बंदूक पशुपति की, कंधा जदयू का और निशाना केन्द्र की कुर्सी, ये है लोजपा टूट की Inside Story
योजना तैयार थी, कैसे क्या करना है, ये सबकुछ पहले से तय था, लेकिन जो होना था, उसकी तैयारी तब शुरु हुई, जब 4 दिन पहले मोदी सरकार के विस्तार की सुगबुगाहट शुरु हुई।
New Delhi, Jun 14 : लोजपा में बगावत के बाद अब चर्चा का बाजार गर्म है, हर कोई इसे अपने ढंग से परिभाषित कर रहा है, कोई कह रहा है कि नीतीश से दुश्मनी चिराग को भारी पड़ी, तो कोई कह रहा है कि जदयू के एक कद्दावर नेता ने इस टूट में ब़ड़ी भूमिका निभाई है, लेकिन लोजपा के सूत्रों ने जो बताया है, वो सत्ता की कुर्सी से जुड़े समीकरण की ओर इशारा कर रहा है।
टूट के सूत्रधार चिराग के चाचा
लोजपा के विश्वस्त सूत्रों का दावा है कि इस टूट में अगर सबसे बड़ी भूमिका किसी की है, तो वो खुद चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस का है, 2020 विधानसभा चुनाव में जब चिराग ने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया था, तब भी पशुपति पारस ने इसका विरोध किया था। सूत्रों के अनुसार तब उन्होने काफी अनमने ढंग से इसके लिये सहमति दी थी, यूं कहिये कि पशुपति किसी भी हाल में एनडीए से बाहर जाने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन रामविलास चिराग को पार्टी का नेता घोषित कर चुके थे, ऐसे में चिराग की बात मानने के अलावा उनके पास दूसरा कोई चारा नहीं था।
पशुपति का सियासी दांव समझिये
रामविलास पासवान के निधन के बाद से ही पशुपति सभी फैसलों पर सिर्फ मौन सहमति दे रहे थे, लेकिन अंदर ही अंदर नाराज थे, लोजपा के सूत्रों के मुताबिक पशुपति का ये मानना था कि एनडीए से बिहार में अलग होकर पार्टी और खासकर उसके सांसदों का कुछ अच्छा नहीं होने वाला। सूत्र तो यहां तक कह रहे हैं कि पशुपति की महत्वाकांक्षा काफी आगे बढ चुकी थी, चिराग से इतर वो खुद को रामविलास पासवान का उत्तराधिकारी मानते थे, एक सूत्र के अनुसार उन्होने इसका जिक्र भी किया है, लेकिन बात आई-गई हो गई थी, लोगों ने इसे भाई का भाई के लिये प्रेम ही समझा था।
अंदर ही अंदर प्लानिंग
योजना तैयार थी, कैसे क्या करना है, ये सबकुछ पहले से तय था, लेकिन जो होना था, उसकी तैयारी तब शुरु हुई, जब 4 दिन पहले मोदी सरकार के विस्तार की सुगबुगाहट शुरु हुई, जदयू के एक कद्दावर नेता इस प्लानिंग का हिस्सा जरुर थे, लेकिन वो इसके सूत्रधार नहीं थे, सबको पशुपति पारस की हरी झंडी का इंतजार था। लोजपा के सूत्र के अनुसार केन्द्र में मंत्री पद के लिये पशुपति को मौके का इंतजार था, आखिर में वो उन्हें मिल भी गया, यानी बंदूक पशुपति की, कंधा जदयू का और निशाना केन्द्र की कुर्सी, बीच में चिराग को कुर्बान कर दिया गया।