हीरे या हरे-भरे पेड़ों से भरपूर जंगल ? आप किसे चुनेंगे, ये खबर पढ़ें और अभी आवाज उठाएं
मध्यप्रदेश में कुछ हजार करोड़ के हीरों के लिए एक पूरा जंगल तबाह किया जा रहा है । पिछले कुछ दिनों से बक्सवाहा जंगल चर्चा में है … जानते हैं क्यों ?
New Delhi, Jun 24: जंगल ही जीवन है, ये बात बचपन में किताबों में ही समझा-पढ़ा दी गई थी, ताकि हम हरे-भरे पेडों, प्रकृति के महत्व को समझ सकें ।
लेकिन आज जब आपको हीरों और हरे-भेरे पेड़ों से भरपूर जंगल में से किसी एक का चुनाव करना हो तो आप किसे चुनेंगे । अगर अब तक नहीं सोचा है, तो इस पर सोचिए जरूर । क्योंकि देश में कुछ ऐसा हो रहा है, जिससे सांसों का संकट ही नहीं पूरा ईको सिस्टम बिगड़ सकता है ।
कोरोना ने समझाया ऑक्सीजन का महत्व
कितने दिन हुए आपको जब ये पता चला कि ऑक्सीजन कितनी जरूरी है, कितने दिन हुए जब आप किसी अपने के लिए ऑक्सीजन के सिलेंडरों के लिए मारा-मारी कर रहे थे, इधर उधर सबसे बात कर जुगाड़ लगा रहे थे । कोरोना की दूसरी लहर ने इंसानों को ये बखूबी समझा दिया है कि ये प्राणदायी आक्सीजन कितनी जरूरी है । ये सब बताना समझाना इसलिए जरूरी है क्योंकि मध्यप्रदेश में कुछ हजार करोड़ के हीरों के लिए एक पूरा जंगल तबाह किया जा रहा है ।
मध्य प्रदेश सरकार ने दी कटाई की अनुमति
पिछले कुछ दिनों से बक्सवाहा जंगल चर्चा में है … जानते हैं क्यों … दरअसल मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में राज्य सरकार ने यानी कि बीजेपी की शिवराज सरकार ने आदित्य बिड़ला ग्रुप को हीरों की खानों की खुदाई के लिए बक्सवाहा के जंगलों की कटाई करने की अनुमति दे दी है । अनुमान है कि अनुमान है कि 382.131 हेक्टेयर के जंगल के कटने से 40 से ज्यादा विभिन्न प्रकार के दो लाख 15 हजार 875 पेड़ तबाह हो जाएंगे। छतरपुर जिले के बक्सवाहा में हीरो का भंडार बताया गया है, और ये हीरे इन हरे-भरे पेड़ों के नीचे दबे हुए हैं । अनुमान है कि यहां लगभग 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे हो सकते हैं, जिनकी कीमत कई हजार करोड़ आंकी गई है ।
बिगड़ जाएगा ईको सिस्टम
पर्यावरण के लिए काम कर रहे लोगों के मुताबिक, ये गलत है । पेड़ों को काटने से यहां रहने वाले 20 गांवों और उनके 8000 निवासियों पर भारी असर पड़ेगा । इस कटाई का असर स्थानीय ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के ईको सिस्टम को बिगाड़ कर रख देंगा । पहले से ही पानी की भारी कमी से जूझता बुंदेलखंड, आने वाले समय में बंजर हो जाएगा । हालांकि केंद्र-राज्यों से कंपनियों को मिलने वाले ठेकों के पीछे तर्क यह है कि कंपनियां काटे जाने वाले पेड़ों के बदले उतने पेड़ लगाएगी । लेकिन आप ही बताइए क्या ये संभव है । कई हजारों साल से लगे पेड़ों की भरपाई क्या ये पौधे कर पाएंगे ।
Save Buxwaha Forest
बक्सवाहा के जंगलों को बचाने के लिए स्थानीय एकजुट हैं, संत आगे आ रहे हैं, खून से पत्र लिखकर लोग इस आदेश को वापस लेने की मांग कर रहे हैं । जररूत है सबको एक सुर में इस कटाई का विरोध करने की । कहीं देर ना हो जाए, हीरे की चमक जंगलों की हरियाली पर कहीं भारी ना पड़ जाए ।