पाकिस्तान का भला इसी में है!

संयुक्तराष्ट्र की रपट के मुताबिक कम से कम 200 आतंकवादी ऐसे हैं, जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार में हमले की तैयारी कर रहे हैं।

New Delhi, Jul 27 : दक्षिण एशिया में आतंकी गतिविधियों पर संयुक्तराष्ट्र संघ की जो 26 वीं रपट आई है, उस पर सबसे ज्यादा ध्यान पाकिस्तान की इमरान सरकार का जाना चाहिए, क्योंकि इस रपट से पता चलता है कि दुनिया में आतंकवाद का कोई गढ़ है तो वह पाकिस्तान ही है। पाकिस्तान में अल-कायदा और ‘इस्लामिक स्टेट’ के दफ्तर हैं। पाकिस्तानी तालिबान आंदेालन भी वहीं से चलता है।

Advertisement

पाकिस्तान में जन्मा और पनपा यह आतंकवाद अफगानिस्तान और हिंदुस्तान को तबाह करने पर उतारु है। संयुक्तराष्ट्र की रपट के मुताबिक कम से कम 200 आतंकवादी ऐसे हैं, जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार में हमले की तैयारी कर रहे हैं। आईएसआईएस के ज्यादातर आतंकवादियों ने केरल और कर्नाटक को अपना ठिकाना बना रखा है। ‘विलायते-हिंद’ के नाम से जो नया संगठन पिछले साल बना है, उसका खास निशाना भारत ही है। भारत में भी वह कश्मीर पर ही सबसे ज्यादा अपना जोर आजमाएगा। 2015 में खुरासान के नाम से जो गिरोह खड़ा किया गया था, उसका लक्ष्य भी कश्मीर ही था।

Advertisement

अफगानिस्तान में इस समय लगभग 6000 आतंकवादी सक्रिय हैं। अफगानिस्तान के आधे से ज्यादा जिलों पर उनका कब्जा या असर है। वे अपने आप को तहरीके-तालिबान पाकिस्तान कहते हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने तो यहां तक कहा था कि आतंकियों से खुद पाकिस्तान बहुत त्रस्त है। उनके मुताबिक पाकिस्तान में 40 हजार से ज्यादा आतंकवादी सक्रिय हैं। पाकिस्तान की जनता द्वारा चुनी हुई सरकारें खुद इन आतंकियों का विरोध करती हैं, खास तौर से कुछ साल पहले पेशावार में एक सैनिक स्कूल पर हुए हमले के बाद, जिसमें फौजियों के करीब डेढ़ सौ बच्चे मारे गए थे। लेकिन पाकिस्तान की दिक्कत यह है कि उस राष्ट्र की अफगान-नीति और हिंदुस्तान-नीति वहां की फौज बनाती है। यदि पाकिस्तान की फौज अपना हाथ खींच ले तो दक्षिण एशिया के सारे आतंकवादी ढेर हो जाएंगे।

Advertisement

इस फौज को कौन समझाए कि आतंकवाद से जितना नुकसान भारत और अफगानिस्तान को होता है, उससे कहीं ज्यादा पाकिस्तान को ही होता है। भारत इतना शक्तिशाली देश है कि तलवार के जोर पर पाकिस्तान उससे हजार साल तक लड़कर भी कश्मीर नहीं ले सकता। हां, बातचीत से हल जरुर निकल सकता है। जहां तक अफगानिस्तान का सवाल है, पाकिस्तान के कई प्रधानमंत्रियों को मैं यह अच्छी तरह बता चुका हूं कि अफगान तालिबान गिलजई कबीले के हैं। गिलजई पठानों की रगों में आजादी दौड़ती है। वे सत्तारुढ़ हो गए तो वे पाकिस्तान के ‘पंजाबी मुसलमानों’ को ठिकाने लगाने में देर नहीं करेंगे। पाकिस्तान का भला इसी में है कि वह आतंकवाद को बिल्कुल भी सहारा न दे और काबुल और कश्मीर की उलझनों को लोकतांत्रिक तरीकों से हल करे।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)