इस तर्क के साथ कि मेरी कोरोना रिपोर्ट 17 जून को आई थी…है न मजेदार?…मुझे समझ में नहीं आया कि दिल्ली सरकार को मुझे कोरोना से ठीक करार देने के लिए इतनी हड़बड़ी क्यों हो गई?…क्या सिर्फ इसलिए कि आंकड़े दुरूस्त किया जा सके?…क्या कोरोना मरीज सरकार के लिए आंकड़ा भर है?

(पत्रकार अमर कुमार मिश्रा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)