ऐ भाई, ज़रा देख के चलो !

राज कपूर ने कहा – ‘अच्छा, इस गीत को आपको मंच पर गाना हो तो कैसे गाएंगे ?’ नीरज जी ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में इसे गाना शुरू कर दिया। धुन पर सभी ‘वाह वाह’ कर बैठे।

New Delhi, Jul 19 : स्व. गोपाल दास नीरज जी को उनके छंदबद्ध गीतों के लिए ही जाना जाता है, लेकिन विचित्र तथ्य यह भी है कि हिंदी सिनेमा में छंदमुक्त गीतों के प्रवर्तक भी वही थे। वह पहला छंदमुक्त गीत था राज कपूर की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ का। राज जी को सर्कस के विदूषक की अपनी भूमिका में गाने के लिए कोई एक गीत चाहिए था जिसमें रफ़्तार भी हो, उदासी भी और जीवन-दर्शन भी।

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गीत की रचना के लिए बैठक जमी जिसमें नीरज जी और संगीतकार शंकर जयकिशन शामिल हुए। कई विकल्पों पर बात चली, लेकिन राज जी को संतोष नहीं हुआ। देर रात बिना नतीजे के गोष्ठी विसर्जित हो गई। यह सिलसिला कई रातों तक चला।

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पांचवीं रात नीरज जी के मुंह से किसी और प्रसंग में निकल गया – ‘ऐ भाई, ज़रा देख के चलो’ ! राज जी को गीत के मुखड़े के तौर पर यह पंक्ति पसंद आ गई। अंततः गीत बन कर तैयार हुआ जिसमें जीवन की क्षणभंगुरता और संसार की नश्वरता का दर्शन था।

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गीत सुनकर शंकर जयकिशन ने हाथ खड़े कर दिए – ‘इसकी धुन बनाना मेरे लिए मुमकिन नहीं। इसमें न मुखड़ा है और न अंतरा। यह अलग ही चीज़ है।’ राज जी ने कहा – ‘कविता अच्छी है, लेकिन फिल्म के लिए इसे धुन में बांधना सचमुच मुश्किल होगा।’ नीरज जी ज़िद पर अड़े रहे तो राज कपूर ने कहा – ‘अच्छा, इस गीत को आपको मंच पर गाना हो तो कैसे गाएंगे ?’ नीरज जी ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में इसे गाना शुरू कर दिया। धुन पर सभी ‘वाह वाह’ कर बैठे। अंततः नीरज जी की गायन शैली की तर्ज़ पर गीत की धुन तैयार हुई जिसे मन्ना डे ने अपनी धीर-गंभीर आवाज़ देकर अमर कर दिया।
पुण्यतिथि पर नीरज जी का सादर स्मरण !

(Dhurv Gupt के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)