अगर आपने टीवी पर जाकर “डॉग फाइट” करने का विकल्प चुना है, तो खरोचों से इतना डरते क्यों हो?

इसलिए यदि इस तरह की घटनाओं को किसी के हार्ट अटैक का कारण बताना शुरू कर देंगे, तो हार्ट अटैक की हर दूसरी घटना आपको हत्या जैसी नज़र आएगी।

New Delhi, Aug 14: कई लोग कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी की मौत के लिए बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा की कही किसी बात को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। अपने आप में इससे बड़ा बकवास और कुछ नहीं हो सकता। मैंने वह टीवी डिबेट नहीं देखा है, फिर भी ऐसा कह रहा हूँ। पहली बात कि अगर आपने टीवी पर जाकर “डॉग फाइट” करने का विकल्प चुना है, तो खरोचों से इतना डरते क्यों हो? दूसरी बात कि बदतमीजी किसी खास पार्टी के नेता या प्रवक्ता का पेटेंट नहीं है।

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आप बीजेपी प्रवक्ता को दोषी ठहरा रहे हैं, लेकिन एक अग्रणी राष्ट्रीय चैनल पर बदतमीजी से मुझे इंटरप्ट करने वाला व्यक्ति कांग्रेस का एक प्रवक्ता था। जब मैंने इसपर आपत्ति की, तो उस लोकप्रिय चैनल के साथी ने मुझे “सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट” का ज्ञान दिया। कहने का मतलब यह था कि अगर आप लाइव राजनीतिक डिबेट में हिस्सा लेते हैं, तो आपको सामने वाले की बदतमीजी का जवाब उससे अधिक बदतमीजी से देना आना चाहिए।
बात मुझे समझ में आ गई। फिर मैंने खुद से बात की और कहा- “भाषा सीखी, मर्यादा सीखी, संस्कार सीखा, पत्रकारिता सीखी, लिखना-बोलना सीखा, तर्क-वितर्क सीखा, धैर्य सीखा, संयम सीखा, मानवता सीखी, तथ्यों के साथ अकाट्य तरीके से अपनी बात रखना सीखा, किताबें लिखीं, टीवी शो और इंटरव्यू किये, कई चैनलों को चलाया, संपादन और प्रबंधन सीखा। लेकिन बदतमीजी तो सीखी ही नहीं। अब क्या करूं?”

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मैंने उस दिन के बाद से उस चैनल के डिबेट में जाना बंद कर दिया। उस चैनल के कर्ता-धर्ताओं को भी इसका खेद नहीं था, क्योंकि रह रहकर उनके भीतर का “टेलीग्राफ” जाग जाता है। वे तो बीच-बीच में निष्पक्ष दिखने का प्रयास केवल इसलिए करते हैं, क्योंकि वे एनसीआर से ऑपरेट करते हैं, वरना उनका धर्म-ईमान कौन नहीं जानता?
इसलिए मेरे भाई, हर बात का बतंगड़ मत बनाओ। राजीव त्यागी की असामयिक मृत्यु का मुझे भी दुख है, लेकिन जैसा कि कहा जा रहा है, यदि उनका हृदय इतना कमज़ोर था कि किसी एक बात से उन्हें हार्ट अटैक आ जाए, तो उन्हें किसी राजनीतिक दल का प्रवक्ता नहीं बनना चाहिए था। और अगर बन भी गए थे, तो टीवी डिबेट में तो बिल्कुल नहीं जाना चाहिए था। पार्टी से कहना चाहिए था कि रणदीप सुरजेवाला की तरह मुझसे भी केवल प्रेस कॉन्फ्रेंस कराओ।

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हार्ट का कमज़ोर होना एक शारीरिक स्थिति है और दुनिया कमोबेश सबके लिए इतनी ही सख्त, बेरहम, अन्यायी और स्वार्थी होती है। इसलिए यदि इस तरह की घटनाओं को किसी के हार्ट अटैक का कारण बताना शुरू कर देंगे, तो हार्ट अटैक की हर दूसरी घटना आपको हत्या जैसी नज़र आएगी। फिर आप बाप के हार्ट अटैक के लिए बेटे को, बेटे के हार्ट अटैक के लिए बीवी को, बीवी के हार्ट अटैक के लिए पति को दोषी ठहराने लगेंगे।
इसलिए अतिवादी मत बनिए, अन्यायी मत बनिए, तर्क और सच्चाई का रास्ता मत छोड़िए। मैं तो हमेशा से इस बात का पक्षधर रहा हूँ कि वाद-विवाद और लिखने-बोलने में कभी भी भाषाई मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। आप तमाम मित्र मेरे इस शाश्वत विचार के गवाह भी हैं, इसलिए आशा है कि मेरी बात को ठीक से समझने का प्रयास करेंगे।
ईश्वर राजीव त्यागी की आत्मा को शांति दें। उन्हें मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि!
(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)