ममता बनर्जी के खेमे में खलबली, मंत्री ने सौंपा इस्तीफा, कई विधायक भी नाराज!

चुनावी रणनीति का जिम्मा प्रशांत किशोर को दिये जाने से ममता बनर्जी के कई विधायक नाराज बताये जा रहे हैं।

New Delhi, Nov 27 : पश्चिम बंगाल में अगले 6 महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं, इससे पहले टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी को बड़ा झटका लगा है, उनके बेहद करीबी रहे मंत्री शुभेंदु अधिकारी ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है, वो लंबे समय से ममता सरकार से नाराज चल रहे थे, बीच में ये भी चर्चा थी कि पश्चिम बंगाल में इस बार टीएमसी की चुनावी रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर ने उनसे मुलाकात की, लेकिन बात बनी नहीं।

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कई विधायक नाराज
चुनावी रणनीति का जिम्मा प्रशांत किशोर को दिये जाने से ममता बनर्जी के कई विधायक नाराज बताये जा रहे हैं, शुभेंदु अधिकारी ममता सरकार में परिवहन मंत्री थे, उन्होने प्रदेश सरकार की ओर से मिलने वाली सुरक्षा भी छोड़ दी है, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कहा जा रहा है कि वो बीजेपी के संपर्क में हैं, और जल्द ही बड़ा ऐलान कर सकते हैं। कुछ दिन पहले ही उन्होने अपने पोस्टर से ममता दीदी की तस्वीर हटवा दी थी, सौगात रॉय ने उनके साथ हाल ही में दो बार मीटिंग की है, शुभेंदु का कहना है कि पहले ममता के इशारों पर पार्टी चलती थी, लेकिन पिछले कुछ दिनों से प्रशांत किशोर के इशारों पर ही पार्टी की दिशा तय हो रही थी।

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अभिषेक बनर्जी से नाराज
शुभेंदु अधिकारी ने अभी एक दिन पहले ही हुगली रिवर ब्रिज कमिश्नर के पद से इस्तीफा दिया है, कहा जा रहा है कि पार्टी में ममता के भतीजे अभिषेक का कद बढने से भी वो नाराज हैं, शुभेंदु ममता के बेहद करीबी और बड़े नेता हैं। वो शुरु से ही ममता के साथ हैं और कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं। ये भी कहा जाता है, कि नंदीग्राम आंदोलन की भूमिका शुभेंदु ने ही तय की थी, दक्षिण बंगाल में उनका अच्छा खासा प्रभाव है, उनके पिता और भाई भी सांसद हैं।

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कई विधायक नाराज
टीएमसी विधायक नियामत शेख ने भी पार्टी के निर्णय के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, उन्होने कहा था कि क्या अब हम पीके से राजनीति सीखेंगे, कूचे बेहार के विधायक मिहिर गोस्वामी ने भी अपना असंतोष जाहिर किया था, वो दो महीने पहले ही पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे चुके हैं, उन्होने कहा था कि पार्टी को ठेकेदार के हाथ में दे दिया गया है, चुनाव से पहले पीके के सामने भी सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह पार्टी को संगठित करें, और नेताओं का असंतोष दूर करें।

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